कान्वेंट स्कूलों में अब किताबों की आड़ में
कमीशनखोरी का खेल नहीं चलेगा। स्कूल बच्चों को प्राइवेट पब्लिसर्स की महंगी
किताबें खरीदने को बाध्य नहीं कर सकेंगे। इस संबंध में सीबीएसई ने सभी
स्कूलों को सर्कुलर जारी कर ′लर्निंग विदाउट बर्डेन‘ बनाने का निर्देश दिया
है। हिदायत दी है कि सिलेबस में वही किताबें शामिल की जाएंगी, जो
एनसीईआरटी से मान्य होंगी। निजी कान्वेंट
स्कूलों में अब तक किताबों के नाम पर
बड़ी गड़बड़ी होती आ रही हैं।
क्वालिटी बेस्ड एजुकेशन के नाम पर स्कूल हर वर्ष बच्चों को तमाम ऐसी
किताबें खरीदने को विवश करते हैं, जिनका न तो बच्चों के सेलेेबस से कोई
सरोकार होता है और न ही कोई अन्य लाभ मिलता है। प्राइवेट पब्लिसर्स की ओर
से उपलब्ध कराई जाने वाली बेमतलब की यह किताबें बच्चों के लिए सिर्फ बोझ
होती हैं। कई बार तो यह किताबें पूरे साल बस्ते से बाहर ही नहीं निकल पाती।
इन किताबों की कीमत भी सेलेबस की किताबों की अपेक्षा कई गुनी होती है।
इनकी खरीदी अनिवार्य होने से अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ता
है। निजी स्कूलों में इस तरह की मनमानी की लगातार मिल रही शिकायतों के बाद
प्रो.यशपाल की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने पढ़ाई को बेहतर
बनाने के लिए बच्चों पर किताबों का अतिरिक्त बोझ घटाने की सिफारिश की थी।
इस रिपोर्ट के आधार पर ही सीबीएसई ने अब ‘लर्निंग विदाउट बर्डेनÓ पर जोर
दिया है। सीबीएसई के ज्वाइंट सेक्रेटरी डीटी सुधांशु राव के हवाले से 20
जुलाई को जारी पत्र क्रमांक एकेडमिक-41/2015 के अनुसार सभी संबद्ध स्कूलों
को हिदायत दी गई है।
बच्चों-अभिभावकों के लिए हितकर: स्वास्थ्य
शिक्षा सहयोग संगठन ने सीबीएसई के इस फैसले को बच्चों-अभिभावकों के लिए
हितकर बताया है। संगठन के प्रधान बृजपाल परमार के मुताबिक निजी स्कूल अपने
निहित स्वार्थों के लिए बच्चों पर प्राइवेट पब्लिसर्स की महंगी किताबें
थोपते रहें है। इससे न सिर्फ पढ़ाई महंगी हो जाती है, बल्कि बच्चे भी
अतिरिक्त तनाव झेलते हैं। इस निर्देश के बाद पढ़ाई कुछ हद तक तनावमुक्त हो
पाएगी।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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