फिट रहने की चाहत में लोग हर वो चीज अपना रहे हैं, जिनसे सेहत
को थोड़ा-बहुत भी फायदा होता हो। जॉगिंग, वॉकिंग, एक्सरसाइज और योग लोगों
की लाइफस्टाइल का जरूरी हिस्सा बन चुका है, लेकिन फिर भी लोग बीमार हो ही
रहे हैं। हर कोई इस सवाल का जवाब जानना चाहता है कि आखिर इतनी मेहनत के बाद
भी रिजल्ट पॉजिटिव क्यों नहीं मिल रहा। आज इसका जवाब जानेंगे। सिर्फ
हेल्दी खाना ही जरूरी नहीं, उसे हेल्दी बनाना भी उतना ही जरूरी होता है। इस
पर ज्यादातर लोग
ध्यान नहीं दे रहे हैं। खाना पकाने के बर्तन किस तरह से
सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं, डालते हैं इस पर एक नजर: - नॉन स्टिक/टेफलॉन बर्तन: हेल्दी और फिट रहने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले नॉन स्टिक बर्तन भी सेहत को कुछ खास फायदा नहीं पहुंचाते। भले ही इनमें ऑयल का कम इस्तेमाल होता है, लेकिन बहुत देर तक इनमें खाना पकाने से पॉलिटेट्राफ्लूरो इथेलिन नाम का केमिकल्स निकलता है, जो सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदेह होता है। इससे निकलने वाली गैस आदमी से लेकर जानवरों तक के लिए घातक हो सकती है। दमा के मरीजों को इसके इस्तेमाल पर खास ध्यान देना चाहिए। इसे धीमी आंच पर ही रखकर खाना पकाएं।
- एल्युमिनियम के बर्तन: ज्यादातर घरों में एल्युमिनियम के बर्तन में खाना बनाया जाता है। कड़ाही से लेकर कुकर और पतीले तक एल्युमिनियम के इस्तेमाल किए जाते हैं, क्योंकि ये सस्ते होते हैं और इनमें खाना भी जल्दी पकता है। लेकिन ये सेहत को किस तरह से नुकसान पहुंचा रहे हैं, इससे ज्यादातर लोग अनजान हैं। एल्युमिनियम नमक और एसिड के साथ मिलने पर पिघलने लगता है, जिससे भोजन में इसका अंश भी शामिल होता जाता है। भोजन में शामिल आयरन और कैल्शियम की मात्रा को एल्युमिनियम आसानी से अब्जॉर्ब कर लेता है। यह हड्डियों की बीमारियों का कारण बन जाता है। मानिसक रोगों के अलावा, टीवी और किडनी संबंधी रोग भी इससे होते हैं। रिसर्च से ये बात सामने आई है कि खाना बनाने के लिए एल्युमिनियम के बर्तन का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए और फिर भी इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े तो ज्यादा देर तक खाने को इस बर्तन में न रखें।
- स्टील के बर्तन: स्टील के बर्तन कार्बन, क्रोमियम और निकल इन तीन मेटल से मिलकर बने होते हैं। इसके बर्तन भी काफी सस्ते होते हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल भी बहुत ज्यादा किया जाता है। साथ ही, इन बर्तनों में बिना तेल का इस्तेमाल से भी खाना बनाना संभव होता है। बहुत तेज आंच पर खाना बनाने से इन बर्तनों में मौजूद केमिकल रिएक्ट करता है। इससे सेहत से जुड़ी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। सिर्फ बनाते वक्त ही नहीं, इन बर्तनों को साफ करते वक्त भी ध्यान रखना चाहिए। वैसे तो ये बर्तन बहुत आसानी से साफ हो जाते हैं, लेकिन ज्यादा घिसने की वजह से क्रोमियम और निकल निकलने लगता है। इसके लिए हमेशा कॉपर की लेयर वाली स्टील के बर्तन ही खरीदें।
- तांबे और पीतल के बर्तन: तांबे के बर्तन का इस्तेमाल भी काफी किया जाता है, खासतौर पर शादी समारोहों और बड़े फंक्शन्स में। तांबे के बर्तनों के ज्यादा इस्तेमाल से डायरिया, उल्टी और जी मिचलाने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कुछ तांबे और पीतल के बर्तनों पर दूसरे मेटल की लेयर चढ़ी होती है, जो कॉपर को खाने में शामिल होने से बचाता है। लेकिन जब ये कोटिंग हटने लगती है तो कॉपर का अंश खाने में पहुंचने लगता है। पुराने तांबे के बर्तनों में टिन और निकिल की कोटिंग होती है। इसका इस्तेमाल बहुत ही ज्यादा नुकसानदेह होता है।
- लोहे के बर्तन: खाना पकाने के लिए लोहे के बर्तन सही माने जाते हैं। इनमें किसी भी तरह का कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता। लोगों का मानना है कि लोहे के बर्तनों में खाना पकाने से बॉडी के लिए जरूरी आयरन की कुछ मात्रा की पूर्ति की जा सकती है, लेकिन रिसर्च से पता चला है कि लोहे के बर्तनों में बने खाने में ऐसा आयरन शामिल होता है, जो आसानी से अब्जॉर्ब नहीं हो पाता। एसिड की मात्रा वाले खाने में हालांकि ये आसानी से अब्जॉर्ब होता है।
- शीशा: शीशे के बर्तनों में खाना बनाना नहीं, बल्कि रखना बहुत ही नुकसानदेह हो सकता है। गर्म खाना शीशे से रिएक्ट करता है और उसका कुछ अंश खाने में शामिल हो जाता है। यह सेहत के लिए सही नहीं। इससे प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही, हेल्थ से जुड़ी और भी कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
प्रयोग करें मिट्टी के बर्तन: स्टील, एल्युमिनियम, तांबा, पीतल आदि के आने से काफी पहले से मिट्टी
के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता था। यह हर तरीके से सेहत के लिए फायदेमंद
होता है। मिट्टी के बर्तन कई बीमारियों से दूर रखते हैं। इन बर्तनों में
खाना धीरे-धीरे पकता है, जिससे उसके सारे न्यूट्रिशंस बने रहते हैं। हेल्थ
के लिए रोजाना 18 न्यूट्रिएंट्स का बॉडी में पहुंचना जरूरी माना गया है।
इसकी पूर्ति फलों, सब्जियों के साथ ही इन बर्तनों में खाना पकाकर भी की जा
सकती है। केवल मिट्टी के बर्तनों में ही खाना बनाने से उसके 100 प्रतिशत
न्यट्रिएंट्स वैसे ही बने रहते हैं। साथ ही, ये स्वाद को भी बढ़ाते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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