Friday, October 10, 2014

भारत में जन्मे थे एटीएम मशीन के आविष्कारक

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हाल ही में सोमालिया में देश का पहला एटीएम लगाया गया है। यह मशीन अभी सलाम सोमाली बैंक ने एक महंगे होटल में लगाई है। अभी इस एटीएम से केवल अमेरिकी डॉलर ही निकाले जा सकेंगे। सोमालिया की अर्थव्यवस्था बहुत ही खस्ताहाल है और इसकी वजह से यहां पर बैंकिंग सेक्टर अविकसित है। सोमालिया के लोगों में इसे लेकर काफी उत्सुकता है, क्योंकि उनके लिए यह पहला अनुभव होगा। एटीएम को लेकर लोगों में उत्सुकता होना भी स्वाभाविक है। इस मशीन का काम ही कुछ इस तरह है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस मशीन का आविष्कार किसने किया। आज हम आपको बताएंगे एटीएम से जुड़े कुछ फैक्ट। आइए जानते हैं इनके बारे में: 

  • भारत में जन्मे थे आविष्कारक: कैश निकालने वाली पहली एटीएम 27 जून 1967 में लंदन के बारक्लेज बैंक ने लगाई थी। यह मशीन कड़ी मेहनत के बाद स्कॉटलैंड के इन्वेंटर जॉन शेफर्ड बैरन ने बनाई थी। खास बात यह है कि दुनियाभर में एटीएम मशीन के जरिए लोगों को बैंक की लंबी-लंबी लाइनों से बचाने वाले जॉन शेफर्ड बैरन का जन्म 23 जून 1925 को मेघालय के शिलॉन्ग में हुआ था। उस समय उनके स्कॉटिश पिता विलफ्रिड बैरन चिटगांव पोर्ट कमिश्नर्स के चीफ इंजीनियर थे। बैरन की मृत्यु वर्ष 2010 में 84 वर्ष की उम्र में हुई। खास बात यह भी है कि बैरन एटीएम का पिन 6 डिजिट का करने के पक्ष में थे, लेकिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि 6 डिजिट ज्यादा है और लोग इसे याद नहीं रख पाएंगे। इस कारण बाद में उन्होंने चार डिजिट का एटीएम पिन बनाया। आज भी चार डिजिट का ही पिन चलन में है।  
  • जॉन शेफर्ड हैं आविष्कारक: एटीएम यानी ऑटोमैटिक टेलर मशीन की गिनती उन आविष्कारों में की जाती है, जिन्होंने इंसान के जीवन पर गहरा असर डाला है। इसने हमें बैंक की लंबी लाइनों से छुटकारा दिलाया है। कैश निकालने वाली पहली एटीएम 27 जून 1967 में लंदन के बारक्लेज बैंक ने लगाई थी। यह मशीन कड़ी मेहनत के बाद स्कॉटलैंड के इन्वेंटर जॉन शेफर्ड बैरन ने बनाई थी।   
  • एक मिनट की देरी होने से आया एटीएम का आइडिया: 1965 में एक दिन बैरन को पैसे की जरूरत थी, लेकिन वे बैंक एक मिनट की देरी से पहुंचे थे। बैंक बंद हो गया था और पैसे नहीं निकाल पाए थे। इसके बाद ही उन्होंने परिकल्पना की कि यदि चॉकलेट निकालने वाली मशीन की तरह पैसे निकालने वाली मशीन भी हो, जिससे 24 घंटे कैश निकाल सकें तो कितनी सहूलियत होगी। इसके बाद उन्होंने एटीएम मशीन का निर्माण किया।  
  • 1960 - एटीएम जैसी मशीन: न्यूयॉर्क के फर्स्‍ट नेशनल सिटी बैंक (अब सिटी बैंक) ने अपनी कई ब्रांच पर बैंकोग्राफ मशीन इंस्टॉल की। यह मशीन एटीएम जैसी ही थी, लेकिन इससे पैसे नहीं निकलते थे। इस मशीन से लोग अपने यूटिलिटी बिल चुकाते थे और रसीद प्राप्त करते थे। इसने खजांची का रोल खत्म किया।  
  • 1967 - कैश डिस्पेंसर मशीन: लंदन में बारक्लेज बैंक की एक शाखा में दुनिया का पहला कैश देने वाला एटीएम लगा था। इस एटीएम को जॉन शेफर्ड बैरन ने विकसित किया था। यह मशीन वाउचर के द्वारा पेमेंट करती थी, जो पहले से बैंक की शाखा से प्राप्त किया जा सकता था। इसे ब्रिटिश कंपनी डी ला रियू के इंस्‍ट्रूमेंट्स की मदद से बनाया गया था।  
  • 1968 - कार्ड ईटिंग मशीन: बारक्लेज और अन्य बैंकों ने एक ऐसी एटीएम लगाई, जिसमें पैसा निकालने के लिए कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ता था। यह कार्ड बैंक से पहले लेना पड़ता था। एक कार्ड एक बार मशीन में डालने पर बाहर नहीं आता था और हर बार नए कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ता था।  
  • 1987 - भारत में पहली बार एटीएम सुविधा: यह एटीएम हॉन्गकॉन्ग एंड शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एचएसबीसी) ने मुंबई में लगाया था। देश में अब एटीएम की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है। मार्केट रिसर्च फर्म एएम माइंडपॉवर सॉल्यूशन्स के मुताबिक 2015 तक देश में 2.3 लाख एटीएम होंगे।  
  • कैसे एटीएम तक पहुंचता है पैसा: आप-हम सभी रोज एटीएम से हजारों-लाखों रुपए निकालते हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर एटीएम में इतने पैसे रोज आते कहां से हैं? कैसे ये रुपए एटीएम मशीन में डाले जाते हैं और कैसे आपके बटन दबाते ही रुपए मशीन से बाहर निकल आते हैं? एटीएम मशीन में पैसे भरने की जिम्मेदारी बैंक की होती है। सभी बैंके अपने-अपने एटीएम में रोजाना या फिर कुछ समय के अंतराल पर पैसे भेजती हैं। ये पैसे ले जाने और एटीएम मशीन में डालने की जिम्मेदारी बैंक कर्मचारियों की होती है या फिर इस काम के लिए किसी एजेंसी की मदद ली जाती है। इस काम के लिए बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। इस काम के लिए माहिर लोगों को ही चुना जाता है।  
  • आइए जानते हैं बैंक से पैसा निकालकर एटीएम मशीन में भरने तक का पूरा घटनाक्रम: सबसे पहले कर्मचारी बैंक के बख्तरबंद खजाने के तहखाने में पैसों का हिसाब करते हैं। किसी एटीएम के लिए कितनी राशी भेजनी है यह तय किया जाता है। सभी एटीएम के लिए उनके इस्तेमाल के हिसाब से अलग-अलग राशी तय की जाती है। इस लॉकर में रुपयों के बंडलों को एक मजबूत बॉक्स में रखा जाता है। इस लॉकर में सभी कर्मचारियों को जाने की अनुमति नहीं होती है। सिर्फ वही कर्मचारी यहां जा सकते हैं, जिनको इसकी जिम्मेदारी मिली है। कड़ी सुरक्षा के बीच कर्मचारी इस बॉक्स को बैंक के बाहर निकालते हैं। इस रुपयों से भरे बॉक्स को सिक्योरिटी वैन में रखा जाता है। बैंक कर्मचारियों के साथ हथियारों से लैस सुरक्षा कर्मी भी होते हैं। एटीएम पर पहुंचने के बाद एटीएम  कक्ष को सील कर दिया जाता है। एटीएम में पैसा डालते समय बैंक कर्मचारी के अलावा किसी भी दूसरे इंसान को इसमें प्रवेश करने की इजाजत नहीं होती है। इस दौरान सुरक्षाकर्मी भी एटीएम कक्ष के बाहर ही पहरा देते हैं। एटीएम मशीन में ताला लगा होता है। इस ताले की चाभी कर्मचारी अपने साथ ही लेकर आते हैं। ताला खोलने के बाद मशीन के अंदर से पैसों का बॉक्स निकाला जाता है। इस बॉक्स को भी चाभी से खोला जाता है। इसे खोलने के बाद एक स्प्रिंग में रुपयों को फंसाया जाता है। स्प्रिंग में रुपयों को फंसाने से पहले हर एक नोट की गड्डी को चेक कर लिया जाता है, कहीं कोई नोट मुड़ा तो नहीं हुआ है। नोटों की गड्डी से रिबन या किसी भी प्रकार का बैंड हटा दिया जाता है। इसके बाद सभी नोटों को एक कतार में व्यवस्थित करके स्प्रिंग में फंसा दिया जाता है। बॉक्स को दोबारा लॉक करके एटीएम मशीन में लगा दिया जाता है। बॉक्स को मशीन में लगाने के बाद उसे उल्टा घुमाया जाता है। बॉक्स के पीछे की तरफ ही एक छेद होता है और इस तरफ से ही पैसे निकलते हैं। सब कुछ सेट करने के बाद, पहले अंदर के नंबर से बंद होने वाले दरवाजे को बंद किया जाता है। इसके बाद दूसरे दरवाजे को चाभी से बंद किया जाता है। आखिर में एटीएम के स्क्रीन पर पैसों की सेटिंग की जाती है। एटीएम में रुपए भरकर सभी सेटिंग करने के बाद कर्मचारी मशीन को ग्राहकों के उपयोग लायक बनाकर लौट जाते हैं। इसके बाद कोई भी इंसान एटीम मशीन से रुपए निकाल सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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