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आपने मथुरा के बरसाना में होने वाली प्रसिद्ध 'लट्ठ मार होली' के बारे
में सुना होगा। यहां के लोग होली में एक-दूसरे पर लाठियां बरसाते हैं।
झांसी में इसी तर्ज पर हर साल गोबर्धन पूजा के दिन 'लट्ठ मार दिवाली' मनाई
जाती है। ऐसा करके वे भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशियां मनाते
हैं, लेकिन यह लट्ठ मार दिवाली भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होता है। इस
दौरान काफी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी मौजूद रहते हैं। झांसी के हमीरपुर में यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही हैं। कई
गांवों के लोग इकट्ठा होकर इस पर्व को मनाते हैं। लठ्ठ मार दीवाली मनाने के
लिए लोग पैरों में घुंघरू बांधते हैं। पारंपरिक नाच-गाना करते हैं। इसी
बीच अचानक एक-दूसरे पर लाठी से हमला कर देते हैं। इसमें कई बार लोग घायल भी
हो जाते हैं। महिलाएं अपने पतियों के उत्साहवर्धन के लिए मौजूद रहती हैं।
लगता है मेला: हमीरपुर के गांव रमना और चकदाहा में 'लठ्ठ मार दीवाली' पर बड़ा मेला
लगता है। इसमें कई गांवों के लोग शामिल होते हैं। मैदान पर स्थानीय लोग
आदिवासियों की वेश-भूषा में होते हैं। वे रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं।
पैरों में घुंघरू बांधते हैं। अलग-अलग झुंड में ढोल-नगाड़ा बजाकर
नाचते-गाते हैं। इसी बीच लाठी से एक-दूसरे पर हमला करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को करते हैं समर्पित: लोगों का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण को लाठी चलाने की कला में महारत
हासिल थी। इससे वह दुश्मनों से अपनी रक्षा करते थे। ऐसे में उनकी तरह लोग
भी अपनी रक्षा के लिए इस दिन युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं। पूरा
कार्यक्रम भगवान कृष्ण को समर्पित होता है।
क्या हैं खेल के नियम: लठ्ठ मार दीवाली के कुछ नियम भी हैं। एक व्यक्ति पर तीन लोग पूरी ताकत
के साथ हमला करते हैं। दूसरा व्यक्ति अपना बचाव करता है। जब तक वह या उसपर
हमला करने वाले थक नहीं जाते, तब तक एक-दूसरे पर लाठियां चलती रहती हैं।
इस खेल में कई लोग घायल भी हो जाते हैं।
महिलाएं और बच्चे करते हैं प्रोत्साहित: 'लठ्ठ मार दीवाली' के दौरान महिलाएं और बच्चे काफी संख्या में मौजूद
रहते हैं। अधिकतर महिलाओं के पति इस अनोखी दीवाली के खेल में शामिल होते
हैं। ऐसे में वे अपने पति का उत्साहवर्धन करती रहती हैं, ताकि उनके पति जीत
सके।
क्या कहते हैं लोग: स्थानीय निवासी बताते हैं कि युद्ध कला में निपुण होने के
लिए यहां 'लठ्ठ मार दीवाली' मनाई जाती है। 80 वर्षीय बुजुर्ग पप्पन देव
बताते हैं कि गांव में सैकड़ों साल से यह परंपरा चली आ रही है। इस प्रथा से
साल भर ऊर्जा का संचार होता है। इसमें शामिल होने वाले लोग अपने परिवारों
की रक्षा के लिए पूरी ताकत के साथ सामने आते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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