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आज के समय में अधिकांश लोगों की समस्या है अधिक गुस्सा करना। क्रोध
कभी भी फायदेमंद नहीं हो सकता है, क्योंकि क्रोध के वश में व्यक्ति कई बार
कुछ ऐसे काम कर देता है जो भविष्य में बड़ी परेशानियों का कारण बन जाते
हैं। गुस्से में वाणी का संयम टूट जाता है और कई ऐसे शब्द भी हम बोल देते
हैं जो कि अशोभनीय होते हैं। ये शब्द दूसरों के मन को पीड़ा भी पहुंचाते
हैं। गुस्से के कारण घर-परिवार और समाज में भी हमारा सम्मान घटता है। काम
करते समय किया गया गुस्सा हमें असफलता की ओर धकेल देता है। अत: गुस्से पर
काबू पाना बहुत जरूरी होता है। क्रोध पर काबू पाने के लिए कई प्रकार के
उपाय बताए गए हैं। यहां एक प्रेरक प्रसंग से जानिए क्रोध पर काबू पाने का
अनोखा तरीका:
एक लड़के को गुस्सा बहुत आता था। एक दिन उसके पिताजी ने उसे सबक
सिखाने का निश्चय किया। उन्होंने उसे कीलों से भरी एक थैली देते हुए कहा कि
जब भी गुस्सा आए तो घर के आंगन के बाहर लगी लकड़ी की फेंस में एक कील ठोक
देना। पहले दिन लड़के ने 37 कीलें ठोक दीं। वह अपनी हालत पर खुद ही दुखी हो
गया। अगले कुछ सप्ताहों में लड़के ने अपने गुस्से पर काबू पाना शुरू किया
और कीलों की संख्या नाटकीय रूप से घट गई। लड़के को यह अहसास होने में
ज्यादा वक्त नहीं लगा कि फेंस में कील ठोकने की तुलना में गुस्से पर काबू
पाना ज्यादा आसान है। जल्द ही वह दिन भी आया जब लड़के का मिजाज एक बार भी
नहीं बिगड़ा। उस दिन उसने फेंस पर एक भी कील नहीं ठोकी। अपनी इस उपलब्धि पर वह बहुत खुश हुआ। वह दौड़कर पिताजी के पास गया और
यह बात बताई। स्वाभाविक था कि पिताजी भी अपनी ट्रिक कामयाब होने के कारण
खुश हुए। अब उन्होंने लड़के से कहा कि जब भी पूरा दिन बिना गुस्सा किए
गुजरे तो एक कील निकाल लेना। वक्त लगा, लेकिन एक दिन वह भी आया जब लड़के ने
फेंस से सारी कीलें निकाल डालीं। अब तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे
अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ। उसने पिताजी को यह बात बताई। पिता धीमे से
मुस्कराए और बड़े प्रेम से उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे फेंस तक ले गए।
फिर कहा, 'मेरे बेटे, शाबास! लेकिन फेंस की ओर देखो। अब वह पहले जैसी कभी नहीं रहेगी। कील के कारण बने छेद हमेशा बने
रहेंगे।' फिर उन्होंने समझाया कि जब हम गुस्से में किसी से कुछ कहते हैं तो
इन कीलों के छेद की तरह उनसे भी स्थायी घाव बन जाते हैं। फिर आप चाहे
जितनी बार माफी मांग लें, लेकिन व्यक्ति के दिल पर पड़ी चोट तो बनी ही रहती
है।
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साभार: भास्कर समाचार
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