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दीपावली के दौरान बड़े पैमाने पर मिठाइयों की बिक्री होती है।
मिठाइयों की मांग के अनुरूप आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निर्माता इसमें
मिलावट कर अधिक से अधिक लाभ कमाने की फिराक में रहते हैं। मिठाई को अधिक
रंगीन और आकर्षक बनाने के लिए घातक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जिनका
स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अधिक रंगीन मिठाइयों से कैंसर रोग का
खतरा होने की संभावना होती है। खुशियों के पलों में मिठास घोलने वाली
मिलावटी मिठाइयां
घातक बीमारियों की सौगात देती है।
मिलावटी दूध और मिलावटी खोया का इस्तेमाल: मिठाइयों के लिए दूध की आवश्यकता होती है। मिलावटी दूध से लेकर
मिलावटी खोवे की आशंका अधिक होती है। बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर दूध और खोवे की बढ़ती मांग
तथा प्रशासनिक ढिलाई से यह गोरखधंधा पनपते देर नहीं लगती। दूध में मिलावट से भले ही बच जाए, लेकिन मिठाइयों में मिलावट को शक्कर और फ्लेवर(स्वाद) के कारण पकडऩा आसान
नहीं होता। इसे केवल जांच द्वारा साबित किया जा सकता है। मिठाइयों को तैयार
करने के लिए आवश्यक मुख्य सामग्री खोवे में बड़े पैमाने पर मिलावट की जाती
है। खोवे में आटा, मैदा, बेसन, आरारोट आदि खाद्य सामग्रियों की मिलावट की जाती है। खोवे में मिलावट को आयोडीन टिंक्चर का प्रयोग कर पहचाना जा सकता है। आयोडीन टिंक्चर की कुछ बूंदों को जांच के नमूनों में डालते ही प्रयोग वाले नमूनों से चमकीला नीला रंग निकलता है। मिठाई में अनुपात से अधिक या अत्यधिक रंगों का इस्तेमाल किए जाने पर इसके सेवन से स्वास्थ्य पर
विपरीत असर पड़ता है। हालांकि अधिक खोवे का सेवन ही स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक होता है, लेकिन उसमें अधिक रंग आदि का इस्तेमाल किए जाने से
समस्या और बढ़ जाती हैं। रंगों के अधिक मात्रा में शरीर में पहुंचने पर कैंसर जैसी बीमारी होने का खतरा और बढ़ जाता है। विदेशों के
कई अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि खाद्य पदार्थों में उपयोग में लाए जाने
वाले रंगों (डाई) के मानक प्रमाण से अधिक सेवन से डीएनए की बनावट पर असर
पड़ता है। साथ ही अनुवांशिकता पर भी विपरीत असर होता है। हजार में से एक
व्यक्ति को खाद्य रंगों से देह में खुजली और चकत्ते आदि की शिकायत होती है।
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साभार: भास्कर समाचार
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