Saturday, October 25, 2014

प्रेरक प्रसंग: बड़े नुकसान के बाद भी शांत रहे न्यूटन

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गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले ब्रिटेन के महान वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन बहुत ही शांतिप्रिय व्यक्ति थे। बड़ी से बड़ी परेशानी में भी वे अपना आपा नहीं खोते थे। हर प्रतिकूल परिस्थिति का सामना शांति एवं धैर्य से करते थे। उनके इसी स्वभाव को दर्शाती उनके जीवन की एक घटना है। बात उस समय की है, जब न्यूटन ट्रिनिटी कॉलेज में प्रोफेसर थे। उस समय उनकी आयु 51 वर्ष थी। तब तक न्यूटन अनेक प्रयोग कर एक वैज्ञानिक के रूप में ख्याति और विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे। वे उस समय एक ऐसी पुस्तक लिखने में व्यस्त थे, जिसमें विगत वर्षों में उनके द्वारा किए गए सभी प्रयोगों का विवरण था। काम बड़े परिश्रम का था, जिसमें वे दिन-रात लगे रहते।
एक दिन वे अपनी मेज पर कागजों को बिखरा छोड़कर गिरिजाघर में प्रात:कालीन प्रार्थना के लिए चले गए। उनके जाने के बाद घर में उनका डायमंड नाम का कुत्ता ही था। न्यूटन की अनुपस्थिति में मेज पर एक चूहा आकर उनके कागज कुतरने लगा। स्वामी भक्त डायमंड से यह देखा नहीं गया और वह चूहे पर झपट पड़ा। इस छीना-झपटी में चूहा तो भाग गया, किंतु मेज पर रखी जलती हुई मोमबत्ती लुढ़क गई और कागजों में आग लग गई। न्यूटन ने लौटने पर पाया कि उनकी वर्षों की साधना राख के ढेर में तब्दील हो गई है। यह देखकर भी न्यूटन ने अपने कुत्ते से केवल यही कहा, 'ओ डायमंड! तुझे पता नहीं कि आज तूने क्या शैतानी की है।' उन्होंने न कुत्ते को मारा और न ही क्रोध जाहिर किया। वे पुन: अपनी पुस्तक को शुरू करने में उसी उत्साह से जुट गए। किसी बड़े नुकसान पर आवेश रहित रहकर शांति से उसे सह जाना, वह राह खोल देता है जिस पर चलने से उपलब्धियां हासिल होती हैं। वस्तुत: प्रगति, शांति में ही संभव है। 
साभार: भास्कर समाचार
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