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हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर हलोग गाँव में दीवाली से अगले दिन काे पत्थरों की
खूनी परंपरा का खेल खेला गया। नरबलि से शुरू हुई परंपरा पशुबलि के बाद
पत्थरों के खूनी खेल तक सिमट आई है। इस खेल को देखने के लिए हलोग में
हजारों की भीड़ जमा हुई। दिवाली के अगले दिन मनाए जाने वाले धामी के
पत्थरों के मेले में करीब 45 मिनट तक कटेडू आैर जमोगी राजवंश के लोग
एक-दूसरे पर पत्थर मारते रहे। कटैडू के बबली के सिर पर लगे पत्थर से खून
निकलने के बाद ही पत्थरों की बरसात बंद की गई। इसके बाद बबली के खून से मां
भद्रकाली को तिलक लगाया गया। धामी में सुबह से मेले के लिए भीड़ जुटने लगी थी। समय के साथ लोगों की भीड़
बढ़ती रही। दोपहर बाद करीब तीन बजे कटेडू आैर जमोगी घरानों के लोग पहुंचे।
इसके चंद मिनटों के बाद दोनों तरफ से पत्थर बरसाने का सिलसिला शुरू हो
गया। दोनों ओर से लगातार छोटे आैर बड़े पत्थर लगातार बरसाए गए। इस बीच
कटेडू के बबली के सिर पर पत्थर लगने से उसके माथे से खून निकलने लगा। इसके
बाद दोनों ही तरफ से पत्थर बरसाने का सिलसिला थम गया। मेला कमेटी के
आयोजकों के साथ राजवंश के सदस्यों ने मेला स्थल के नजदीक बने मंदिर में
जाकर पूजा अर्चना की। मेले में कटेडू आैर जमोगी राजवंश(खानदान) के जितने भी लोग पहुंचते
हैं। वह दोनों तरफ से पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इसमें कहीं किसी को
चोट न लगे, यह नहीं सोचा जाता है, बल्कि मेले में शामिल लोग पत्थर लगने से
खून निकले, इसे अपना सौभाग्य समझते हैं। इसलिए लोग मेले में पीछे रहने की
बजाय आगे बढ़कर दूसरी तरफ के लोगों पर पत्थर फेंकने के लिए जुटे रहते हैं।
धामी के पत्थर मेले को देखने के लिए धामी, घणाहट्टी, दाड़गी, पाहल ही नहीं
बल्कि शिमला से भी लोग पहुंचे। मेले के लिए धामी के लोग खासतौर पर अपने घर
पहुंचते हैं। पुराने समय में हर घर से एक व्यक्ति को मेले के लिए पहुंचना
होता था। अब हालांकि इसकी बाध्यता नहीं है, इसके बावजूद हजारों लोग यहां
आते हैं।
क्या है मान्यता: स्थानीय निवासी प्रेम राज शर्मा ने बताया कि पहले यहां हर साल नर बलि
दी जाती थी। एक बार रानी यहां सती हो गई। इसके बाद से नर बलि को बंद कर
दिया। इसके बाद पशु बलि शुरू हुई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया। इसकी
बजाय पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब
किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मंदिर में लगाया जाता है। हर
साल दिवाली से अगले दिन ही इस मेले का आयोजन धामी के हलोग में किया जाता
है।
दो टोलियां ही मान्य: मेला कमेटी धामी के मुताबिक एक ओर राज परिवार की तरफ से जठोली, तुनड़ू
और धगोई और कटेड़ू खानदान की टोली और दूसरी तरफ से जमोगी खानदान की टोली
के सदस्य ही पत्थर बरसाने के मेले भाग ले सकते हैं। बाकी लोग शिरकत नहीं कर
सकते।
पहले नरसिंह भगवान का पूजन: स्थानीय निवासी कमलेश वर्मा ने
बताया कि ‘खेल का चौरा’ गांव में बने सती स्मारक के एक तरफ से जमोगी दूसरी
तरफ से कटेडू समुदाय पथराव करता है। मेले की शुरुआत राजपरिवार के नरसिंह के
पूजन के साथ हुई। फिर राजपरिवार खेल चौंरा पहुंचा।
सती का पूजन: राजपरिवार के कंवर जगदीप सिंह ने सती पूजन
करके मेले की शुरुआत की। इसके बाद पत्थरों का मेला शुरू हो गया। कटेडू समुदाय के मिस्त्री का काम करने वाले दयाराम (बबली) के सिर पर पत्थर लगने के
बाद मेला समाप्त हो गया।
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साभार: भास्कर समाचार
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