एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
पुणे के पिंपरी में एमआईडीसी क्षेत्र में एन्प्रो इंडस्ट्री प्रा. लिमिटेड का ऑफिस है। वहां कई छोटी इंडस्ट्रीज हैं। 1988 में आईआईटी कपल श्रीकृष्ण और अलका करकरे ने इसे आरंभ किया था। आज यह मैकेनिकल फ्लूइड
सिस्टम के निर्माण और डिजा़इन में ग्लोबल लीडर है। इसमें 300 से ज्यादा कर्मचारी है। हाल ही में उन्होंने एक प्रयोग किया, जिसने सिर्फ हर महीने सैकड़ों लीटर पेट्रोल बचत होने लगी बल्कि, फिटनेस के प्रति जागरूक कर्मचारी भी तैयार हुए। उन्होंने किया क्या? श्रीकृष्ण और अलका का 25 साल का बेटा अनुज भी आईआईटी मुंबई की 2014 बैच से है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह इंटर्नशिप के लिए फ्रांस गया था और वहां देखा कि लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। पहले उन्होंने एक सर्वे किया कि उनकी कंपनी के कर्मचारी किन क्षेत्रों में रहते हैं। उन्होंने पाया कि 78 प्रतिशत कर्मचारी समीप के निगड़ी क्षेत्र की रहवासी कॉलोनियों में रहते हैं। फैक्ट्री तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं, जिनकी दूरी 6.1 से 7.3 किलोमीटर है। शेष कर्मचारी पुणे से आते हैं, जो करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। पाया गया कि कार की तुलना में लोगों को साइकिल से आने में करीब दो मिनट ज्यादा का समय लगता है।कर्मचारियों के साइकिल इस्तेमाल में पहली बाधा थी साइकिलों की ज्यादा कीमत। कंपनी ने इसमें 75 प्रतिशत का योगदान देने का फैसला किया, जिसे बाद में बिना किसी ब्याज के तनख्वाह से धीरे-धीरे काट लिया जाए। फिर साइकिलिंग कंपनी का सेमिनार आयोजित किया गया। अलग-अलग कीमत की कई साइकिल कर्मचारियों को यहां दिखाई गईं। कर्मचारियों को यह भी छूट थी कि वे अपनी पसंद की कोई भी साइकिल बाजार से भी खरीद सकते थे। आने-जाने के लिए कर्मचारी साइकिल का उपयोग करें इसके लिए कंपनी ने चेंजिंग रूम, शॉवर फेसेलिटी और साइकिल के लिए अलग से पार्किंग बनाई गई। एयर पम्प की भी व्यवस्था की गई। कंपनी के मालिकों ने भी साइकिल से आना शुरू किया। इसका बड़ा रिस्पॉन्स सेमिनार में देखने को मिला। लोग धीरे-धीरे साइकिल की ओर शिफ्ट होने लगे। नियमित रूप से साइकिल से आने वालों के लिए कंपनी ने इन्सेंटिव देने की घोषणा की। जो कर्मचारी साइकिल से आने लगे उन्हें सोडेक्सो मील के कूपन दिए जाने लगे। हर रोज गेट पर ही साइकिल से आने वालों को गेटकीपर कूपन दे देता।
कंपनी ने साथ-साथ कर्मचारियों को यह बताना भी जारी रखा कि साइकिल को बढ़ावा देने का मुख्य उद्देश्य ईंधन की खपत और अन्य खर्च घटाना तो है ही साथ व्यक्ति की शारीरिक तंदुरुस्ती बढ़ाना भी है। हमारी व्यस्त दिनचर्या में यह काफी मुश्किल है कि हम कसरत के लिए समय निकाल सकें। साइकल चलाना इस कमी को पूरा कर देता है। अब कंपनी में कर्मचारियों को आपस में चुटकी लेते सुना जा सकता है कि तुमने अपने पहिए बदले कि नहीं। या किसी कर्मचारी को यह कहते भी सुना जा सकता है कि मैंने अपना लाइफस्टाइल इन्प्रो में बदल दिया। साइकिलिंग के इस नए कॉन्सेप्ट ने 27 लोगों का आने-जाने का तरीका स्थायी रूप से बदल दिया। अन्य लोगों ने भी अपनी सुविधा के अनुसार इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है लेकिन, ये लोग भी सप्ताह में दो या तीन बार तो साइकिल से आने लगे हैं। मुख्य उद्देश्य तो कर्मचारी को एक्सरसाइज के लिए मोटिवेट करना है, क्योंकि कर्मचारी फिटनेस के प्रति भी जागरूक नहीं है। करकरे परिवार को भरोसा है कि साइकिलिंग का यह संक्रमण पूरे वर्कफोर्स में जल्द ही फैलेगा और पूरे वर्कफोर्स हैल्दी बनने की ओर बढ़ेगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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