Thursday, January 5, 2017

पीएम ने गर्भवतियों के लिए घोषणा तो कर दी लेकिन अस्पतालों में सुविधा और स्टाफ की कमी का क्या?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 से देश भर में गर्भवती महिलाओं के लिए 6000 रुपए आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है, लेकिन इस आर्थिक सहायता के साथ हरियाणा में फिलहाल इलाज के संसाधानों की भारी जरूरत है। हालात यह हैं कि प्रतिदिन प्रदेश में सीएचसी, पीएचसी से लेकर सिविल हॉस्पिटल तक में करीब 5670 गर्भवती इलाज को पहंुंचती हैं। औसतन 250 से 270 महिलाएं हर जिले में। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पूरे प्रदेश में सिर्फ 72 गायनोकॉलोजिस्ट हैं वह भी सिविल हॉस्पिटल में। प्रदेश में 2.5 करोड़ की आबादी में से 1.65 करोड़ ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। इनमें 77 लाख महिलाएं हैं, इनके इलाज के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में एक भी गायनोकॉलोजिस्ट तैनात नहीं किया गया है। सीएचसी, पीएचसी में सामान्य डिलीवरी की सुविधा तो उपलब्ध करवाई गई है, लेकिन इलाज की व्यवस्था स्टाफ नर्स देखती हैं। प्रदेश की 72 पीएचसी और 3 सीएचसी में तो कोई डॉक्टर ही नहीं है। जींद में तो पूरे जिले में ही कोई गायनोकॉलोजिस्ट नहीं है। यहां किसी भी गंभीर स्थिति में केस रोहतक पीजीआई ट्रांसफर कर दिया जाता है। ऐसा ही हाल कुछ गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड का भी है। 21 जिलों में सिर्फ 12 रेडियोलॉजिस्ट तैनात हैं। नौ जिलों में सिर्फ ट्रेनिंग देकर काम चलाया जा रहा है। कोई बड़ा मसला होने पर केस रेफर कर दिए जाते हैं। 
प्रति जिले में औसतन 30 से 35 अल्ट्रासाउंड होते हैं। इसमें छह से आठ दिन की वेटिंग चल रही है। प्रदेश में एंबुलेंस सुविधा भी कुछ खास ठीक नहीं है। यहां प्रसूताओं के लिए एंबुलेंस 108 की सुविधा तो है ही नहीं, जबकि जननी शिशु सुरक्षा योजना की शुरुआत एक जून 2011 को यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी हरियाणा के मेवात से की थी। जो 102 और 104 चल भी रही है वह भी ग्रामीण इलाकों में बमुश्किल ही पहुंचती हैं। 
सरकार की ओर से सुविधाएं और सुरक्षा देने पर डॉक्टर सर्विस में नहीं रहे हैं। कई बार सरकार के सामने डिमांड रखी गई। सहमति भी बनी लेकिन लागू नहीं हो रही है। सर्जन से पोस्टमार्टम तक कराया जाता है, ऐसे में डॉक्टर नौकरी भी छोड़ रहे हैं। - डॉ सतबीर सिंह परमार, प्रदेश अध्यक्ष, हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विसेस एसोसिएशन 
रोहतक जिले के सरकारी अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी है। रोहतक अस्पताल में 5 स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। पीजीआईएमएस के एक्सपर्ट अलग से हैं। खंड स्तर पर बने सरकारी अस्पतालों में छह एमबीबीएस डॉक्टरों को छह-छह महीने का इमोक (इमरजेंसी मेडिकल ऑब्सट्रेक्टिव केयर) प्रशिक्षण दिलाकर वहां तैनात किया जाता है, जो डिलीवरी संभालते हैं। मगर जिले में गर्भवतिी महिलाओं के लिए सिविल अस्पताल रोहतक में ही एक अल्ट्रासाउंड मशीन है। इससे रोजाना औसतन 50 से ज्यादा अल्ट्रासाउंड किए जा रहे हैं। सामान्य मरीजों को दस से पंद्रह दिन इंतजार करना पड़ता है। पीजीआई में करीब दो साल बाद दोबारा अल्ट्रासाउंड सुविधा शुरू हो गई है। 
अम्बाला सिटी, कैंट और नारायणगढ़ सिटी हॉस्पिटल में 4 गायनोकोलॉजिस्ट हैं। यहां छह गायनोकोलॉजिस्ट की कमी है। सीएचसी, पीएचसी पर सामान्य डिलीवरी की सुविधाएं स्टाफ नर्स ही संभालती हैं। जिले में करीब 22 एंबुलेंस हैं। मगर उनमें से 15 एंबुलेंस ही चालू कंडीशन में हैं। सिटी सिविल अस्पताल नारायणगढ़ में ही अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था है। एक दिन में 10 से 15 महिलाओं का ही अल्ट्रासाउंड होता है। 
19 में से 11 पीएचसी में डिलीवरी सुविधा नहीं। जिले में मात्र 4 ही गायनोकोलॉजिस्ट हैं। चारों सिविल अस्पताल में ही कार्यरत हैं। जिले के दूर दराज के गांवों से भी मरीजों को सिविल अस्पताल ही आना पड़ता है। एंबुलेंस की सुविधा भी बमुश्किल ही मिल पाती है। 
जिले में केवल फतेहाबाद के अस्पताल में दो गायनकोलॉजिस्ट हैं। एक अनुबंध के आधार पर है। बाकी कहीं भी नहीं हैं। जिले जिले में 4 सीएचसी 14 पीएचसी में से 9 में सामान्य डिलीवरी की जिम्मेदारी स्टाफ नर्स निभाती हैं। हाई रिस्क वाली महिलाओं को रेफर कर दिया जाता है। रात को आने वाले केस अिधकतर रेफर ही होते हैं, यहां अटेंड तक नहीं किए जाते। 
गवर्नेमेंट हॉस्पिटल में सिर्फ दो गायनोकोलॉजिस्ट हैं जबकि चार की जरूरत है। दो लेडी मेडिकल अफसर की भी कमी है। 5 सीएचसी 13 पीएचसी हैं, इनमें सामान्य डिलीवरी की सुविधा है। लेकिन सीजेरियन डिलीवरी के लिए नागरिक अस्पताल एकमात्र विकल्प है। कई बार गंभीर हालत में, सिविल हॉस्पिटल तक पहुंचने में प्रसूताओं की हालत ज्यादा बिगड़ जाती है। किसी पीएचसी-सीएचसी में अल्ट्रासाउंड सुविधा नहीं है। जबकि नागरिक अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की एक मशीन है। दिनभर में 30-35 अल्ट्रासाउंड ही हो पाते हैं। जबकि इतने ही लोग अल्ट्रासाउंड नहीं हो पाने से वापस लौट जाते हैं। कम से कम 6-7 दिन में नंबर आता है। 
जींद जिले में गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए कोई भी गायनोकोलॉजिस्ट नहीं है। सिर्फ दो लेडी डॉक्टर डीजीओ डिप्लोमा होल्डर हैं। सीएचसी पीएचसी में डिलीवरी की जिम्मेदारी अधिकतर स्टॉफ नर्स के भरोसे हैं। जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा उपलब्ध नहीं है। प्राइवेट सेंटर में गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है। जिले में सिर्फ 14 सरकारी एंबुलेंस हैं। आपतकालीन स्थिति में एक कॉल पर एंबुलेंस का पहुंचना मुश्किल ही रहता है। 
जिले में आदमपुर, हांसी और हिसार में सिविल अस्पताल है। जिसमें हिसार और हांसी में एक-एक गायनोकोलॉजिस्ट है। आदमपुर सिविल हॉस्पिटल, 27 पीएचसी, 8 सीएचसी और 2 अर्बन हेल्थ सेंटर में कोई गायनोकोलॉजिस्ट नहीं हैं। इनमें डिलीवरी स्टाफ नर्स के हवाले रहती है। एक गायनोकोलॉजिस्ट की ड्यूटी रोटेशन में रखी जाती है। जिले भर में 250 ये 270 गर्भवती नियमित ओपडी को आती हैं। केवल हिसार में अल्ट्रासाउंड की सुविधा है, जिसमें 30 से 35 अल्ट्रासाउंड ही हो पाते हैं। हांसी में मशीन जरूर है लेकिन यह सुचारु रूप से नहीं चल पाती।

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साभार: भास्कर समाचार 
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