Monday, October 3, 2016

कठिन परिस्थिति में सामंजस्य दिखाना भी देने की कला जैसा है

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
मैंने 2 अक्टूबर को सुबह 3:30 बजे उठने के लिए अलार्म लगाया था और उसके बजने के ठीक आधे घंटे पहले मुझे एक दोस्त के फोन ने चौंका दिया, जो चेन्नई से 600 किमी दूर पुश्तैनी गांव में ठहरा हुआ था। मुझे किसी
बुरी खबर की आशंका हुई, क्योंकि साधारण फोन कॉल का यह कोई वक्त नहीं था। यदि रात के असामान्य समय कोई फोन आए तो ऐसा लगना स्वाभाविक ही है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मेरी आशंका गलत भी नहीं थी, क्योंकि एक दिन पहले ही हमारी बात हुई थी और उसने बताया था कि उसने रात की ट्रेन में फर्स्ट क्लास एसी कूपे बुक किया है ताकि वह अपनी पत्नी, बेटी बेटे के साथ शांति से नींद लेते हुए सुरक्षित यात्रा कर सके। 'सुरक्षा' ऐसा शब्द है, जिस पर अमेरिका शिफ्ट होने के बाद से वह खासतौर पर ध्यान रखता है। अमेरिकी लोगों के बारे में मेरी आम धारणा यह है कि वे सुरक्षा को लेकर उन्माद के शिकार होते हैं। फिर यह जिंदगी की सुरक्षा हो अथवा सामान की। यह शायद अत्यधिक संपन्नता और सुविधा की अधिकता के कारण होता हो, लेकिन अमेरिकियों में यह खासियत पाई जाती है। यही वजह थी कि तड़के फोन सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया था। 
दूसरी तरफ आवाज बिल्कुल शांत थी और उसने कहा, 'मैंने तुम्हें फोन इसलिए किया, क्योंकि तुम्हें अलसुबह की फ्लाइट पकड़नी है तो सोचा तुम्हें जागने में मदद कर दूं।' अब चौंकने की बारी थी, क्योंकि मेरी इस मित्र ने नींद में सफर करने के लिए इतनी जहमत उठाई थी अौर यह अब तक जाग रहा है। जब मैंने इतने हाई क्लास का टिकट लेने के बाद भी सोने का कारण पूछा तो उसने मुझे रोचक कहानी सुनाई। चेन्नई की ट्रेन पकड़ने के लिए शनिवार को स्टेशन पर पहुंचने तक सबकुछ एकदम ठीक था। पूरा परिवार आराम से बैठ गया। वह मिनरल वॉटर लाने के लिए कूपे से बाहर गया, क्योंकि परिवार ने रात का भोजन कर लिया था, उसे किसी अन्य चीज की जरूरत नहीं थी। चार बर्थ के कूपे को लॉक करके वे रविवार को सुबह 7 बजे चेन्नई पहुंचने तक नींद निकालने के लिए तैयार थे। पूरी ट्रेन में जरूरत से ज्यादा भीड़ थी। किसी सोशल नेटवर्किंग साइट ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के गिरते स्वास्थ्य के बारे में अफवाह फैला दी और अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ता राज्य की राजधानी जाने वाली हर ट्रेन में सवार हो गए। सारी ट्रेनों में जरूरत से ज्यादा यात्री सवार हो गए। वहां सेना की उत्तरी कमान का एक युवा अधिकारी था। चार दिन पहले पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद किसी जवाबी प्रतिक्रिया की आशंका में उसकी टीम अग्रिम मोर्चे पर जा रही थी। इसलिए उसकी छुट्‌टी कैंसल हो गई थी। मेरे मित्र ने देखा कि वर्दीधारी वह सैनिक, जिसे अपनी जान की फिक्र नहीं है, वह सोने के लिए बर्थ सही, बैठने के लिए सीट के लिए याचना कर रहा था। शालीनता से पेश अा रहा टीसी उसकी पूरी मदद करने को तैयार था, लेकिन जितना उसने सोचा था, ट्रेन उससे ज्यादा भरी हुई थी। 
सेना के जवान ने अपनी इमरजेंसी की दुहाई देते हुए अनुरोध किया कि कम से कम खड़े होने की जगह ही दिलवा दीजिए। टीसी तो बहुत चाहता था कि वह जवान की मदद कर सके, लेकिन स्थिति उसके बस में नहीं थी। जब मेरे मित्र ने उस युवा सैन्यकर्मी की निर्भीक आंखों में आशंका की छाया देखी, तो उसने टीसी से अनुरोध किया कि क्या वह जवान के फर्स्ट क्लास के टिकट का भुगतान कर उसे अपने कूपे मेें बिठा सकता है, क्योंकि कूपे की चारों बर्थ उसके ही पास है। टीसी ने सहमति जताई और जवान उसके कूपे में गया। महिला वर्ग तो ऊपर की बर्थ पर जल्दी ही सो गया और किशोर बेटे सहित मैं सीमा के अग्रिम मोर्चे पर घटी बहादुरी की मनमोह लेने वाली कहानियां सुनने लगे, जो वह युवा अधिकारी सुना रहा था। वे उन कहानियों में ऐसे डूबे की पता ही नहीं चला कि 3 कब बज गए। उन कहानियों ने दोनों को अनोखे गर्व के अहसास से भर दिया। लगभग वही समय हो गया था, जब मुझे उठकर बिलासपुर रवाना होना था। 
आखिर में उसने कहा, 'यदि यह युवा व्यक्ति देश की रक्षा के लिए जान देने को तैयार है तो एक रात की आरामदायक नींद का त्याग करना कौन-सी बड़ी बात है।' दान को अक्सर पैसे से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन दान देने की क्रिया कितने रूपों में की जा सकती है, इसका शायद हमें अंदाजा नहीं है। ुझे बहुत शिद्‌दत से महसूस हुआ कि 'जॉय ऑफ गिविंग वीक' को शुरू करने का कितना अच्छा तरीका है। देश सेवा के लिए जा रहे अफसर की सेवा तो हम क्या कर पाएंगे पर कुछ मदद ही कर सकें तो यह हमारा ही सौभाग्य होगा। 
फंडा यह है कि सामने पैदा हो रही कठिन परिस्थिति में सामंजस्य दिखाना, अपनी सुविधाओं को त्यागकर किसी को स्थान देना भी आर्ट ऑफ गिविंग यानी देने की कला को जीना है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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