Saturday, October 15, 2016

जीवन प्रबंधन: आपके जीवन को मजबूती देता है सशक्त उद्‌देश्य

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
वे हरियाणवी थे। अच्छा भोजन और अच्छी जिंदगी उनका मंत्र था। नई दिल्ली के दरियागंज स्थित अपने घर के नीचे उनकी 60 साल पुरानी अानंद डेयरी थी। उनकी दीनचर्या में सुबह 4 बजे से काफी पहले उठना और यह
सुनिश्चित करना होता कि उनके ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता का दूध जितनी जल्दी हो सके मिले ताकि उनके दिन की अच्छी शुरुआत हो सके। दूध की गुणवत्ता के साथ उनकी मीठी जबान का कमाल था कि कुछ वर्षों में उनका बिज़नेस बहुत बढ़ गया और वे सिविल लाइन्स के पॉश रिहायशी इलाके में रहने गए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनके भूतकाल से अपरिचित लोगों को यह बात हजम ही नहीं होती कि सिविल लाइन्स में रहने वाला व्यक्ति डेयरी चलाता है। वे उनसे पूछते कि जब उनके पास इतना पैसा है तो वे दूध का धंधा क्यों करते हैं? 
उनके पास हमेशा एक ही सरल उत्तर होता: यह व्यवसाय मुझे सुबह तड़के से देर शाम तक दौड़ाता रहता है और मुझे जल्दी सोने, जल्दी जागने और अच्छा खाने की स्वच्छ जीवनशैली अपनाने में मदद करता है। मैं अगले दिन का इंतजार करता हूं, क्योंकि मेरे ग्राहक मेरा इंतजार करते हैं ताकि सुबह की चाय के कप के साथ उनके दिन की शुरुआत हो सके। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में रहने के बावजूद चंदन सिंह दरियादिली के लिए प्रसिद्ध थे। वे 'दूध पियोजी, सेहत-वेहत बनाओ' इस डायलॉग के साथ कई लोगों को दूध पिलाया करते थे। क्षेत्र में उनका बहुत सम्मान था और आनंद डेयरी लैंडमार्क। जब दूध प्लास्टिक के पाउच में बंटने लगा तो उनके ग्राहकों की संख्या कम हो गई और उनका बेटा न्यूज़प्रिंट के व्यवसाय में चला गया। लेकिन दूध की गुणवत्ता के कारण पुराने लोग उनके साथ बने रहे, जो उनके दूध की गुणवत्ता की कसमें खाते रहते थे। चूंकि वे साल के 365 दिन, चौबीसों घंटे दुकान पर होते, ग्राहकों से उनकी निकटता इतनी बढ़ गई कि उनके घर होने वाले कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी जरूर होती। मोटीवेटर होने के कारण कई घरों में उनकी पहुंच थी और दोपहर के समय जब धंधा मंदा होता तो उनकी सोशल सर्विस चलती, जिससे वे बहुत लोकप्रिय हो गए थे। चूंकि बेटे ने अलग राह पकड़ ली थी और वह अलग रहने लगा था तो 20 साल पहले पत्नी की मौत को वे सह नहीं सके। तब तक वे भी 76 वर्ष के हो चुके थे। 
अकेलापन धीरे-धीरे उनकी सेहत पर भारी पड़ने लगा और डॉक्टरों ने उन्हें किसी तरह का दुस्साहस दिखाने से मना किया था। किंतु चंदन सिंह को साफ पता था कि उनकी दवाई तो उनके उद्‌देश्य में छिपी है। यदि उन्होंने डेयरी जाना बंद कर दिया तो वे ढह जाएंगे। लेकिन डॉक्टर उन पर हावी हो गए और उनके पास कोई चारा नहीं रहा। फिर भी उन्होंने डॉक्टरों की सलाह और अपनी इच्छा में संतुलन कायम करने का जरिया खोज ही लिया। वे ज्यादा आराम करते, थोड़ी देर से बिस्तर से उठते और करीब 10 बजे तक डेयरी पर पहुंचते। फिर शाम तक वहीं रहते। वे अब दूध की बजाय घी बेचने लगे, जिसमें मुनाफा नहीं था। वे रोज दोनों तरफ की दूरी मिलाकर 16 किलोमीटर ऑटोरिक्शा में यात्रा करते और यह सुनिश्चित करते कि उनके जिंदगी में उद्‌देश्य बना रहे। व्यस्त रहने का उद्‌देश्य, बेकार रहने का उद्‌देश्य, उत्पादक बने रहने का उद्‌देश्य। इसी उद्‌देश्य ने उन्हें दो दशकों तक जीवित रखा। 
इस साल 10 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे ऑटोरिक्शा उनका इंतजार कर रही थी। उन्होंने रिक्शाचालक से थोड़ा ठहरने को कहा, क्योंकि उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। 11 बजे उन्होंने 96 साल की उम्र में अंतिम सांस ली, जबकि मेडिकल हेल्प समय पर मिल गई थी। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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