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तिल एक जानी-पहचानी चीज है, जो लगभग हर भारतीय रसोई में देखी जा सकती है।
त्योहारों में लड्डू बनाने हों या कुछ खास व्यंजन, इन सबमें तिल की ज़रूरत
पड़ती है। मकर संक्राति यानी उत्तरायण के दौरान तिल के बीजों से बने लड्डू
हर घर में देखे जा सकते हैं। तिल के तेल का उपयोग खाद्य तेल के तौर पर भी
किया जाता है। आदिवासी अंचलों में तिल एक प्रमुख औषधि के तौर पर भी अपनाया
जाता है। आइए, आज जानते हैं तिल से जुड़े कुछ रोचक पारंपरिक हर्बल नुस्खों
के बारे में:- बहरापन: आदिवासी जानकारों के अनुसार, बेल के फल के गूदे (एक चम्मच) को तिल के तेल (3 चम्मच) में गर्म कर बहरे व्यक्ति के कानों में एक-एक बूंद प्रतिदिन सोने के समय डाला जाए तो संभावना होती है कि बहरापन दूर हो जाए।
- कान में सूजन, मवाद आदि होने पर लहसुन की एक कली, चुटकी भर हल्दी और नीम की 5 पत्तियों को तिल के तेल (2 चम्मच) में हल्का गर्म कर ठंडा होने पर कान में दो बूंद डालने पर समस्या का निदान हो जाता है। ऐसा कम से कम तीन दिन करना चाहिए।
- करीब 10 ग्राम अमरबेल के पौधे को कुचल कर तिल के तेल (20मिली) में मिलाकर 5 मिनट तक उबालने के बाद ठंडा होने पर सिर के गंजे हुए हिस्से पर लगाने से बालों के फिर उगने की संभावना बढ़ जाती है।
- बवासीर के लिए बेहतर उपाय: बवासीर होने पर तिल के बीजों (10 ग्राम) को पानी (50 मिली) में उबाल कर ठंडा होने पर घाव वाले हिस्से पर लेप करने से तेजी से आराम मिलता है। आदिवासियों के अनुसार, दिन में कम से कम दो बार इस प्रक्रिया को दोहराना चाहिए।
- महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अधिक दर्द की शिकायत होने पर तिल के बीजों (5 ग्राम) को सौंफ (3 ग्राम) और गुड़ (5 ग्राम) के साथ मिलाकर पीसकर सेवन करने पर दर्द में काफी राहत मिलती है। पातालकोट में आदिवासी इस मिश्रण के साथ जटामांसी की जड़ों के चूर्ण (2 ग्राम) की फांकी लेने की सलाह भी देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से दर्द में तेजी से आराम मिलता है।
- जिन्हें बार-बार पेशाब होने की शिकायत होती है, उन्हें तिल और अजवायन के बीजों की समान मात्रा को तवे पर भूनकर दिन में कम से कम दो बार एक-एक चम्मच मात्रा का सेवन करना चाहिए।
- तिल और अजवायन के भुने हुए बीजों की समान मात्रा (आधा चम्मच) को दिन में कम से कम 4-5 बार थोड़ी- थोड़ी मात्रा में चबाने से मधुमेह के रोगियों को काफी फायदा होता है। आधुनिक शोध भी दर्शाते हैं कि अजवायन और तिल में खून से शर्करा/ग्लुकोज़ कम करने का गुण है।
- तिल के बीजों का चूर्ण, आंवला के फलों का चूर्ण, मुलेठी की जड़ों का चूर्ण और हल्दी की समान मात्रा (लगभग 2 ग्राम प्रत्येक) लेकर एक बाल्टी पानी में डाल कर इस पानी से स्नान करने पर त्वचा के संक्रमण दूर हो जाते हैं और त्वचा निखरने लगती है।
- वायबिदंग नामक जड़ी के बीजों का चूर्ण और तिल के बीजों के चूर्ण की समान मात्रा को मिलाकर सूंघने से माइग्रेन के रोगियों को दर्द में काफी आराम मिलता है। आदिवासियों की जानकारी के अनुसार, माइग्रेन के दर्द के दौरान ऐसा करने पर तुरंत आराम मिलता है।
- सर्दियों में तिल और गुड़ के पाक का मिश्रण शरीर में गर्मी प्रदान करता है। ग्रामीण इलाकों में काले तिल का इस्तेमाल सर्दी को दूर भगाने के लिए किया जाता है। जानकारों के अनुसार, काले तिल की एक चम्मच मात्रा की फांकी लेने से सर्दी में आराम मिलता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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