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नागपुर के एक व्यक्ति ने दो कारों को जोड़ लंबी कार बना डाली। इसकी लंबाई 8
मीटर तक है। बड़ौदा से नागपुर एक शादी में शामिल होने के लिए जैसे ही वह
शहर में पहुंचा, आरटीओ ने कार्रवाई की। बताया गया कि इस तरह की मूल गाड़ी
का नाम लिमोजिन है। कीमत 10 करोड़ से 50 करोड़ तक हो सकती है। इस तरह की गाड़ी अपने इच्छानुसार बनाना मोटर एक्ट की अवहेलना है। ऐसे
में आरटीओ को जानकारी मिलते ही गाड़ी पर कार्रवाई कर इसे जब्त कर लिया गया।
गाड़ी (क्रमांक जीजे 06 सीएम 7374) मूलत: बड़ौदा के एक व्यक्ति की है। कार बनाने के लिए होंडा
अकार्ड कार को बीच से काट दिया गया। एक दूसरी कार का भी यही हश्र किया।
पहली गाड़ी का अगला भाग व दूसरी गाड़ी का पिछला भाग मिलाकर यह गाड़ी बनाई
गई। नागपुर में आते ही वाड़ी के पास एक यातायात पुलिस कर्मचारी की नजर
पड़ी। उसने तुरंत शहर आरटीओ को इसकी जानकारी दी। आरटीओ ने तुरंत कार्रवाई करते हुए गाड़ी को पकड़ लिया। जांच चल रही
है। दो कारों को जोड़ कर एक कार बनाई है। इसमें ड्राइवर का एक अलग
कम्पार्टमेंट है। पिछला कंम्पार्टमेंट पूरी तरह से बंद है। पिछले
कम्पार्टमेंट में बैठा व्यक्ति फोन के माध्यम से ड्राइवर को निर्देश देता
है। गाड़ी में टीवी और एसी भी है। डेप्युटी आरटीओ विजय चव्हाण ने बताया कि 126 प्रोटो टाइप अप्रुवल के बिना इस तरह की गाड़ी नहीं
बनाई जा सकती। कोई भी गाड़ी बनाने के लिए एक मॉडल बनता है, जिसकी पूरी तरह
से जांच की जाती है। इसके बाद ही नई गाड़ी सड़क पर चल सकती है। इस गाड़ी की
लंबाई इतनी ज्यादा है कि मोड़ने में भी भारी परेशानी हो सकती है। यह किसी
अनहोनी का कारण भी बन सकती है।
राईट ब्रदर्स से प्रभावित होकर इंटर पास चपरासी ने बनाया था हेलिकॉप्टर: इसके पहले उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में 32 साल के वीरेंदर ने हाई स्कूल
में पढ़ाई के दौरान टीचर की मदद से छोटा हेलिकॉप्टर बनाया था। इस
हेलिकॉप्टर से पायलट और एक पैसेंजर दोनों सवारी करते सकते थे। आमतौर पर हेलिकॉप्टर में उड़ान भरते समय पायलट समेत पैसेंजर को झटका
लगता है। लेकिन खास तकनीक की वजह से इस हेलिकॉप्टर में ऐसा नहीं होता है।
इस हेलिकॉप्टर की खासियत यह है कि सीधी लाइन में उड़ेगा और अप-डाउन की
समस्या भी नहीं रहेगी, इस वजह से ईंधन की बचत होगी और हादसों में कमी आएगी। वीरेंदर सिंह ने हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान हल्के इंजन से हेलिकॉप्टर
का पूरा डिजाइन बनाया था। तब टीचर ने मॉडल पर दस हजार रुपये खर्च किए थे।
पैसा न होने की वजह से प्रोजेक्ट अधूरा रह गया। इंटर तक पढ़ाई करने के बाद
बनारस आईटीआई में ऑटोमोबाइल
इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उन्होंने बताया कि 1994 में एक बड़े अधिकारी का
बिगड़ा जनेटर जुगाड़ से ठीक कर देने पर, उस अधिकारी ने मेरे काम से प्रभावित
होकर नौकरी दिलवा दी।
गंगा में फेंकी गई बोतलों के जुगाड़ से काशी के भैया ने बनाई थी मोदी के लिए नाव: काशी के एक दिहाड़ी मजदूर भैया लाल ने कबाड़ से जुगाड़ कर एक नाव बनाई
थी। उन्होंने यह नाव खास पीएम मोदी के लिए बनाई थी। इसे बनाने में पानी और
कोल्ड ड्रिंक के बोतलों का इस्तेमाल किया गया था। सात फीट लंबे इस नाव में
कुल 106 बोतलें लगाई गई थीं। इसके अलावा इसमें एफएम रेडियो, एलइडी लाइट,
सर्च लाइट और छतरी भी लगाई गई थी। इस नाव में एक साथ दो लोग बैठकर गंगा की
सैर कर सकते हैं। भैया लाल ने नाव को बनाने में कुल 106 बोतलें इस्तेमाल की गई हैं।
इसमें एक लीटर के 96 बोतलें, आधे लीटर की 10 बोतलें और दो लीटर के 6 बोतलों
का इस्तेमाल किया। इन्हें लोहे के फ्रेम और बांस की खपच्ची से जोड़ा। नाव
को खूबसूरत
बनाने के लिए इसके बाहर से सजावट भी की। साथ ही इसमें बैटरी से चलने वाले
पंखे, एलइडी बल्ब और रेडियो लगाए गए हैं। इस नाव को बनाने में एक महीने का
वक्त लगा है।
जुगाड़ देख रह जाएंगे हैरान, 35 हजार की कार, 1 लीटर में चलेगी 35 किलोमीटर: जुगाड़ की एक और कहानी जमशेदपुर की है, जहां कदमा के शास्त्रीनगर
निवासी रघु विश्वकर्मा ने कबाड़ में पड़े बेकार दो पहिया वाहनों के पुर्जो
से कार बनाई है। इसकी कीमत 35 हजार रुपए है। सबसे बड़ी बात यह है कि कार बनाने में चार पहिया वाहन के पुर्जो का
उपयोग नहीं किया गया है। इसमें इंजन स्कूटर का, चक्का मोपेड का ब्रेक शू
वेस्पा तो चेन बुलेट का इस्तेमाल किया गया है।
दो बाइकें निकालीं और हल ले आए और हो गया खेतों की जुताई का जुगाड़: राजस्थान के उदयपुर शहर में बाइकों से ये दोनों कहीं
जा नहीं रहे हैं, बल्कि खेतों की जुताई कर रहे हैं। घर में बैल हो न हो
बाइक तो है न! किसानों को जब हल वाले बैल और ट्रैक्टर नहीं मिले तो ये नई
तरकीब निकाल ली। दो बाइकें निकालीं। हल ले आए और हो गया खेतों की जुताई का
जुगाड़। जुताई करते समय किसान बाइक को फर्स्ट गीयर में चलाते हैं। जिन किसानों के पास बैल नहीं हैं उनको जुताई में दिक्कत आती थी। किराए पर
साढ़े तीन साै रुपए लगाने के बाद भी समय पर खेतों की जुताई नहीं हो पाती थी।
इससे किसानों ने अपने स्तर पर हल व कलपान बना कर उसे मोटरसाइिकल से जोड़
दिया। इस हल और कलपान को सबसे पहले गांव के किसान कालुलाल, शंकरलाल व दिनेश
लाल जह्णवा ने बनाकर अपने खेतों में प्रयोग किया। कालू लाल ने बताया कि एक
बीघा क्षेत्र में बुवाई या सफाई करने में आधा लीटर पेट्रोल की खपत होती
है, जबकि बैलों या ट्रैक्टर से करें तो करीब साढ़े तीन सौ रुपए लग जाते
हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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