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पाकिस्तान के लायलपुर से फैसलाबाद बन चुके जिले के गांव बंगा
में आठ करोड़ रुपए की लागत से राज्य सरकार की ओर से शहीद-ए-आजम भगत सिंह के
पुश्तैनी घर और उनके स्कूल का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, लेकिन
कट्टरपंथी विचारधारा के हिमायती इसका विरोध कर रहे हैं। एक मार्केटिंग कंपनी की मैनेजर कनीज फातिमा ने सोशल साइट पर "भगत सिंह के घर
की मरम्मत क्यों?" शीर्षक से लिखा है कि जो कौम अल्लाह के बजाय किसी सिख के
घर को अहमियत देती है, उसकी बेबसी और जिल्लत का आलम वही होता है, जो हम
देख रहे हैं। यह बहुत ही अफसोस की बात है। कनीज के नजरिए का समर्थन करते
हुए मजीद नामक एक आदमी ने लिखा है कि यहां के लोग खाने तथा दवाओं के बगैर
मर रहे हैं और शाहबाज शरीफ भगत सिंह के घर को बनाने में व्यस्त हैं। मैं
समझता हूं कि वे ठेकेदार हैं, मुख्यमंत्री नहीं। इसके बाद एक और नाजनीन
वड़ैच नामक लड़की ने कमेंट किया कि हमारी बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें गिर रही
हैं और सरकार ऐसे लोगों के घर बना रही है, जिनका हमसे कोई वास्ता नहीं। इस
पर जरक खान नामक एक आदमी ने सवाल किया कि क्या एक सिख के लिए इतने पैसे
बर्बाद करना सही है? पाकिस्तान के फैसलाबाद के गांव बंगा में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का
पुश्तैनी घर। सरकार इसके जीर्णोद्धार पर आठ करोड़ खर्च रही है, पर नेट पर
विरोधी बयान चल रहे हैं। बता दें, अभी हाल ही में लाहौर के एक चौराहे का
नाम शहीद भगत सिंह चौक रखने की कोशिश का भी कट्टरपंथियों ने काफी विरोध
किया था। हालांकि, पाक पंजाब की सरकार ने भगत सिंह के पुश्तैनी गांव को धरोहर
का दर्जा दिया है, लेकिन वहां की स्कूली किताबों में से शहीद का नाम लगभग
गायब-सा है। जिस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की, उस स्कूल के बच्चे भी उनके
नाम को नहीं जानते।
भगत सिंह दोनों देशों के सांझे शहीद हैं - हुसैन: लाहौर की प्रो. आबिदा हुसैन ने कहा, "भगत सिंह भारत-पाकिस्तान के सांझे शहीद हैं। उन्होंने उस वक्त
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी, जब पाकिस्तान भारत का हिस्सा था।
मगर नई पीढ़ी के दिल में इन शहीदों की कद्र नहीं।" इसी विषय पर फैसलाबाद के
वकील अजीम आलम का कहना है कि पाकिस्तान के ही लोगों की मांग पर भगत सिंह
की पुश्तैनी हवेली की मरम्मत हो रही है। यह दुख की बात है कि कुछ अनजान लोग
इस पर एतराज उठा रहे हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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