Saturday, October 8, 2016

स्लो लर्नर: अगर पहचान लिए जाएं तो जल्दी ठीक हो सकते हैं ऐसे बच्चे

डॉ.नम्रता सिंह (चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट, लखनऊ)
स्लो लर्नरयानी ऐसे बच्चे जो नई बातें समझने-पहचानने में ज्यादा समय लेते हैं, जानी हुई बातें भी जल्दी भूल जाते हैं, एक आम समस्या है। कई बार यह बच्चे की पढ़ाई में कम रुचि का नतीजा होता है, लेकिन इसके और भी कारण हो सकते हैं। जैसे- पारिवारिक और सामाजिक माहौल, बच्चे के प्रति माता-पिता और टीचर्स
का रवैया, सामाजिक आयोजनों में भागीदारी आदि। यदि शुरुआत में ही पहचान लें और जरूरी सावधानियां बरतें तो बच्चे की स्लो लर्निंग की समस्या आसानी से ठीक हो सकती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
मुश्किल होता है पहचानना: लगातारस्कूल से शिकायतें आती हैं कि बच्चे का मन पढ़ाई मे नहीं लग रहा है। बच्चा क्लास में बहुत धीरे-धीरे लिखता है, क्लास वर्क और होम वर्क दोनों ठीक से नहीं कर रहा है और क्लास में दूसरे बच्चों से पिछड़ रहा है। माता-पिता के लिए बहुत अजीब स्थिति होती है, क्योंकि वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे होते हैं। उन्हें स्कूल की शिकायतों में सच्चाई नहीं लगती या देखने के लिए समय नहीं होता तो समस्या गंभीर हो जाती है। 
कैसे पहचानें: स्लो लर्नर बच्चे क्लास वर्क को बोर्ड से उतारने में परेशानी महसूस करते है और बहुत धीरे लिखते हैं, बच्चे के नंबर क्लास टेस्ट और एग्जाम में ख़राब आते रहते हैं, ड्राॅइंग बनाने और कलर करने में परेशानी होती है। दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने में दिक्कत महसूस करते हैं, लिखने में मात्राओं की गलतियां ज्यादा करते हैं। किसी विषय को याद तो कर लेते हैं पर बहुत जल्दी भूल जाते हैं। उन्हीं विषयों को पढ़ते हैं जो आसान लगे। अपनी चीजें दूसरे बच्चों के साथ कम शेयर करते हैं और अपने से छोटी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि लेते हैं। जब पढ़ाई के लिए कहा जाये तो गुस्सा हो जाते हैं। 
क्या करें माता पिता: बच्चों के स्टडी रूम को बहुत अच्छी तरह से बनाएं। उनकी पढ़ने की टेबल, चेयर और लाइट बच्चे की पसंद की लगाएं। पढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा स्टडी टॉयज का इस्तेमाल करें। खुद नई-नई तकनीकें सीखें और बच्चे को सिखायें। बच्चे के साथ समय बिताएं। उनकी मनपसंद चीजों में रुचि लंे। बच्चे को घर के छोटे-छोटे कामों में लगाएं जैसे - उन्हें खाना खुद खाने के लिए कहें, स्कूल ड्रेस को ठीक से रखने की जिम्मेदारी दें, सामाजिक और कल्चरल प्रोग्राम में शामिल करें, बच्चे को पड़ोसी और रिश्तेदारों के पास घुमाने ले जाएं। लोगों के सामने तारीफ कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश करें। 
क्या नहीं करें: छोटे बच्चों को स्वयं पढ़ाएं और ट्यूशन लगाएं। दूसरे बच्चों और अंजान लोगों के सामने डाटें और ही पढ़ाई की तुलना करें। पढ़ाई की कमी के लिए बच्चे पर ज्यादा गुस्सा नहीं करंे और ही उसकी कमी के लिए बच्चे को पूरा दोष दें। इन प्रयासों के बाद भी अगर बच्चा पढ़ाई में ठीक नहीं होता है तो उसका आईक्यू टेस्ट कराएं और अच्छे काउंसलर से मिलें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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