Thursday, October 20, 2016

आपके भीतर निर्जीव चीजों में जान फूंकने की क्षमता है

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
करीब तीस साल तक वे पोर्ट ब्लेयर के शासकीय एसएस स्कूल में शिक्षिका रहीं। उस दौरान उन्होंने अच्छी युवा पत्नी, दो बच्चों की मां, अच्छी शिक्षिका की भूमिका निभाई और वह शांतिपूर्ण जीवन गुजारा, जिसके लिए हम सब प्रयत्नपूर्वक परिश्रम करते हैं। वे खुशकिस्मत थीं कि रोज शाम समुद्र तट पर प्रकृति की गोद में बिताती थीं।
बीच पर हम सबको लहरों के साथ आई चीजें मिलती हैं। उसी तरह अंडमान-निकोबार के समुद्र तटों पर घूमते हुए लहरों में बहकर आए लकड़ी के कुछ सड़े हुए टुकड़े मिले। उनमें कलाकार की नज़र थी अत: उन्हें उनमें कुछ आकार दिखाई दिए। उन्हें घर लाने के बाद वे उन पर छेनी कुल्हाड़ी के फल से छोटे से हिस्से को भी आकार देने में महीनों परिश्रम करतीं। उन्हें हमेशा अचरज होता कि यह लकड़ी कैसे धातु की तरह है, जिन्हें तराशने में इतना समय लगता है। उन्होंने उनसे बच्चों के खिलौने और घर में रखने के कलापूर्ण शो पीस बनाएं। पहला खिलौना लकड़ी की मछली थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। समुद्र अपने किनारे पर उगे बड़े वृक्षों की जड़ों को बहा ले जाता है और मीलों तक उनके साथ यात्रा करता है। कई शताब्दियों बाद यह लकड़ी उस चरण में पहुंचती है, जिसे जिवाश्म कहते हैं और जब ये कोयले में बदल जाती है। हजारों किलोमीटर की यात्रा में जो बच जाता है, वह पेड़ का सबसे कड़ा हिस्सा होता है, जो काफी सख्त परिस्थितियों से गुजरा होता है। इसी स्तर पर लकड़ी को इकट्‌ठा किया जाता है और इसे ड्रिफ्ट वुड कहते हैं। इस स्तर पर लकड़ी में एक कील भी ठोंकना नामुमकिन-सा काम हो जाता है। लकड़ी की कीमत जाने बिना उनका संग्रह चलता रहा। उनके इस शौक ने तब गंभीर मोड़ लिया जब पश्चिम बंगाल से आए एक कलाकार ने उन्हें उनके खजाने का मूल्य समझाया और उन्हें यह खजाना दुनिया से साझा करने को प्रेरित किया। 2001 में रिटायर हो चुकीं शिक्षिका ने उत्साहित होकर 2004 में केरल के कुमाराकोम में पहला ड्रिफ्टवुड म्यूजियम भविष्य निधि की रकम और बैंक से 10 लाख का ऋण लेकर खरीदी जमीन पर स्थापित किया। वे तब से यहीं बस गईं। 
'बे आइलैंड ड्रिफ्टवुड म्यूजियम' में प्रकृति की रचनात्मकता और कलाकार की कल्पना का सुंदर मेल है और यह दुर्लभ वस्तुओं के अद्‌भुत आकर्षक संग्रहों में से एक है। संग्रहकर्ता राजी पुन्नूस को संग्रहालय संभालने की कला यानी क्यूरेटरशिप का कोई अनुभव नहीं था। यह सब तो उन्होंने पिछले 12 वर्षों के अपने म्यूजियम के काम के दौरान सीखा। सबसे पहले उन पर 'लोनली प्लेनेट' की नज़र पड़ी। फिर प्रदेश और केंद्र सरकारों के प्रतिष्ठित पर्यटन सम्मानों से उन्हें नवाज़ा गया। इसके अलावा लिम्का और गिनीज बुक में किसी महिला द्वारा बनाया और मैनेज किए पहले ड्रिफ्टवुड म्यूजियम के साथ उनका नाम दर्ज हुआ। संस्कृति मंत्रालय म्यूजियम के रखरखाव के लिए वित्तीय मदद की पेशकश करता रहता है, क्योंकि अब इस म्यूजियम में देशी-विदेशी पर्यटक, म्यूजियम क्यूरेटर्स अौर शोधकर्ता आते रहते हैं। यह संग्रहालय भारत का पहला और अंतिम ड्रिफ्टवुड म्यूजियम होगा, क्योंकि 2004 में सुनामी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंडमान द्वीपों से किसी तरह की लकड़ी लाने पर पाबंदी लगा दी है। समुद्र हमेशा से राजी को आकर्षित करता रहा है, क्योंकि उनका मानना है कि वह महान शिल्पकार है, लेकिन बरसों तक उन्हें यह अहसास नहीं था कि अपने हाथों से उन्होंने लकड़ी के मृत टुकड़ों को नई जिंदगी दी ताकि वे इस धरती पर आने वाली सदियों तक रह सकें। 
फंडा यह है कि सामान्यजिंदगी कोई भी जी सकता है, लेकिन इस तरह से किसी चीज में जान फंूकना, जिंदगी को असाधारण बना सकता है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.