Friday, October 7, 2016

यूनिवर्सल प्रॉब्लम: पूरी दुनिया जूझ रही है शिक्षकों की कमी से; जो शिक्षक है वे भी मानकों पर खरे नहीं

5 अक्टूबर को वर्ल्ड टीचर्स डे के दिन यूनेस्को ने पहली बार यूएन द्वारा निर्धारित 2030 के वैश्विक शिक्षा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जरूरी शिक्षकों की संख्या संबंधी अांकड़ा जारी किया।
पूरी दुनिया में 6.9 करोड़ नए शिक्षकों की जरूरत: जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार इन लक्ष्यों को पूरा करने के
लिए दुनियाभर में अगले 14 सालों में प्राइमरी और सेकंडरी स्तर पर करीब 6.9 करोड़ नए शिक्षकों की आवश्यकता होगी। 2030 तक प्राइमरी स्तर पर 2.4 करोड़ और सेकंडरी स्तर पर 4.4 करोड़ शिक्षकों की आवश्यकता होगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इससे पहले यूनेस्को की रिपोर्ट बताया गया था कि दुनियाभर में करीब 25 करोड़ बच्चे प्राइमरी शिक्षा नहीं लेते हैं, जबकि कम कमाई वाले देशों में सिर्फ 14 फीसदी युवा ही अपर सेकंडरी स्तर की पढ़ाई पूरी करते हैं। 
अफ्रीकी अौर दक्षिण एशियाई देशों में शिक्षकों की सबसे ज्यादा कमी: क्षेत्रीय आंकड़ों के लिहाज से नए शिक्षकों की सबसे ज्यादा जरूरत अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देशों में है। अफ्रीकी देशों में यूनिवर्सल प्राइमरी एंड सेकंडरी एजुकेशन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करीब 1.7 करोड़ शिक्षकों की आवश्यकता होगी। 
प्राइमरी से ज्यादा सेकंडरी शिक्षकों की कमी: प्राइमरी स्तर पर आंकड़ा करीब 60 लाख और सेकंडरी स्तर पर 1.08 करोड़ है। इसी प्रकार दक्षिणी एशिया में प्राइमरी स्तर पर पीपुल टीचर रेशो 34:1 और सेकडरी स्तर पर 29:1 है, जो वैश्विक औसत 18:1 से कहीं ज्यादा है। दक्षिण एशियाई देशों में इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करीब 1.5 करोड़ नए शिक्षकों की आवश्यकता होगी। इसमें से 41 लाख शिक्षक प्राइमरी स्तर पर और सेकंडरी स्तर पर 1.9 करोड़ शिक्षकों की आवश्यकता होगी। उत्तरी अमेरिका में यह आंकड़ा इसकी अपेक्षा बहुत कम है। उत्तरी अमेरिकी देशों मंे प्राइमरी स्तर पर करीब 8 लाख और सेकंडरी स्तर पर 18 लाख नए शिक्षकों की आवश्यकता होगी।
फिलहाल 14 लाख शिक्षकों की कमी भारत में: वहीं दूसरी तरफ हाल ही में एसोचैम द्वारा जारी किए गए एक रिसर्च पेपर में कहा गया था कि भारत में फिलहाल स्कूल स्तर पर करीब 14 लाख शिक्षकों की कमी है। जबकि जो शिक्षक कार्यरत हैं, उनमें से 20 फीसदी ऐसे हैं, जो नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि भारत यदि इसी रफ्तार से शिक्षा में सुधार करता रहा, तो यूएन द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में 126 साल लगेंगे। 
अधिकतर देशों में शिक्षक मानकों पर खरे नहीं: शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ उनकी शिक्षण योग्यता भी समस्या बनी हुई है। प्राइमरी स्तर पर शिक्षकों को नियुक्त तो कर लिया जाता है, लेकिन वे मिनिमम क्वालिफिकेशन एंड ट्रेनिंग स्टैंडर्ड पर खरे नहीं उतरते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 96 देशों में किए गए सर्वे में 36 देशों में 80 फीसदी से भी कम प्राइमरी शिक्षकों को ट्रेनिंंग दी जाती है। इसमें आधे से अधिक देश अफ्रीकी महाद्वीप से हैं। सेकंडरी स्तर पर यही हालत है। 71 देशों में किए सर्वे में 31 देश ऐसे हैं जहां 80% से कम शिक्षक ही तय मानकों के अनुसार ट्रेंड होते हैं। 
2030 तक 5 करोड़ शिक्षक हो जाएंगे रिटायर: अगले 14 वर्षों में 5 करोड़ से ज्यादा शिक्षक तो इस दौरान रिटायर होने वाले शिक्षकों की जगह भरने के लिए जरूरी होंगे। रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सल प्राइमरी एजुकेशन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2.4 करोड़ में 2.1 करोड़ शिक्षकों की जरूरत रिटायर या जॉब छोड़ने वाले शिक्षकों की जगह होगी, जबकि 30 लाख अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता होगी ताकि एक क्लास मंे अधिकतम छात्रों की संख्या को 40 पर सीमित किया जा सके। इसी प्रकार सेकंडरी स्तर पर 4.4 करोड़ शिक्षकों की आवश्यकता होगी। इसमें से 2.7 करोड़ शिक्षक ऐसे होंगे, जो रिटायर्ड शिक्षकों की जगह लेंगे, जबकि 1.6 करोड़ अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता होगी, ताकि क्लास में अधिकतम छात्रों की संख्या को 25 तक सीमित किया जा सके।
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साभार: भास्कर समाचार 
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