Tuesday, October 4, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: बुराई से कहीं अधिक शक्ति होती है अच्छाई में

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
सोमवार को रायपुर एयरपोर्ट पर हमेशा की तरह व्यस्तता थी। किंतु नियंत्रण रेखा पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जारी उच्च सुरक्षा अलर्ट के कारण कई लोगों को परेशानी थी। जांच क्षेत्र के बाहर लोगों का मूड बिल्कुल
नकारात्मक था और लोग पिछले दो साल से बंद पड़े एटीएम के बारे में बातें कर रहे थे। बातचीत कुछ व्यंग्यात्मक रूप में वाई-फाई सेवा पर चली गई, जो बड़े शोर-गुल के साथ एयरपोर्ट पर शुरू की गई थी, लेकिन वह एपल जैसे महंगे फोन पर काम नहीं कर रही थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मैंने किसी को कहते सुना, 'अगली यात्रा में मैं अपने साथ नोकिया 1110 लेकर आऊंगा।' किओस्क से सेल्फ प्रिंटिंग बोर्डिंग पास लेने वालों को उन लोगों की तुलना में ज्यादा कड़ी सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ रहा था, जिन्होंने काउंटर से बोर्डिंग पास लिए थे। इससे भी कुछ लोग चिढ़ गए थे। टॉयलेट्स में इतने मच्छर थे कि कुछ ही मिनटों में वे दिल्ली जैसी स्थिति पैदा कर दें। वहां घोर नकारात्मकता थी। फिर अचानक ऐसी बात हुई कि लोगों की राय 360 डिग्री बदल गई। 
एक पुलिसकर्मी को हैंड बैग स्क्रीनिंग का काम सौंपा दिया गया था और एक यात्री दूर कहीं भीतर से लगेज स्क्रीनिंग मशीन की ओर चलता नज़र आया। उसके हाथ में ऐसा कुछ था कि हर कोई स्तब्ध रह गया। उसके हाथ में पैर का हिस्सा था। घुटने से टखनों तक का। सिर्फ उसके चेहरे पर पूरी शांति थी, लेकिन पैर को एक्स-रे मशीन पर रखते समय वह बहुत ही सहानुभूति से भरा था और उसने बड़ी सावधानी से उस पैर को वहां रखा। दरअसल, यह किसी यात्री का कृत्रिम पैर था, जिन्हें पृथक जांच घेरे में ले जाया गया था ताकि वे अपनी पेंट निकालकर कृत्रिम पैर शरीर से निकाल सकें। दोनों अधिकारी टीवी स्क्रीन पर बहुत गौर से देख रहे थे ताकि उनसे कुछ छूट जाए अथवा संदेह के लिए कुछ बाकी रह जाए और उस 'पैर' स्क्रीिनंग के दूसरे दौर से गुजरना पड़े। उनके चेहरे से जल्दबाजी झलक रहे थी, क्योंकि एक व्यक्ति सिर्फ पतलून के बगैर खड़ा था बल्कि उसे अपने कृत्रिम पैर का सहारा भी प्राप्त नहीं है। सहानुभूति होने के साथ ही उसकी आंखों और शारीरिक गतिविधियों में उच्च स्तर की सतर्कता थी कि उस पैर में ऐसा कोई बाहरी उपकरण लगा हो जो सुरक्षा मानक का उल्लंघन करता हो और जान-माल के नुकसान का कारण बने। 
पुलिसकर्मी ने उस पैर को हमारे सामानों की तरह उसे मशीन के पास लगे स्लाइड पर नहीं डाला। सच तो यह है कि वह उस कृत्रिम पैर को ऐसा सम्मान दे रहा था, जैसे वह जीवित पैर हो, कि लोहे प्लास्टिक से बनी वस्तु, जबकि वास्तविकता यही थी। वह पैर लेकर उसके मालिक के पास गया अौर धैर्यपूर्वक तब तक इंतजार करता रहा, जब तक कि उस यात्री ने उसे अपने असली पैर पर उसे लगाकर अपनी पतलून नहीं पहन ली। फिर उन्होंने अपने स्पोर्ट्स शू पहने। इसमंें तीन-चार मिनट लगे और इस दौरान वह कक्ष के बाहर देख रहा था ताकि यात्री की निजता का हनन नहीं हो। यात्री को सील लगाकर बोर्डिंग पास दिया गया और इस पूरी प्रक्रिया में उस पुलिसकर्मी ने कभी उस यात्री के साथ 'बेचारा' होने की दृष्टि नहीं डाली। उसके व्यवहार में देखभाल, सतर्कता और 'बेचारा'हीन दृष्टि का बहुत ही अच्छा मिश्रण था। कुछ ही मिनटों में वह दिव्यांग यात्री अन्य सामान्य यात्रियों में घुल-मिलकर आगे बढ़ गया। उस कुछ मिनटों के मानवीय व्यवहार ने पूरे सीटिंग एरिया में एक चमत्कार कर दिया। इसके साथ ही बातचीत का सुर नकारात्मकता से बदलकर सकारात्मक हो गया। अचानक लोग एयरपोर्ट पर कई सुविधाओं का अभाव भूल गए। 
फंडा यह है कि एक अच्छे व्यक्ति के अच्छे काम में वह शक्ति होती है कि वह कई लोगों या विभागों द्वारा किए खराब काम को मिटा सकता है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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