एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि सेंसर बोर्ड आफ
फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। ऐतिहासिक
रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन समेत कई कामों को लेकर बोर्ड का रवैया बहुत
चिंताजनक है। यही नहीं, हाल के वर्षों में कई फिल्मों को सर्टिफिकेट देने
में भी गंभीर अनियमितता की गई। कैग ने अपनी रिपोर्ट में जाली दस्तावेज
बनाने और सर्टिफिकेट जारी करने में पक्षपात की ओर इशारा किया है। सामाजिक
कार्यकर्ता विहार द्रुवे ने आरटीआई दायर कर सेंसर बोर्ड के संबंध में कैग
से जानकारी मांगी थी। कैग ने 70 पेज के जवाब में जो जानकारियां दी हैं,
उससे बोर्ड पर कई सवाल खड़े होते हैं। इसके अनुसार सेंसर बोर्ड ने बिना
किसी नियम या प्रावधान का पालन किए 2012-15 के बीच ‘ए’ श्रेणी की 172
फिल्मों को ‘यूए’ तथा ‘यूए’ श्रेणी की 166 फिल्मों को ‘यू’ श्रेणी में बदल
दिया। भारी राशि मिलने के बाद भी डिजिटाइजेशन के काम में गंभीरता नहीं बरती
जा रही है। अब भी सेंसर सर्टिफिकेट के लिए करीब 4.10 लाख एंट्री और फीचर
फिल्म फाइलों के 60 लाख पन्नों का डिजिटलीकरण होना बाकी है। पिछले छह सालों
से सर्टिफिकेशन फीस और 12 सालों से कर का पुनरीक्षण नहीं हुआ है। रिपोर्ट
में बताया गया है कि बोर्ड को 2011 से 2013 तक, सर्टिफिकेशन फीस से लगभग 14
करोड़ और कर से 5.5 करोड़ रुपये मिले हैं। कैग
को सेंसर बोर्ड के आधिकारिक दस्तावेजों से यह भी पता चला है कि फरवरी,
2009 में ‘गैब्रिएल’ फिल्म का अवलोकन जेएस महामुनि और ‘थ्री कैन प्ले दैट
गेम’ का अवलोकन एसजी माने ने किया था। इसके बावजूद बोर्ड की ओर से जारी
सर्टिफिकेट में इन फिल्मों का अवलोकन वीके चवक द्वारा बताया गया है। द्रुवे
ने इसे घोटाला करार देते हुए सेंसर गेट का नाम दिया है। कैग की रिपोर्ट एक
अक्तूबर 2013 से 31 मार्च 2015 के बीच ‘इंस्पेक्शन रिपोर्ट आन एकाउंट
मेंटेंड बाई द ऑफिस आफ सीबीएफसी, मुंबई’ के नाम से है।
क्या है ‘ए’, ‘यू’ और ‘यूए’ का अंतर: ‘यू’
श्रेणी की फिल्में बिना किसी प्रतिबंध के प्रदर्शित की जा सकती हैं, जबकि
‘यूए’ श्रेणी में कुछ ऐसे दृश्य होते हैं, जिन्हें 12 साल से कम उम्र के
बच्चों के लिए ठीक नहीं समझा जाता। इसके अलावा ये फिल्में भी बिना किसी
प्रतिबंध के प्रदर्शित होती हैं। वहीं ‘ए’ श्रेणी की फिल्में केवल वयस्कों
के लिए होती हैं। किसी फिल्म के लिए ये श्रेणियां बहुत ही महत्वपूर्ण होती
हैं क्योंकि उसका प्रदर्शन इसी पर टिका होता है। शायद यही कारण है कि सेंसर
बोर्ड में विवाद भी सबसे अधिक इसी को लेकर होता है। सीबीआई ने अगस्त 2014
में सेंसर बोर्ड के सीईओ राकेश कुमार को कथित तौर पर एक फिल्म को प्रमाण
देने के लिए 70 हजार रुपये घूस मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
निहलानी को नहीं है रिपोर्ट की जानकारी: बोर्ड
के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने कहा है कि उन्हें यह निरीक्षण रिपोर्ट नहीं
मिली है। ये मामले उनके पद संभालने से बहुत पहले के हैं। निहलानी ने भरोसा
दिलाया कि भविष्य में इस तरह की अनियमितताएं न हों, इसके लिए वे प्रयास
करेंगे।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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