Wednesday, July 22, 2015

सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण याचिका की खारिज

जाट आरक्षण के फैसले को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खारिज कर दिया। मार्च में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फेरबदल करने से इनकार किया है। न्यायमूर्ति रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पूर्व फैसले में दखल देने का कोई कारण नहीं बनता। मालूम हो कि गत 17 मार्च को शीर्ष अदालत ने नौ राज्यों के जाट समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग की
केंद्रीय सूची में डालने के केंद्र सरकार के फैसले को दरकिनार कर दिया था। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा गत वर्ष आम चुनाव से ठीक पहले इस संबंध में अधिसूचना जारी की गई थी, जिसे अदालत ने निरस्त कर दिया था। अदालत ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि अब जाटों को न तो केंद्र सरकार की नौकरियों में और न ही किसी शिक्षण संस्था में आरक्षण का लाभ मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि किसी समूह को पिछड़ा वर्ग का दर्जा देने में सामाजिक पिछड़ेपन की सबसे अहम भूमिका होती है लेकिन इसके लिए जाति को सिर्फ आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। पिछड़ेपन के नए और उभरते स्वरूप के प्रति राज्य को चौकन्ना और सतर्क रहने की जरूरत है। पिछले आम चुनाव से ठीक पहले यूपीए सरकार ने मार्च 2014 में अधिसूचना जारी कर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के दो जिले भरतपुर और धौलपुर के जाटों को ओबीसी की सूची में शामिल करने का फैसला लिया था। यानी जाटों को आरक्षण का लाभ देने का निर्णय लिया गया था। इसके लिए यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया था। आयोग ने जाट को ओबीसी की श्रेणी में डालने की बात नहीं कही थी। आयोग ने बाकायदा इसके लिए विस्तृत कारण भी बताए थे। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने जाट को ओबीसी की सूची में डालने को सही ठहराया था। इसके बाद एनडीए सरकार का भी कहना था कि यह जनहित में लिया गया निर्णय है। साथ ही सरकार का कहना था कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सलाह को मानना सरकार के लिए जरूरी नहीं है।
अब क्या है विकल्प: पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद जाटों के पास सुधारात्मक याचिका का विकल्प मौजूद है। हालांकि कानून के जानकारों की माने तो जाटों को राहत की उम्मीद नहीं के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट केवरिष्ठ वकील संजय हेगडे के मुताबिक, सुधारात्मक याचिका स्वीकार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है। 

साभार: अमर उजाला समाचार 

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