करीब एक दशक पहले वर्ष 2005 में सिरसा जिले के कालूआना गांव के
मिडल स्कूल में संसाधनों के अभाव में बेटियों का न्यूनतम परिणाम देखकर,
सरपंच और ग्रामीणों ने शिक्षा की वो अलख जगाई, जो आज 400 बेटियों के जीवन
को आलोकित कर रही है। ग्रामीणों ने ठानी कि
सुविधाओं के अभाव में बेटियों की शिक्षा की राह बंद नहीं होने देंगे और
इसी के चलते सरपंच जगदेव सहारण ने वर्ष 2007 में कालुआना वेलफेयर शिक्षा
समिति की
नींव रखी, जिसकी सरपरस्ती में आज इस गांव की बेटियां पढ़-लिखकर
भविष्य के सपने बुन रही है। समिति बालिका शिक्षा पर हर साल पचास लाख रुपये
खर्च कर रही है। ताज्जुब है कि इतनी बड़ी राशि में एक पैसा भी सरकारी नहीं
है। बात चाहे अध्यापकों की नियुक्ति की हो या फिर परिवहन के साधन उपलब्ध
करवाने की, समिति ने सरकार की ओर मुंह नहीं ताका।
यूं होता है खर्च: कालूआना
के सरकारी स्कूल में समिति बिना किसी सरकारी सहायता के गांव के सरकारी
स्कूलों में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ, अंग्रेजी प्रवक्ताओं के साथ-साथ
तीन जेबीटी अध्यापकों की नियुक्ति अपने स्तर पर कर रही है। यही नहीं
चौटाला, भारूखेड़ा, आसाखेड़ा, तेजाखेड़ा, जंडवाला बिश्नोईयां, अबूबशहर,
गिदड़खेड़ा, सुकेराखेड़ा, गंगा, मटदादू, झुट्टीखेड़ा, मोडी, रामपुरा
बिश्नोईयां की बेटियां भी इसी गांव में पढ़ने के लिए आती हैं। समिति ने इन
गांवों की बेटियों को सुविधा प्रदान करने के लिए चार बसें लगा रखी हैं।
इसके अतिरिक्त 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सिरसा, औढ़ां स्थित
कॉलेजों में बेटियों को ले जाने के लिए समिति की तीन बसें चलती हैं। छात्रा
को जिस भी शिक्षण संस्थान में जाना होता है, समिति की बस उसे वहां तक
छोड़कर आती है। जरूरतमंद बेटियों का किराया समिति खुद उठाती है। वर्ष
2005 में पहली बार कालूआना के सरपंच बनने के बाद जगदेव सहारण गांव के
सरकारी स्कूल में पहुंचे। उन्हें पता चला कि मिडल कक्षा में पढ़ने वाली सभी
48 बेटियां फेल हुई हैं। कारण था शैक्षणिक सुविधाओं की कमी। वर्ष 2007 में
जगदेव सहारण ने कालूआना वेलफेयर शिक्षा समिति गठित की। समिति ने सबसे पहला
कार्य लड़कियों की स्कूल को जगह दिलाने का किया। पंचायत ने जोहड़ वाली
जमीन स्कूल को देने का प्रस्ताव किया। बिना सरकारी मदद के समिति ने चंद
दिनों में ही जोहड़ को भरकर समतल कर दिया। धीरे-धीरे सभी सुविधाएं मुहैया
हो र्गइं। शिक्षा समिति के प्रयासों से अब गांव में आरोही मॉडल स्कूल सहित
तीन राजकीय स्कूल हैं। गांव में कोई भी बेटी शिक्षा से वंचित नहीं है।
बारहवीं तक पढ़ाई पूरी करने के बाद बेटियां उच्च शिक्षा के लिए कॉलेजों में
पहुंच रही हैं।
गांव की कोई बेटी ऐसी नहीं
रही है, जिसने कम से कम 12वीं तक शिक्षा ग्रहण न की हो। अब बेटियां पढ़ने
के लिए गांव से बाहर जा रही हैं। समिति में 28 सदस्य हैं। चंदा इकट्ठा करने
के लिए समिति किसी बाहरी गांव में नहीं जाती। कुछ जमींदार फसल बिकने के
बाद स्वयं ही समिति को शिक्षा के नाम पर चंदा देते हैं। समिति का सालाना
खर्च 50 लाख रुपए तक पहुंच गया है। समिति रजिस्टर्ड है और प्रति वर्ष ऑडिट
होता है। -जगदेव सहारण, अध्यक्ष, कालूआना वेलफेयर शिक्षा समिति
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साभार: अमर उजाला समाचार
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