साभार: जागरण समाचार
निजी स्कूलों की मनमानी को शिक्षा विभाग ने मौन सहमति दे दी है। विभाग के अधिकारी तो निजी स्कूल मालिकों के इशारों पर चल रहा है। चले भी क्यों न, हर राजनीतिक दल के नेताओं ने बड़े-बड़े स्कूल खोले हुए है।
ऐसे में उनके खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। निजी स्कूलों में पढ़ाई जानी वाली किताबों से लेकर यूनिफार्म, बूट, स्टेशनरी, बैग इत्यादि बिक्री पर निजी स्कूल प्रबंधन का कब्जा है या उनकी कुछ चुनिंदा दुकानों पर होती है। खासकर सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल के संचालक तो अपने आप को ही विभाग के अधिकारी ही समझते है। उनके स्कूल में तो प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों से ही पढ़ाई करवाई जाती है। जो एनसीईआरटी के प्रकाशन के मुकाबले 10 से 15 गुणा अधिक महंगी आती है। सबसे दुखद तो यह है कि दो साल पहले माननीय उच्चतम न्यायालय ने 2 साल पहले शिक्षा विभाग को आदेश जारी किए थे, जिसमें कहा गया था कि निजी स्कूल के मुख्य गेट पर फीस की बकायदा लिस्ट लगाई जाए, लेकिन एक भी स्कूल ने लिस्ट नहीं लगाई। शिक्षा विभाग के अधिकारी स्कूल की मनमानी को रोकते हुए उनसे स्कूलों के मुख्य द्वार पर फीस की लिस्ट लगवा दे तो आमजन को बहुत बड़ी राहत मिल सकती है। लेकिन आज तक स्थानीय शिक्षा विभाग के अधिकारी यह लिस्ट स्कूल के बाहर नहीं लगवा पाए है।1 उनका रवैये को देखते हुए आगे भी उम्मीद नहीं कि वे फीस की लिस्ट गेट के बाहर लगवाने की इच्छा रखते है। निजी स्कूल संचालक विद्यार्थियों को पढ़ाने की एवज में बहुत अधिक फीस वसूलते हैं। निजी स्कूल तो पहली कक्षा के विद्यार्थियों से ही प्रतिमाह ही प्रति महा 1 हजार से लेकर 3 हजार रुपये तक वसूल रहे है। नियमानुसार इतनी अधिक फीस नहीं ले सकते। उसके बाद भी अधिक फीस लेते हैं।