साभार: जागरण समाचार
कांग्रेस सहित सात विपक्षी दलों के सांसदों ने भारत के वें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र को पद से हटाने के लिए महाभियोग (इम्पीचमेंट) का नोटिस दिया है। ये पहला मौका है जबकि सीजेआइ को हटाने के लिए नोटिस दिया
गया है। लेकिन मौजूदा नियम-कानून में इस पद के बारे महाभियोग की कार्यवाही को लेकर नियम स्पष्ट नहीं हैं। यहां तक कि जज को पद से हटाने की तय प्रक्रिया में कुछ जगह सीजेआइ की भी भूमिका होती है। ऐसे में प्रक्रिया आगे बढ़ाने में नियमों की कमी पेश आएगी। न्यायविदों की मानें तो ये अपनी तरह का पहला मामला है। इस बारे में कोई नजीर मौजूद नहीं इसलिए कई जगह पेंच उलङोगा। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान में दी गई है। उसे लागू करने के लिए जजेस इन्क्वायरी एक्ट और जजेस इन्क्वायरी रूल हैं। अगर किसी जज के खिलाफ जांच होती है तो सामान्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम आरोपित जज से काम वापस लेने के लिए संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहती है और वे उस जज से न्यायिक कार्य वापस ले लेते हैं। लेकिन चीफ जस्टिस कोर्ट का प्रशासनिक मुखिया होता है। उससे काम नहीं छीना जा सकता। हाईकोर्ट के मामले में कोलेजियम ज्यादा से ज्यादा उसका दूसरे हाईकोर्ट में तबादला कर सकती है। लेकिन सुप्रीम के सीजेआइ के मामले में तो कुछ नहीं हो सकता। सीजेआई से काम वापस लिये जाने का कोई नियम नहीं है। ये सिर्फ उनके अपने विवेकाधिकार पर है कि वे न्यायिक काम छोड़ते हैं कि नहीं। इसके अलावा, प्रशासनिक कार्य तो वैसे भी देखेंगे। जैसे मुकदमों की सुनवाई का रोस्टर तय करना आदि। जस्टिस आरएम लोढ़ा मानते हैं कि इस बारे में नियम नहीं हैं और सीजेआइ से काम नहीं छीना जा सकता। जब तक सीजेआइ के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव संसद से पास नहीं हो जाता, वे काम करते रह सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट जाने पर सुनवाई पीठ सीजेआइ ही तय करेंगे: अगर सभापति सांसदों का नोटिस अस्वीकार कर देते हैं तो कांग्रेस उसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कर रही है। लेकिन अगर वे सभापति के नोटिस अस्वीकार करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हैं तो उस पर सुनवाई करने वाली पीठ सीजेआइ ही तय करेंगे क्योंकि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र इसी साल अक्टूबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वह 21वें सीजेआइ (1990-91) रंगनाथ मिश्र के भतीजे हैं।
कौन तय करेगा कमेटी में सुप्रीमकोर्ट जज का नाम: प्रक्रिया के मुताबिक अगर राज्यसभा के सभापति महाभियोग नोटिस स्वीकार करते हैं तो सबसे पहले आरोपों की जांच के लिए जांच कमेटी गठित होगी। तीन सदस्यीय कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और प्रतिष्ठित कानूनविद होता है। सुप्रीम कोर्ट से जज के नाम के लिए सीजेआइ से मशविरा किया जाता है। जबकि यहां आरोप सीजेआइ पर ही हैं। ऐसे में कमेटी में जज का नाम तय करने पर पेंच फंसेगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा मानते हैं कि ऐसी स्थिति आने पर मामला अटक सकता है क्योंकि इस बाबत कोई नियम स्पष्ट नहीं है। ऐसी स्थिति में वे दूसरे नंबर के वरिष्ठ जज द्वारा सदस्य नामित करने की बात करते हैं। लेकिन फिर सवाल उठता है कि अगर महाभियोग नोटिस में चार वरिष्ठ जजों के सीजेआइ के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस करने का मुद्दा शामिल है तो क्या दूसरे नंबर के जज को ये हक मिलेगा। उस स्थिति में वो चारों जज भी ये तय नहीं कर सकते। ऐसे में एक तरीका ये हो सकता है कि फुल कोर्ट बैठे और कमेटी के जज का नाम तय करे।