Saturday, August 23, 2014

नया घर खरीदने जा रहे हैं तो ध्यान रखें ये पांच बातें

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रियल एस्टेट की खरीदारी करना आर्थिक से ज्यादा एक भावनात्मक निर्णय होता है और यह जिंदगी का सबसे बड़ा निवेश भी होता है। ऐसा बड़ा निर्णय लेने से पहले आपको विस्तार से पूरी प्रक्रिया के बारे में सतर्कता से सोचना चाहिए। घर खरीदने संबंधी निर्णय लेने से पहले किसी भी खरीदार को कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से विचार करना चाहिए। घर की खरीदारी के लिए बड़े बिल्डर से बात करें। बड़े बिल्डर, जिनके पास नकदी की कमी नहीं होती और जो समय पर प्रोजेक्ट डिलीवर करते रहे हैं, वह छोटे बिल्डरों के मुकाबले ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। संभव है उनके प्रोजेक्ट थोड़े महंगे हों। एक अच्छे और भरोसेमंद घर की खरीदारी के लिए इतना प्रीमियम दिया जा सकता है।
आइए जानते हैं कुछ जरूरी बातें जो घर खरीदते समय ध्यान रखनी चाहिए:
  1. अपने बजट में ही खरीदें घर: मौजूदा समय में अधिकतर मकान होम लोन की मदद से खरीदे जाते हैं। बैंक आपको फ्लैट की कीमत का 80 प्रतिशत तक लोन के रूप में उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन एक बात ध्यान में रखिए कि अगर आप एकल परिवार वाले हैं तो मासिक किस्तों के भुगतान की राशि आपके हाथ में आने वाली सैलरी के 45 प्रतिशत से अधिक नहीं हो। यह जितना कम हो सकता हो उतना ही अच्छा। उदाहरण के लिए अगर आपकी शुद्ध आय 50,000 रुपए प्रति माह है और मासिक खर्च 20,000 रुपए का है और होम लोन की का फ्लोटिंग रेट 10.25 है तो इस हिसाब से अनुसार प्रति लाख मासिक किस्त 20 वर्षों के लिए 982 रुपए बनती है और इस प्रकार आप 22 लाख रुपए का लोन ले सकते हैं, जिसकी मासिक किस्त 21,604 रुपए बनेगी।  
  2. डाउन पेमेंट की व्यवस्था: अगर आपको डाउन पेमेंट करने में मुश्किल आ रही है तो अच्छा रहेगा कि आप घर खरीदने के लक्ष्य को कुछ समय के लिए टाल दें और इस खाई को पाटने के लिए बचत शुरू कर दें। पहली बार घर खरीदने जा रहे अधिकांश व्यक्ति डाउन पेमेंट की राशि जुटाने के लिए पर्सनल लोन का सहारा लेते हैं, जिसकी ब्याज दर 15 से 22 प्रतिशत तक होती है। बाद में उन्हें एहसास होता है कि दो-दो लोन की मासिक किस्तों का भुगतान करना कितना कठिन है। ऐसे खरीददारों की हमेशा यह कोशिश रहती है कि उनके बैंक खाते में पर्याप्त राशि रहे, ताकि दोनों लोन की मासिक किस्तों के भुगतान में रुकावट पैदा न हो। मासिक खर्च के लिए घटी राशि के लिए वह क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल का सहारा लेते हैं, जिससे वह एक अजीब से कर्ज जाल में फंस जाते हैं।  
  3. अन्य खर्चों को नजरअंदाज न करें: बिल्डर से अंडर-कंस्ट्रक्शन या रेडी टू मूव फ्लैट की खरीदारी करते समय आपको कुल भुगतान के ब्रेकअप का पता चलता है। इसमें फ्लैट की लागत के अलावा स्टांप ड्यूटी शुल्क और रजिस्ट्रेशन, बिजली का मीटर, एक साल का मेंटेनेंस आदि शामिल होते हैं। रीसेल वाले फ्लैट के मामले में आपको यह भी देखना होता है कि सोसायटी के कुछ पैसे या मासिक रख-रखाव के पैसे, पेंटिंग के खर्च, फर्नीचर आदि के पैसे बाकी तो नहीं हैं। बजट को अंतिम रूप देने से पहले इन सभी लागतों पर गौर फरमाना जरूरी होता है।  
  4. लोकेशन का महत्व: एक बार बजट का निर्णय कर लेने के बाद आपको इस बात का आइडिया मिल सकता है कि इस बजट में किस तरह के फ्लैट मिल सकते हैं और किस क्षेत्र या इलाके में ऐसे फ्लैट उपलब्ध हैं। कभी कभार यह गणना उल्टी भी की जाती है। आप किसी खास इलाके या कॉलोनी में रहने की सोचते हैं और आप इसी हिसाब से अपना बजट तय कर सकते हैं। लोकेशन महत्वपूर्ण है, क्योंकि पब्लिक/प्राइवेट ट्रांसपोर्ट, स्कूल, शॉपिंग मॉल, रेलवे स्टेशन आदि घर से ज्यादा दूर नहीं होने चाहिए। ट्रांसपोर्ट की सुविधा जितनी लचर होगी, आपके मासिक खर्च में आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी और ऑफिस आने-जाने का खर्च भी बढ़ेगा। अगर आपका बजट कम है तो आप शहर से कुछ दूर के हिस्से में एक बड़ा घर खरीद सकते हैं या सभी सुविधाओं से संपन्न क्षेत्र में एक छोटा घर ले सकते हैं।  
  5. रेडी फ्लैट या रीसेल या अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपटी खरीदें: यह मुख्य रूप से आपके बजट पर निर्भर करता है। अगर विकल्प दिया जाए तो लोग ज्यादातर रेडी टू मूव (नए फ्लैट) या नए बने रीसेल फ्लैट को तरजीह देते हैं, जहां सभी तरह की सुविधाएं हों और कनेक्टिविटी भी अच्छी हो। निश्चित रूप से ऐसे फ्लैट महंगे होते हैं। अगर आपका कम बजट इसमें बाधक बन रहा है तो आप अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि आम तौर पर रेडी टू मूव फ्लैट की तुलना में यह सस्ता होता है। साथ ही आपको निर्माण चरण के साथ भुगतान करने का विकल्प भी मिलता है, लेकिन ऐसी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले आपको बिल्डर का पिछला रिकॉर्ड भी देखना चाहिए कि बिल्डर सही समय पर फ्लैट की डिलीवरी कर पाता है या नहीं।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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