पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को हरियाणा सरकार द्वारा जाटों को आरक्षण देने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए याची को दोबारा याचिका दायर करने की छूट दे दी। बहस के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि जाट आरक्षण का जो बिल विस ने पास किया है क्या वो कानून
बन चुका है, राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही कोई बिल कानून बन सकता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि गर्वनर ने अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसकेबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि जब कानून ही नहीं बना तो उसे चुनौती कैसे दी जा सकती है। बेंच ने कहा कि जब कानून बन जाए तब आप उसे कोर्ट में चुनौती देना अभी याचिका प्रिमेच्योर है और कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। मामले में सफीदों निवासी शक्ति सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि हरियाणा सरकार ने जाटों के दबाव में उनको आरक्षण दिया है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही जाटों को आरक्षण देने की नीति को रद कर चुका है। दूसरा इंद्रा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, जबकि सरकार ने यह सीमा 70 प्रतिशत तक पार कर दी। याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में एक फैसले में कहा था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।
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साभार: जागरण समाचार
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