Thursday, April 28, 2016

मैनेजमेंट फंडा: कबाड़ का भी कुछ तो मूल्य होता है

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा) 
अगर आप से पूछा जाए कि आप प्लास्टिक का क्या करते हैं? तो शायद आपका जवाब होगा, 'दूर फेंक देता हूं।' आपको यह भी लगेगा कि अधिकांश लोग एक बार इस्तेमाल के बाद प्लास्टिक को इसी तरह दूर फेंक देते हैं, लेकिन ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां प्लास्टिक आपसे दूर जा सके। बल्कि सच्चाई तो यह है कि हममें से अधिकांश लोग वर्तमान दौर में अलग-थलग कर दी गई सोसायटी का हिस्सा हैं। हम सभी बॉटल से लेकर कंटेनर तक फेंक देना चाहते हैं, बिना यह समझे कि यह फेंक दिया गया सामान और कहीं नहीं, समुद्र में ही जाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्लास्टिक को सड़ने और घुलने में पांच सौ से एक हजार साल का समय लगता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि हमारे ग्रह पर 3.62 खरब किलोग्राम प्लास्टिक मौजूद है, जिसकी कीमत 4 खरब डॉलर है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया में हर साल 300 खरब टन प्लास्टिक का सामान बनता है। फेंके गए प्लास्टिक में से 70 लाख टन हर साल समुद्र में जाता है। चार साल पहले एक बिज़नेस कॉन्फ्रेंस के लिए फिलीपीन्स के मनीला के ओशन पार्क गए मरीन लाइफ लवर और डाइवर डेविड काट्ज को इस बात का अहसास हुआ। वॉटर थीम पार्क में समुद्र में देखने के लिए एक खिड़की थी, जब उन्होंने समुद्र की ओर देखा तो पाया कि कई मील दूर तक प्लास्टिक वेस्ट और स्ट्रॉ तैर रहे थे। अचानक उन्हें वह दृश्य याद आया जब प्लास्टिक के जहर से व्हेल मछलियां मर गई थीं और उनके पेट से प्लास्टिक की बोतलें निकली थीं। 
उन्होंने एक ऐसा बिज़नेस करने के बारे में सोचा जो टिकाऊ हो और साथ ही समुद्री जीवन के लिए भी उन्हें कुछ करने का मौका मिले। यह बिज़नेस कैसे करना है यह उन्हें 2013 में कैलिफोर्निया की सिंग्युलैरिटी यूनिवर्सिटी (पार्ट यूनिवर्सिटी, पार्ट थिंक टैंक, पार्ट बिजनेस इनक्यूबेटर। इसका लक्ष्य लोगों को मानवता के समक्ष चुनौतियों को हल करने के लिए शिक्षित और लीडर्स को प्रेरित करना होता है।) जाकर पता चला। दस दिन के कोर्स ने उन्हें एक सामाजिक उपक्रम स्थापित करने में मदद की। इसके तीन आधार थे पीपल, प्लेनेट और प्रॉफिट। उन्होंने अपने बिज़नेस पार्टनर शॉन फ्रेंकसन से बात की और एक नई कंपनी 'द प्लास्टिक बैंक' बनाने का विचार उनसे साझा किया। उस दिन उन्हें एक बात समझ में आई कि समस्या यह है कि लोग प्लास्टिक वेस्ट को वेस्ट समझते हैं। इसलिए उन्होंने इसका मूल्य लोगों के बीच पहुंचाने और इसे पैसों के बदले एक्सचेंज करने का फैसला किया। कई लोगों के लिए यह लाइफ चेंजिंग करंसी बन गई। उन्होंने अपने इस सामाजिक उपक्रम को अंजाम देने के लिए हैती को चुना। यह देश 2010 में भूकंप के बाद तबाह हो गया था। उन्होंने अपने विचार पर काम शुरू किया, क्योंकि उस देश में रिसाइकलिंग का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। यह एक द्वीप है और यहां सभी कुछ समुद्र में जाता है। 
उन्होंने 1.20 करोड़ रुपए की लागत से इस दरिद्र देश में 30 सेंटर बनाए। उन्होंने प्लास्टिक की दो बोतलों के बदले कोयला देना शुरू किया, क्योंकि यहां लोगों की कमाई का 30 प्रतिशत तक का हिस्सा इसी पर खर्च हो रहा था। प्लास्टिक को वाई-फाई, मोबाइल रिचार्ज, छात्रों के लिए लाइट से भी एक्सचेंज किया गया। कुछ लोगों ने तो प्लास्टिक के बदले टीवी तक लिया। चूंकि इस देश में औसत प्रति व्यक्ति कमाई 800 डॉलर सालाना है, इसलिए अब कोई भी प्लास्टिक को बर्बाद नहीं कर रहा है। चूंकि प्लास्टिक बैंक ने प्लास्टिक के बदले सामान और सेवाएं देना शुरू किया इसलिए यह तेजी से आगे बढ़ा। इसके बाद प्लास्टिक को छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलकर कॉर्पोरेशन को बेचा गया। 30 सेंटर्स पर एक साल में 55 लाख किलो प्लास्टिक एकत्र किया गया। डेविड की योजना अब सेंटर्स की संख्या 70 तक बढ़ाने की है, जिसमें इस साल के अंत तक क्षमता 50 गुना ज्यादा हो जाएगी। डेविड अब इस आइडिया पर सभी गरीब देशों में काम करना चाहते हैं। 
फंडायह है कि कबाड़का भी मूल्य होता है और साथ ही यह दुनिया से गरीबी कम करने में भी मददगार हो सकता है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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