Friday, April 29, 2016

दोष मत दीजिए, अपनी किस्मत खुद बनाइए

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा) 
1991 श्रीलंका की फातिमा मेड के वीज़ा पर यूएई आईं और भारत के जफर अल कादर उशेन से उन्हें प्यार हो गया। वे दुबई के अमीरात परिवार में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर थे। 1994-2004 फातिमा ने उशेन से निकाह कर लिया, लेकिन वे मेड का काम करती रहीं। उनके दो बच्चे हुए। एक बेटी शहारा और दो बेटे। 2005 शहारा 10
साल की हो गई थी। एक कार हादसे में उशेन का इंतकाल हो गया। अमीरात परिवार ने शहारा और उसके भाइयों को एक स्थानीय अप मार्केट अंग्रेजी हाई स्कूल में भर्ती कर दिया और उनकी शिक्षा का खर्च उठाया। उनके रहने का इंतजाम किया और हर महीने 2000 दिरहम ( करीब 35 हजार रुपए) का इंतजाम अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 2006- 2013 - शहारा ने स्कूल में कई मेडल और ट्रॉफियां जीतीं, लेकिन 12वीं तक पढ़ाई के बाद उसके रास्ते बंद हो गए। शहारा जफर अली दुबई के नद अल शिबा के अपने एक घर के बेडरूम में बैठी थी। इस बात का कोई अंदाज नहीं लगा पा रही थी कि जिंदगी उसे कहां ले जाने वाली है। 12वीं कक्षा उसने बहुत अच्छे अंकों से पास की थी। उसके आसपास स्कूल में पढ़ाई और खेल में जीती ट्रॉफियां और मेडल रखे थे, लेकिन भविष्य अज्ञात था। श्रीलंकाई मां अभी भी एक मेड के तौर पर अमीराती मालिक के यहां काम कर रही थीं। मालिक रहमदिल थे। कई तरह की सुविधाएं उन्होंने बच्चों के लिए मुहैया कराई थी। मां ने शहारा को बता दिया था कि वह आगे पढ़ाई नहीं कर पाएगी, क्योंकि परिवार के पास कॉलेज की फीस के लिए पैसा नहीं था। समस्याओं से घिरी शहारा ने मदद के लिए एक स्थानीय अखबार से संपर्क किया। 
13 दिसंबर 2013 अखबार ने शहारा की कहानी प्रकाशित की। मर्डोक विश्वविद्यालय के डायरेक्टर डेनियल एडकिन्स ने शहारा की कहानी पढ़ी और उन्हें बुरा लगा कि कोई इतना प्रतिभाशाली हो और फिर भी पैसों की कमी के कारण आगे पढ़ाई कर सके। चूंकि विश्वविद्यालय का ध्येय सभी को अवसर उपलब्ध कराना था, इसलिए डेनियल ने अन्य बोर्ड सदस्यों के साथ यह फैसला किया कि विश्वविद्यालय उसकी पूरी ट्यूशन फीस वहन करेगा। 
17 दिसंबर 2013 मर्डोक विश्वविद्यालय, दुबई ने शहारा को 100 प्रतिशत स्कॉलरशिप दी और उसे बीएससी कंप्यूटर साइंस प्रोग्राम में प्रवेश दे दिया। जनवरी 2014 जब उसे लग रहा था कि वह डेड एंड पर पहुंच गई है स्कॉलरशिप ने उसके और उसके परिवार के लिए नए रास्ते खोल दिए। कॉलेज के पहले दिन मां ने उसे कहा कि कड़ी मेहनत करो और ऐसा काम करो कि जिन लोगों ने तुम पर भरोसा किया है, उन्हें तुम पर गर्व हो। शहारा ने मर्डोक में पढ़ाई शुरू की। अगले तीन सालों तक उसके जीवन में पढ़ाई और कभी-कभी स्पोर्ट्स के अलावा कोई और चीज रही। 
फरवरी 2016 शहारा ने एकेडमिक एक्सीलेंस के लिए वाइस चॉसलर्स अवॉर्ड जीता। अप्रैल 2016 दो विषयों में िवशेष योग्यता के साथ शहारा ग्रेजुएट हो गई। उसने अपनी मां से किया वादा पूरा किया। मदद करने वाला अमीरात परिवार, मीडिया, यूनिवर्सिटी बोर्ड के सदस्य और मां सभी को उसने गौरवान्वित किया। उन पर यूनिवर्सिटी को इतना गर्व है कि शहारा के छोटे भाई मोहम्मद कुदबुद्‌दीन की 75 प्रतिशत फीस भी माफ कर दी है। अब इस परिवार के साथ समस्या यह है कि शहारा के पास भारत का पासपोर्ट है और मां के पास श्रीलंका का। इसे एक देश में तब्दील करना आसान नहीं है। ग्रेजुएट होने के बाद से शहारा चाहती है कि उसकी मां मेड का काम छोड़ दे। वह ऑस्ट्रेलिया में रहना चाहती है और वहां काम के साथ मास्टर्स डिग्री भी लेना चाहती है। मर्डोक विश्वविद्यालय अपने कॅरिअर ऑफिस के माध्यम से शहारा को ऑस्ट्रेलिया में प्रशिक्षण का प्रस्ताव पहले ही दे चुका है। साथ ही उसे मास्टर्स के लिए भी स्कॉलरशिप मिल गई है। इस साल वह कंगारूओं के देश चली जाएगी। 
फंडायह है कि दोषदेना बंद कीजिए, अपनी किस्मत खुद बनाइए और अपने जीवन को अपने हाथ में ले लीजिए। फिर देखिए आप कैसे अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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