हरियाणा स्वास्थ्य विभाग नए भर्ती 400 डॉक्टर्स को सरकारी अस्पतालों में इसी महीने नियुक्ति आदेश दे देगा। साथ ही अगले महीने तक 560 डॉक्टर और भर्ती किए जाएंगे। इससे जिला अस्पताल/डिस्पेंसरियों में आने वाले मरीजों को काफी राहत मिल पाएगी। स्वास्थ्य विभाग नई भर्ती किए गए 125 स्पेशलिस्ट्स को जरूरत के अनुसार जिला अस्पतालों और मेडिकल ऑफिसरों को छह माह की ट्रेनिंग देने के बाद प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स (PHC) में तैनात करेगा। इसके इलावा सभी 21 जिला अस्पतालों में अब स्पेशल क्लीनिक भी खुलेंगे जहां विभिन्न बीमारियों का इलाज एक ही जगह किया जा सकेगा। स्वास्थ्य विभाग सोनीपत, कुरुक्षेत्र, रेवाड़ी, रोहतक, पंचकूला, गुड़गांव और फरीदाबाद में खोले गए पॉलीक्लीनिक को वरीयता देगा। इसी तरह जिलों में स्पेशल क्लीनिक खोले जाने हैं। इनके लिए राज्य सरकार ने डॉक्टर्स के 540 नए पद सृजित किए हैं। इन क्लीनिक को खोलने का मकसद जिला अस्पतालों में मरीजों का दबाव कम करना और बेहतर सेवाएं देना है।
एक चौथाई डॉक्टर नहीं दे रहे सेवाएं: फिलहाल राज्य में करीब 2800 सरकारी डॉक्टर हैं। इनमें से करीब एक चौथाई डॉक्टर अलग-अलग कारणों से राज्य को सेवाएं नहीं दे रहे। कई डॉक्टर एमडी की पढ़ाई के चलते लंबी छुट्टी या डेपुटेशन पर चल रहे हैं। इसके अलावा बहुत से डॉक्टर पोस्टमार्टम व मेडिको-लीगल केस के चलते अदालतों में पेशियां भुगतने की वजह से ड्यूटी नहीं कर पाते। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। इसके इलावा नए भर्ती होने वाले डॉक्टर्स में से बहुत सारे जल्दी ही नौकरी भी छोड़ जाते हैं। पिछले तीन साल में करीब 2000 डॉक्टर भर्ती किए गए। आज इनमें से सिर्फ एक तिहाई ही सेवा में है। इसकी वजह ये है कि एंट्री लेवल पर डॉक्टर्स को पड़ोसी राज्यों पंजाब व हिमाचल प्रदेश की तुलना में करीब 70 फीसदी वेतन ही मिलता है। हरियाणा में डॉक्टर्स का स्टेट्स भी द्वितीय श्रेणी का है जबकि पड़ोसी राज्यों में वह प्रथम श्रेणी में आते हैं। साथ ही पोस्टमार्टम ड्यूटी व मेडिको लीगल केस का बोझ भी ज्यादातर डॉक्टर नहीं झेल पाते। कई स्पेशलिस्ट्स को सरकार ने क्लीनिकल सेवाओं से हटाकर बतौर प्रोग्राम अधिकारी लगा रखा है। ऐसे में वह नौकरी छोड़कर प्राइवेट प्रेक्टिस को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं।
एक चौथाई डॉक्टर नहीं दे रहे सेवाएं: फिलहाल राज्य में करीब 2800 सरकारी डॉक्टर हैं। इनमें से करीब एक चौथाई डॉक्टर अलग-अलग कारणों से राज्य को सेवाएं नहीं दे रहे। कई डॉक्टर एमडी की पढ़ाई के चलते लंबी छुट्टी या डेपुटेशन पर चल रहे हैं। इसके अलावा बहुत से डॉक्टर पोस्टमार्टम व मेडिको-लीगल केस के चलते अदालतों में पेशियां भुगतने की वजह से ड्यूटी नहीं कर पाते। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। इसके इलावा नए भर्ती होने वाले डॉक्टर्स में से बहुत सारे जल्दी ही नौकरी भी छोड़ जाते हैं। पिछले तीन साल में करीब 2000 डॉक्टर भर्ती किए गए। आज इनमें से सिर्फ एक तिहाई ही सेवा में है। इसकी वजह ये है कि एंट्री लेवल पर डॉक्टर्स को पड़ोसी राज्यों पंजाब व हिमाचल प्रदेश की तुलना में करीब 70 फीसदी वेतन ही मिलता है। हरियाणा में डॉक्टर्स का स्टेट्स भी द्वितीय श्रेणी का है जबकि पड़ोसी राज्यों में वह प्रथम श्रेणी में आते हैं। साथ ही पोस्टमार्टम ड्यूटी व मेडिको लीगल केस का बोझ भी ज्यादातर डॉक्टर नहीं झेल पाते। कई स्पेशलिस्ट्स को सरकार ने क्लीनिकल सेवाओं से हटाकर बतौर प्रोग्राम अधिकारी लगा रखा है। ऐसे में वह नौकरी छोड़कर प्राइवेट प्रेक्टिस को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं।