मानव सभ्यता ने पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व तरक्की की है । मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट ने ऐसी क्रान्ति ला दी है कि 2002 से अब तक के 10 सालों में इंसान ने शायद 25 साल जितनी तरक्की कर ली है। आज हर आदमी आधुनिकता की चकाचौंध में इतना डूब चुका है कि उसके पास इतनी भी फुर्सत भी नहीं बची है कि वह खुद का मूल्यांकन कर सके कि वह कहाँ है और जहाँ है वहां उसका होना सही है या गलत?
आइये सीधी बात करते हैं कि इस तकनीकी तरक्की के युग ने इंसान को क्या दिया है और बदले में क्या छीना है। आज आधुनिकता के नाम पर हमारे पास हर सुविधा है। संचार तकनीकी ने आदमी को इतना नजदीक ला दिया है कि अब दुनिया बहुत छोटी लगने लगी है। इस "छोटी सी दुनिया" में
बहुत सारी सभ्यताएं, संस्कृतियाँ हैं - सब अलग - अलग, सब की सब अद्वितीय। सबके रीति-रिवाज अलग हैं, सबकी वेश-भूषा अलग है, सबकी भाषा अलग है, सबके धार्मिक विचार अलग हैं। सबको अपनी संस्कृति पर गर्व है, चाहे वह अमेरिकी हो चाहे अंग्रेज हो, चाहे भारतीय, चाहे कोई जंगली कबीलाई ही क्यों न हो। आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं।
बहुत सारी सभ्यताएं, संस्कृतियाँ हैं - सब अलग - अलग, सब की सब अद्वितीय। सबके रीति-रिवाज अलग हैं, सबकी वेश-भूषा अलग है, सबकी भाषा अलग है, सबके धार्मिक विचार अलग हैं। सबको अपनी संस्कृति पर गर्व है, चाहे वह अमेरिकी हो चाहे अंग्रेज हो, चाहे भारतीय, चाहे कोई जंगली कबीलाई ही क्यों न हो। आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं।
एक भारतीय होने के नाते मुझे भी अपनी "भारतीय संस्कृति" और स्वयं के भारतीय होने पर गर्व है। परन्तु आज की इस "छोटी सी दुनिया" में भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का जो हमला हुआ है, उसे देखना एक दु:स्वप्न से कम नहीं है। मैं यहाँ पाश्चात्य संस्कृति को गलत नहीं ठहरा रहा हूँ। उन देशों में वहां की संस्कृति किसी भी नजरिये से गलत नहीं है, परन्तु भारत जैसे देश के लिए पश्चिमी देशों के रीति-रिवाज, तौर-तरीके और पहनावा, शायद उचित नहीं हैं।
आज पश्चिमी सभ्यता का भारतीय संस्कृति पर दुष्प्रभाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि सभ्यता, असभ्यता और फूहड़ता में बदलने लगी है और भारत सांस्कृतिक प्रदूषण की ओर तेजी से अग्रसर है, और आप मानें या न मानें, आप भी पश्चिमी सभ्यता की नक़ल करने की इस अंधी दौड़ में शामिल हैं तो अभी से संभल जाइए, अन्यथा भविष्य में जानवर से भी बदतर जीवन जीने के लिए तैयार हो जायें।आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं। आज भारत में जितने भी अपराध बढ़ रहे हैं, उनमें से अधिकतर पहले की तरह मजबूरी में किये गए अपराध नहीं हैं, आजकल के अपराध शौक के लिए किये जाते हैं - और इन सबके पीछे के बहुत सारे कारणों में से सबसे बड़ा कारण है - पश्चिमी सभ्यता और पहनावे की नक़ल। आजकल के युवा उन देशों के लोगों की नक़ल करके तरह तरह के नशे, ड्रग्स और यहाँ तक कि वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक कार्य करने में भी गर्व महसूस करते हैं। लेकिन इसमें उनका कसूर नहीं है । सारा दोष उनके माता-पिता का है, जिनको पता ही नहीं है कि हमारा बच्चा स्कूल या कॉलेज पढने गया है या किसी डिस्को-क्लब या पब में या फिर किसी और गलत जगह। आधुनिक जीवन की भागदौड में वे भी इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते और बच्चा, जो उनका भविष्य होता है, वह धीरे-2 सूखी रेत की तरह उनके हाथ से फिसलता जाता है।
आज पश्चिमी सभ्यता का भारतीय संस्कृति पर दुष्प्रभाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि सभ्यता, असभ्यता और फूहड़ता में बदलने लगी है और भारत सांस्कृतिक प्रदूषण की ओर तेजी से अग्रसर है, और आप मानें या न मानें, आप भी पश्चिमी सभ्यता की नक़ल करने की इस अंधी दौड़ में शामिल हैं तो अभी से संभल जाइए, अन्यथा भविष्य में जानवर से भी बदतर जीवन जीने के लिए तैयार हो जायें।आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं। आज भारत में जितने भी अपराध बढ़ रहे हैं, उनमें से अधिकतर पहले की तरह मजबूरी में किये गए अपराध नहीं हैं, आजकल के अपराध शौक के लिए किये जाते हैं - और इन सबके पीछे के बहुत सारे कारणों में से सबसे बड़ा कारण है - पश्चिमी सभ्यता और पहनावे की नक़ल। आजकल के युवा उन देशों के लोगों की नक़ल करके तरह तरह के नशे, ड्रग्स और यहाँ तक कि वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक कार्य करने में भी गर्व महसूस करते हैं। लेकिन इसमें उनका कसूर नहीं है । सारा दोष उनके माता-पिता का है, जिनको पता ही नहीं है कि हमारा बच्चा स्कूल या कॉलेज पढने गया है या किसी डिस्को-क्लब या पब में या फिर किसी और गलत जगह। आधुनिक जीवन की भागदौड में वे भी इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते और बच्चा, जो उनका भविष्य होता है, वह धीरे-2 सूखी रेत की तरह उनके हाथ से फिसलता जाता है।
इसके इलावा एक सबसे बड़ा चिंता का विषय यह भी है कि माता-पिता स्वयं पाश्चात्य संस्कृति की नक़ल में शामिल हैं। एक वाकया आप के साथ सांझा करना चाहूंगा।आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं। एक गारमेंट शोरूम में मैं कुछ कपडे खरीद रहा था, मेरे पास वाले काउंटर पर ही एक पति पत्नी अपनी लगभग 15-16 साल की बेटी को भी कोई ड्रेस दिलवा रहे थे। उस लड़की ने एक टॉप लिया, जिसकी बाजू शायद न के बराबर थी, ट्राई रूम से बाहर आकर उसने अपने माता-पिता को दिखाया; फिर दूसरा टॉप लिया, जिसकी बाजू शायद 3-4 इंच की रही होगी, वो भी पहन कर दिखाया, तो उसके पिता की प्रतिक्रिया क्या आप सोच सकते हैं? उसके पिता ने कहा - बेटा, पहले वाला ठीक लग रहा था। क्या कहेंगे आप उस पिता को जिसे अपनी बेटी बदन-दिखाऊ कपड़ों में ज्यादा अच्छी लग रही थी? अगर अब उस लड़की की बाइक के चारों तरफ अगर 15 लड़के बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठे अभद्र फिकरे कसते हैं तो किसका दोष है? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वही लड़की अगर सभ्य कपडे पहन कर कहीं जाए तो उसके साथ इतनी समस्या नहीं होगी।ये जिम्मेदारी माँ बाप की है, कि उनके बच्चे क्या पहनते हैं, क्या खाते-पीते हैं, कहाँ जाते हैं और उनकी संगत कैसी है। युवाओं को भी हर चीज के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुओं को सोच कर चलना चाहिये।
कॉलेज या स्कूल के बाद दुपहिया वाहनों पर बैठकर गलियों और सड़कों पर चक्कर लगाने वाले लड़कों से मेरा सवाल है कि आप जिस तरह से किसी लड़की के आगे-पीछे चक्कर लगाते हुए उन पर कमेन्ट करते हो, तो क्या आपकी बहन को स्कूल या कॉलेज के रास्ते में आप जैसे ही अन्य लड़कों का सामना नहीं करना पड़ता? लड़कियों से भी मेरा एक छोटा सा सवाल है कि आप जिस तरह आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की नक़ल कर जींस-टॉप वगैरह पहनते हैं और इनकी वजह से आपको हर जगह मानसिक और शारीरिक उत्पीडन का शिकार होना पड़ता है, क्या आप भविष्य में अपनी बेटी के साथ ऐसा व्यवहार बर्दाश्त करना पसंद करेंगी? मेरा कहने का सीधा तात्पर्य यही है कि कम से कम हम कपडे तो इस तरह के पहनें जिसमें हम असभ्य न लगें। एक ट्रेनिंग कैम्प में मेरे एक सहयोगी अध्यापक ने इसी विषय पर एक बात कही जो एकदम सार्थक और सटीक भी लगी।आप यह लेख www.nareshjangra.blogspot.com पर पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि: "आज का समय ऐसा है कि दुनिया जहाँ से चली थी, घूम-फिर कर वहीँ वापस पहुँचने जा रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब आदमी के पास कपडे नहीं थे तो मजबूरी में पत्ते लपेटता था, आज कपडा भी है लेकिन औरतें नंगी घूम रही हैं।" और तो और, पश्चिमी सभ्यता के कारण भारतीय समाज का इतना नैतिक पतन हो गया है कि शर्लिन चोपड़ा, पूनम पांडे और सनी लियोन जैसी लडकियां मात्र प्रसिद्धि पाने के लिए अपने अभद्र फोटो तक बेच रही हैं, और उसमें भी इनको फख्र महसूस होता है। कितनी शर्म की बात है भारत के लिए और भारत की संस्कृति के लिए! वास्तव में सभ्यता और संस्कृति नाम की चीज बची ही नहीं है, मुझे तो इस प्रकार के लोगों और जानवरों में कोई फर्क ही नजर नहीं आ रहा।
इस छोटे से लेख के माध्यम से मैं हर भारतीय को यही सन्देश देना चाहूँगा कि-
"भारतीय संस्कृति के लिए दु:शासन मत बनो, सभ्य कपडे पहनो और दूसरों को भी प्रेरित करो, अन्यथा ध्यान रखना खुद का चीर हरण करने वालो, आने वाले कल में बेटी को पालना तुम्हारे लिए नामुमकिन हो जायेगा और जिस समाज में नारी सुरक्षित नहीं, वो समाज नहीं जंगल है, और उसमें रहने वाले जानवर।"
कृपया इस आर्टिकल को फेसबुक, ट्विटर, ईमेल आदि के माध्यम से हर भारतीय तक पहुंचाएं। और इस लेख के विषय में आप अपने विचार अवश्य भेजें, हमारा ईमेल पता है:
edugram97@gmail.com
"भारतीय संस्कृति के लिए दु:शासन मत बनो, सभ्य कपडे पहनो और दूसरों को भी प्रेरित करो, अन्यथा ध्यान रखना खुद का चीर हरण करने वालो, आने वाले कल में बेटी को पालना तुम्हारे लिए नामुमकिन हो जायेगा और जिस समाज में नारी सुरक्षित नहीं, वो समाज नहीं जंगल है, और उसमें रहने वाले जानवर।"
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