Tuesday, April 26, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: समस्या के दो समाधान शिकायत करें या काम

स्टोरी 1: चार हजार से भी अधिक वर्षों से दक्षिण पूर्वी ईरान का अफगानिस्तान की सीमा से लगा हामून झील का इलाका समृद्ध था। यहां लोग मछली पकड़ने, चटाई बनाने, पशुपालन और खेती का काम करते रहे हैं, लेकिन अब इनकी उम्मीदें सूख गई हैं। अफगानिस्तान में हिंदकुश पर्वत से निकलने वाली 1100 किलोमीटर लंबी
हेलमंड नदी इस हामून झील में पानी का मुख्य स्रोत है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस इलाके में तीन छोटी झीलें हैं, जिन्हें सरकार ने 20 साल पहले आपस में जोड़ दिया था। तब झीलों में पानी बहुत था। झील उनकी जीवन रेखा थी। 1990 के बाद से जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा और क्षेत्र में वर्षा की मात्रा कम होने लगी। क्षेत्र में सूखे का नज़ारा दिखने लगा। हेलमंड नदी में भी पानी का स्तर कम हो गया। इसमें अन्य कई बातों ने भी योगदान दिया। जैसे अफगानिस्तान में कई बांध एक साथ बनाए गए। खेतों में सिंचाई के लिए पम्प का उपयोग होने लगा। इसने भी समस्या को और व्यापक कर दिया। 
1999 के बाद ईरान और अफगानिस्तान में जब तीन साल लगातार सूखा पड़ा तो 2001 में हामून झील पूरी तरह सूख गई। कभी उपजाऊ रही भूमि बंजर हो गई। इलाके की पहचान रहा 12 हजार टन का सालाना मछली उद्योग और खेती खत्म हो गई। इसके परिणाम भी नज़र आने लगे। आज बच्चे लावारिस छोड़ दी गई, धूल खा रही फिशिंग बोट पर खेलते हैं। पूरे दिन धूल उड़ती रहती है और यह धूल हर जगह, हर दरार में जा पहुंची है। परिणाम यह है कि यहां घरों में खिड़कियों को स्थायी रूप से सील कर दिया गया है। 20वीं सदी के अंत में आबादी में हुई अचानक बढ़ोतरी के बाद से इलाके में नई वॉटर मैनेजमेंट तकनीक सामने आने लगी थी। साथ ही स्थानीय संस्कृति में भी बड़ा परिवर्तन देखने में आया। रेगिस्तानी झीलों से जुड़ी संस्कृति। यहां लोग लंबी बेंत की बोट बनाने लगे, जो उथले पानी में भी चल सकें। घर लाल मिट्‌टी के बनाए जाने लगे ताकि रेगिस्तान की तपन को झेल सके। अब इस इलाके के लोग समस्या के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद मांग रहे हैं। 
स्टोरी 2: महाराष्ट्र भीषण सूखे से जूझ रहा है। इस सूखे की चपेट में अकोला भी है। पिछले साल इस इलाके की पातूर तहसील में सबसे ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की थी, लेकिन इस साल इलाके के 15 गांवों के लोग सूखे से मुकाबले के लिए चमकदार उदाहरण बन गए हैं। लोगों ने मिलकर सिर्फ पुराने बांधों की मरम्मत का काम हाथ में लिया है, बल्कि सुवर्णा नदी में नए छोटे बांध भी बनाए जाने हैं। यह नदी ही इलाके की इकलौती पानी की स्रोत है। कुछ लोगों ने अपनी जमीनें दीं। कुछ ने पैसे दिए। जो दोनों नहीं दे सकते थे, उन्होंने अपनी मशीनें, ट्रैक्टर और श्रम दिया। सभी के हित का यह काम एक छोटे गांव श्रीला से शुरू हुआ। कृषि में मास्टर्स डिग्री हासिल करके आए संतोष गवई और सचिन कोकाटे ने अपनी जमीनें दीं और देशभर में जाकर सफल वॉटर शेड प्रोजेक्ट का अध्ययन किया। आखिर में अपने गांव के चारों तरफ जल संग्रहण क्षेत्र तैयार करने का काम शुरू किया। हालांकि, सरकार की ओर से अभी मदद मिलना बाकी है, लेकिन इन्होंने अपनी तकदीर खुद बनाना शुरू कर दिया। योजना के अनुसार 150 बांध बनाए जाने हैं। इन्हें सीमेंट नाला बांध नाम दिया गया है। इनकी लंबाई 500 फीट, चौड़ाई 50 फीट और गहराई 30 फीट होगी। इनमें 50 पुराने बांधों का जीर्णोद्धार भी शामिल है। 19 करोड़ रुपए का यह प्रोजेक्ट काफी लंबा चलने वाला है, लेकिन गांव वालों का मानना है कि अगर इस काम के लिए पूरी तरह कमर कस ली जाए तो अगले सौ साल तक इस गांव को कई समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी, क्योंकि इससे साल भर सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी। 
फंडा यह है कि जबसमस्याएं सामने आती हैं तो सामने सिर्फ दो विकल्प होते हैं। एक तो शिकायत करते रहना तथा मदद मांगना और दूसरा खुद जिम्मेदारी लेना इस नज़रिये से समस्या सुलझाना कि भविष्य में भी समस्या आए। तय आपको ही करना है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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