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साभार: आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज
बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था। उस किसान की एक
बहुत ही सुन्दर बेटी थी। दुर्भाग्यवश, गाँव के जमींदार से उसने बहुत सारा
धन उधार लिया हुआ था। जमींदार बूढा और कुरूप था । किसान की सुंदर बेटी को
देखकर उसने सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले किसान के सामने उसकी बेटी से
विवाह का प्रस्ताव रखा जाये। जमींदार किसान के पास गया और उसने कहा – तुम
अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो, बदले में मैं तुम्हारा सारा कर्ज माफ़
कर दूंगा। जमींदार की बात सुन कर किसान और किसान की बेटी के होश उड़ गए। तब जमींदार ने कहा – चलो गाँव की पंचायत के पास चलते हैं और जो निर्णय वे
लेंगे उसे हम दोनों को ही मानना होगा। आप
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वो सब मिल कर पंचायत के पास गए और
उन्हें सब कह सुनाया। उनकी बात सुन कर पंचायत ने थोडा सोच विचार किया और
कहा- ये मामला बड़ा उलझा हुआ है अतः हम इसका फैसला किस्मत पर छोड़ते हैं।
जमींदार सामने पड़े सफ़ेद और काले पत्थरों के ढेर से एक काला और एक सफ़ेद पत्थर
उठाकर एक थैले में रख देगा फिर लड़की बिना देखे उस थैले से एक पत्थर उठाएगी,
और उस आधार पर उसके पास तीन विकल्प होंगे। 1. अगर वो काला पत्थर उठाती है तो उसे जमींदार से शादी करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा।
2. अगर वो सफ़ेद पत्थर उठती है तो उसे जमींदार से शादी नहीं करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्फ़ भी माफ़ कर दिया जायेगा।
3. अगर लड़की पत्थर उठाने से मना करती है तो उसके पिता को जेल भेज दिया जायेगा।
पंचायत के आदेशानुसार जमींदार झुका और उसने दो पत्थर उठा लिए। जब वो पत्थर उठा रहा था तो तब किसान की बेटी ने देखा कि उस जमींदार ने दोनों काले पत्थर ही उठाये हैं और उन्हें थैले में डाल दिया है।
लड़की इस स्थिति से घबराये बिना सोचने लगी कि वो क्या कर सकती है, उसे तीन रास्ते नज़र आये -
1. वह पत्थर उठाने से मना कर दे और अपने पिता को जेल जाने दे।
2. सबको बता दे कि जमींदार दोनों काले पत्थर उठा कर सबको धोखा दे रहा है।
3. वह चुप रह कर काला पत्थर उठा ले और अपने पिता को कर्ज से बचाने के लिए जमींदार से शादी करके अपना जीवन बलिदान कर दे।
उसे लगा कि दूसरा तरीका सही है, पर तभी उसे एक चौथा उपाय सूझा, उसने थैले में अपना हाथ डाला और एक पत्थर अपने हाथ में ले लिया और बिना उस की तरफ देखे उसके हाथ से फिसलने का नाटक किया, उसका पत्थर अब हज़ारों पत्थरो के ढेर में गिर चुका था और उनमे ही कहीं खो चुका था। लड़की ने कहा – हे भगवान ! मैं कितनी बेवकूफ हूँ। लेकिन कोई बात नहीं। आप लोग थैले के अन्दर देख लीजिये कि कौन से रंग का पत्थर बचा है, तब आपको पता चल जायेगा कि मैंने कौन सा उठाया था जो मेरे हाथ से गिर गया। थैले में बचा हुआ पत्थर काला था, सब लोगों ने मान लिया कि लड़की ने सफ़ेद पत्थर ही उठाया था। जमींदार के अन्दर इतना साहस नहीं था कि वो अपनी चोरी मान ले। लड़की ने अपनी सोच से असम्भव को संभव कर दिया।
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हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जहाँ सब
कुछ धुंधला दीखता है, हर रास्ता नाकामयाबी की ओर जाता महसूस होता है पर ऐसे
समय में यदि हम सोचने का प्रयास करें तो उस लड़की की तरह अपनी मुश्किलें दूर
कर सकते हैं।
साभार: आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज
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