Post
published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज
आजकल ककड़ी का मौसम है। आम तौर पर हम कच्ची ककड़ी ही सलाद इत्यादि के रूप में खाते हैं। कच्ची ककड़ी में आयोडीन
पाया जाता है। ककड़ी बेल पर लगने वाला फल है। गर्मी में पैदा होने वाली
ककड़ी स्वास्थ्यवर्ध्दक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती
है। ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्रकारक, वातकारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन
करने वाली होती है। उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्तविकार, मधुमेह में
ककड़ी फ़ायदेमंद हैं। ककड़ी के अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती
है, परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है। आप
यह पोस्ट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू
डॉट नरेशजांगड़ा डॉट
ब्लागस्पाट डॉट कॉम
पर पढ़ रहे
हैं। ककड़ी की ही प्रजाति खीरा
व कचरी है। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज़्यादा पायी जाती है।
ककड़ी के बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। इसके इलावा ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृध्दि होती है। बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। ककड़ी के बीजों को ठंडाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है। ककड़ी के बीज पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की त्वचा स्वस्थ व चमकदार होती है। ककड़ी के रस में शक्कर या मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है। ककड़ी की मींगी मिश्री के साथ घोंटकर पिलाने से पथरी रोग में लाभ पहुंचता है।
साभार: आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज
Post
published at www.nareshjangra.blogspot.com
For getting Job-alerts and Education News, join our
Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE