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एमडीएस यूनिवर्सिटी, अजमेर के तत्कालीन रजिस्ट्रार किशोर कुमार
समेत परीक्षा नियंत्रक जगराम मीणा, सहायक रजिस्ट्रार, वरिष्ठ लिपिक डीके
वर्मा और गोपनीय शाखा के लिपिक रतन सिंह पंवार के खिलाफ अदालत ने मुकदमा
दर्जकर जांच के आदेश दिए हैं। यह कार्रवाई एक छात्र की ओर से परीक्षा परिणाम में धांधली व दस्तावेजों
में हेरफेर व धमकाने के आरोपों को लेकर दायर इस्तगासे पर की गई है। अदालत के समक्ष यूनिवर्सिटी में मास्टर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन के छात्र
दीप विशाल चौरसिया ने वकील कमल सिंह राठौड़ और अमरचंद शर्मा के जरिए
इस्तगासा दायर किया था। छात्र का कहना है कि उसने जुलाई 2009 में एमसीए में प्रवेश लिया था और
नियमित छात्र के रूप में पढ़ाई की है। परिवादी छात्र द्वारा छठे सेमेस्टर
की परीक्षा दी जा चुकी है और हालत यह है कि उसके चौथे से लेकर छठे सेमेस्टर
का परीक्षा परिणाम रुका हुआ है।
चौथे सेमेस्टर का परीक्षा परिणाम यह कहकर रोक लिया गया था उसने प्रश्न
पत्र क्रमांक 405-बी में नकल की थी। परिवादी का आरोप है कि गोपनीय शाखा के
लिपिक रतन सिंह ने उसे कहा कि चौथे सेमेस्टर की पूरी परीक्षा रद्द कराने के
बजाए वह केवल प्रश्न पत्र क्रमांक 405-बी को ही रद्द करने आदेश जारी करवा
देगा।
इसके लिए परिवादी से 25 हजार रुपए की मांग की गई। इस घटना की जानकारी परिवादी ने सब रजिस्ट्रार (यूएम) को दी और 21 जनवरी को उनसे मुलाकात की। परिवादी के अनुसार उसे बताया गया कि अब कुछ नहीं हो सकता है और उसका एक सेमेस्टर की परीक्षा रद्द करने का पत्र जारी हो गया है। परिवादी के बेशकीमती दो साल बर्बाद किए जाने संबंधी एमडीएस की ओर से जारी पत्र को परिवादी ने देखा तो पाया कि उस पर सब रजिस्ट्रार गोपनीय (यूएम) के स्थान पर डिस्पैच लिपिक रतन सिंह के साइन थे। वहीं एमडीएस ने आरटीआई के तहत सूचना दी कि पत्र पर कार्यालय सहायक ने साइन किए हैं। इधर, पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल होने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जब परिवादी छात्र की गुहार ठुकरा दी तो उसने अदालत में सिविल केस दायर किया। इस केस में वरिष्ठ लिपिक डीके वर्मा ने जवाब दावा व हलफनामा पेश कर बताया कि परिवादी के चौथे सेमेस्टर में पीपी यानि प्रजेंट पेपर कैंसिल की कार्यवाही की गई है। इस आधार पर सिविल कोर्ट ने परिवादी का स्टे मंजूर कर उसे पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा में बैठाने के आदेश जारी कर दिए। हलफनामे से समर्थित जवाब में यूनिवर्सिटी ने सूचना दी कि 2011 के सत्र में 63 छात्रों के प्रजेंट पेपर कैंसिल किए गए हैं वहीं 270 के खिलाफ प्रजेंट एग्जाम कैंसिल करने की कार्रवाई की गई है। परिवादी के खिलाफ प्रजेंट पेपर कैंसिल यानि एक पेपर को कैंसिल करने की कार्रवाई संबंधी जवाब व हलफनामा देने और स्टे होने के बाद अचानक अपने जवाब को संशोधित करवाया और कहा कि परिवादी की पूरी परीक्षा कैंसिल कर दी गई है। पहले पेश जवाब और हलफनामे को टंकण की गलती बता दिया। परिवादी का आरोप है कि यू्निवर्सिटी के अधिकारियों ने साजिश पूर्वक उसके मामले में दस्तावेजों में हेरफेर की है। परीक्षा में नकल बाबत ना तो उसे आरोप पत्र दिया गया ना ही अनुशासन कमेटी एवं बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के समक्ष उसे कभी बुलाकर सुनवाई की गई। बिना सुनवाई के ही उसकी परीक्षा निरस्त करने की कार्रवाई की गई है। उसने अपने पिता के सहयोग से जब अनुशासन कमेटी की रिपोर्ट अन्य दस्तावेज आरटीआई के तहत प्राप्त करने चाहे तो उसे आला अधिकारियों ने उसे परेशान व धमकाना शुरू कर दिया। तत्कालीन कलेक्टर मंजू राजपाल के समक्ष भी परिवादी ने अपनी पीड़ा का इजहार किया व कलेक्टर कार्यालय से जब जवाब तलब किया गया तो यूनिवर्सिटी के अधिकारी द्वेषतापूर्वक उसे नुकसान पहुंचाने पर आमादा हो गए। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत इस्तगासा सिविल लाइन थाना भेज कर अप्रार्थीगण के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।
साभार: दैनिक भास्कर समाचार
इसके लिए परिवादी से 25 हजार रुपए की मांग की गई। इस घटना की जानकारी परिवादी ने सब रजिस्ट्रार (यूएम) को दी और 21 जनवरी को उनसे मुलाकात की। परिवादी के अनुसार उसे बताया गया कि अब कुछ नहीं हो सकता है और उसका एक सेमेस्टर की परीक्षा रद्द करने का पत्र जारी हो गया है। परिवादी के बेशकीमती दो साल बर्बाद किए जाने संबंधी एमडीएस की ओर से जारी पत्र को परिवादी ने देखा तो पाया कि उस पर सब रजिस्ट्रार गोपनीय (यूएम) के स्थान पर डिस्पैच लिपिक रतन सिंह के साइन थे। वहीं एमडीएस ने आरटीआई के तहत सूचना दी कि पत्र पर कार्यालय सहायक ने साइन किए हैं। इधर, पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल होने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जब परिवादी छात्र की गुहार ठुकरा दी तो उसने अदालत में सिविल केस दायर किया। इस केस में वरिष्ठ लिपिक डीके वर्मा ने जवाब दावा व हलफनामा पेश कर बताया कि परिवादी के चौथे सेमेस्टर में पीपी यानि प्रजेंट पेपर कैंसिल की कार्यवाही की गई है। इस आधार पर सिविल कोर्ट ने परिवादी का स्टे मंजूर कर उसे पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा में बैठाने के आदेश जारी कर दिए। हलफनामे से समर्थित जवाब में यूनिवर्सिटी ने सूचना दी कि 2011 के सत्र में 63 छात्रों के प्रजेंट पेपर कैंसिल किए गए हैं वहीं 270 के खिलाफ प्रजेंट एग्जाम कैंसिल करने की कार्रवाई की गई है। परिवादी के खिलाफ प्रजेंट पेपर कैंसिल यानि एक पेपर को कैंसिल करने की कार्रवाई संबंधी जवाब व हलफनामा देने और स्टे होने के बाद अचानक अपने जवाब को संशोधित करवाया और कहा कि परिवादी की पूरी परीक्षा कैंसिल कर दी गई है। पहले पेश जवाब और हलफनामे को टंकण की गलती बता दिया। परिवादी का आरोप है कि यू्निवर्सिटी के अधिकारियों ने साजिश पूर्वक उसके मामले में दस्तावेजों में हेरफेर की है। परीक्षा में नकल बाबत ना तो उसे आरोप पत्र दिया गया ना ही अनुशासन कमेटी एवं बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के समक्ष उसे कभी बुलाकर सुनवाई की गई। बिना सुनवाई के ही उसकी परीक्षा निरस्त करने की कार्रवाई की गई है। उसने अपने पिता के सहयोग से जब अनुशासन कमेटी की रिपोर्ट अन्य दस्तावेज आरटीआई के तहत प्राप्त करने चाहे तो उसे आला अधिकारियों ने उसे परेशान व धमकाना शुरू कर दिया। तत्कालीन कलेक्टर मंजू राजपाल के समक्ष भी परिवादी ने अपनी पीड़ा का इजहार किया व कलेक्टर कार्यालय से जब जवाब तलब किया गया तो यूनिवर्सिटी के अधिकारी द्वेषतापूर्वक उसे नुकसान पहुंचाने पर आमादा हो गए। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत इस्तगासा सिविल लाइन थाना भेज कर अप्रार्थीगण के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।
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