Monday, December 3, 2012

छात्रों को लैपटॉप और टेबलेट देने की योजना ठण्डे बस्ते में



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पंजाब के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे 11वीं व 12वीं के छात्र टैबलेट मिलने की राह ताक रहे हैं, जबकि सेशन समाप्त होने में सिर्फ तीन माह रह गए हैं। अभी तक ये तय नहीं हो सका है कि कितने बच्चों को ये टैबलेट मिलेंगे, हालांकि अकाली दल ने चुनाव से पहले वादा किया था कि सत्ता में आते ही दोनों क्लास के छात्रों को लैपटाप दिए जाएंगे जो बाद में टैबलेट में बदल गया। दोबारा सत्ता में आने के नौ माह बाद भी इसके लिए प्रक्रिया तक शुरू नहीं हो पाई है। लाडोवाली रोड जालंधर स्थित सीनियर सेकंडरी स्कूल में कामर्स के
छात्र मंजीत सिंह की प्रतिक्रिया थी: सर, क्या हमें स्कूल की तरफ से टैबलेट दिए जाने हैं? हमें ये कब मिलेंगे? सरकारी कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड की प्रिंसिपल दलजीत कौर कहती हैं कि छात्राओं ने टैबलेट के बारे में कभी नहीं पूछा। जब साइकिल मिलने थे तो अखबारों में खबरें छपने पर अकसर साइकिल मिलने के बारे में पूछा करती थीं। शिक्षा विभाग में एक चर्चा यह भी है कि बजट में 12वीं के छात्रों को ही टैबलेट देने का सरकार का फैसला गलत है क्योंकि जब तक टैबलेट उन्हें मिलेंगे वह स्कूल से बाहर हो जाएंगे। यदि 11वीं के छात्रों को टैबलेट दिए जाएं तो अगले साल केवल एक ही कक्षा के छात्रों को टैबलेट देने पड़ेंगे जबकि मौजूदा फैसले से जब भी टैबलेट देने पड़ेंगे तो दो कक्षाओं के छात्रों को देने पड़ेंगे।
कैसे बनी और बिगड़ी योजना: 14,000 रुपए के हिसाब से तीन लाख छात्रों को लैपटॉप देने को 420 करोड़ की जरूरत पड़नी थी। अधिकारियों ने बजट कम करने के लिए कम-से-कम 7000 रुपए वाला टैबलेट देने का सुझाव दिया। शिक्षा विभाग को 17 दिसंबर को शुरू होने वाले विधानसभा के सेशन से पहले-पहले स्कीम लागू करने के निर्देश दिए गए। 2012 में स्कीम तो क्या लागू होनी थी अभी तक इनकी खरीद के लिए टेंडर भी जारी नहीं किए गए। केंद्र की ओर से ‘आकाश’ टैबलेट देने की तैयारी को देखते हुए राज्य सरकार ने इस स्कीम को इस उम्मीद से ठंडे बस्ते में डाल दिया है कि जो ‘आकाश’ मिलेंगे वहीं बांट देंगे। केंद्रीय स्कीमों को अपनी बता कर इस्तेमाल करने का राज्य सरकार को तजुर्बा तो है ही। शिक्षाविद बी एस भाटिया इस विषय में कहते हैं कि सबसे पहले योजना का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। अगर छात्रों को टैबलेट देने थे तो सेशन शुरू होते ही किताबों के साथ उपलब्ध कराए जाते। सेशन के अंत तक ये मिल भी जाएंगे तो टीचर्स इनके जरिए छात्रों को अपडेट तो नहीं कर पाएंगे। सबसे पहले जरूरत ग्राउंड वर्क की है। कामर्स, मेडिकल, नान मेडिकल से लेकर ह्यूमैनिटी ग्रुप के छात्रों की जरूरतें अलग-अलग हैं, क्या उनकी जरूरत पर टैबलेट खरा भी उतरेगा? अभी तक तो हमें हर क्लास के लिए अलग-अलग कंप्यूटर सिलेबस और कंप्यूटर की जरूरत है। 
साभार: दैनिक भास्कर 

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