Monday, December 3, 2012

राजस्थान में 6 प्रतिशत अंकों वाले बने प्रधानाध्यापक और 61 प्रतिशत वाले हुए बाहर

राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रधानाध्यापक भर्ती परीक्षा में मात्र 6% अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी सेकंडरी स्कूलों के हैडमास्टर बन गए। जबकि 61% अंक प्राप्त करने वाले सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी इससे बाहर हो गए। अंकों की न्यूनतम सीमा का प्रावधान न होने से इस भर्ती में बेहद खराब प्रदर्शन करने वाले भी राजपत्रित अधिकारी बन गए हैं। मेरिट में 2072वां स्थान हासिल करने वाली एक अभ्यर्थी 34.07 (6%) अंक हासिल कर हैडमास्टर बनी हैं। इस परीक्षा में करीब 60% से ज्यादा तृतीय श्रेणी के शिक्षक हैडमास्टर बने हैं। माध्यमिक शिक्षा में प्रधानाध्यापकों की भर्ती परीक्षा इस साल मई में हुई थी। पिछले दिनों आए परिणाम ने उन अभ्यर्थियों को हतप्रभ कर दिया जो 366 अंक हासिल करके भी मेरिट में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सके। दूसरी तरफ एसटी, विधवा कोटे का कट ऑफ 34.07 अंक रहा और इस सीमा में आने वाले अभ्यर्थी हैडमास्टर बन गए। इस बारे में राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री के एल कमल का कहना है कि संविधान प्रदत्त आरक्षण का प्रावधान जरूर होना चाहिए, लेकिन शिक्षा जैसे पेशे में एक कट ऑफ लाइन होना भी निहायत जरूरी है। यदि न्यूनतम अंकों की कोई सीमा तय नहीं होगी तो शिक्षा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ती जाएगी। इस तरह की भर्ती परीक्षाओं के लिए श्रेणीवार न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान तय किया जाए। ऐसा होने से एक सीमा के नीचे अंक लाने वाले स्वत: ही बाहर हो जाएंगे। वहीँ राजस्थान लोक सेवा आयोग के सचिव कहते हैं कि नियमों में न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान नहीं होने से यह परेशानी पैदा हो रही है। इसी कारण काफी कम अंकों वाले अभ्यर्थी भी चयनित हो गए। गौरतलब है कि प्रधानाध्यापक भर्ती में 300-300 अंक के दो पेपर हुए थे। एसटी विडो कोटे में कट ऑफ सीमा पर चयनित हुईं चांद के सामान्य ज्ञान के पहले पेपर में मात्र 3.47 अंक हैं। शिक्षा एवं शिक्षा प्रशासन की जानकारी वाले दूसरे पेपर में 30.6 अंक हैं। उनके कुल अंक 34.07 हैं और ऑवर ऑल मेरिट क्रमांक 2072 है। परन्तु आरक्षण के नियमों के चलते इनका चयन हो गया।
साभार: दैनिक भास्कर 
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