Thursday, April 12, 2012

Supreme Court's decision regarding 25% reservation for Weaker Sections

जिन स्कूलों को गरीबों के बच्चे बड़ी हसरतभरी निगाहों से देखा करते थे अब वह उनमें दाखिला भी ले सकेंगे। ये बच्चे न केवल स्वर्णिम भविष्य के सपने देख सकेंगे बल्कि उन्हें साकार करने का मौका भी अब मिलेगा। यह अवसर उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत के अहम फैसले से मिला है। 6-14 साल की उम्र के हर बच्चे को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का अधिकार देने वाले कानून (राइट टू एजुकेशन) को सुप्रीम कोर्ट ने भी आज हरी झंडी दिखा दी है ।
इस अहम निर्णय के अनुसार
देश भर में सरकारी और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसद सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। प्राइवेट स्कूलों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के उपरान्त सुप्रीम कोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया। कोर्ट के आदेश के मुताबिक वीरवार 12 अप्रैल से ही देश के हर स्‍कूल में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया है। चीफ जस्टिस एस0 एच0  कपाड़िया, जस्टिस के0 एस0 राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने 2-1 बहुमत से सुनाए फैसले में कहा कि यह कानून उन अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू नहीं होगा जो सरकार से वित्तीय सहायता नहीं ले रहे हैं ।

गौरतलब है  कि सरकार ने संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 21ए जोड़ा था जो कि 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का मौलिक अधिकार देता है। अधिकार को लागू करने के लिए सरकार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून, 2009 लेकर आई जो कि एक अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक स्कूल को पड़ोस में रहने वाले बच्चों को अपने यहां प्रवेश देना होगा। और प्रत्येक स्कूल 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करेगा। इन्हें मुफ्त में शिक्षा दी जाएगी और उनसे किसी तरह की फीस नहीं ली जाएगी। निजी स्कूलों ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। शिक्षा का अधिकार कानून बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली बाधाएं दूर करने के उद्देश्य से लाया गया है।
इसी मामले में एक अन्य अहम मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जन्‍म प्रमाण पत्र के बिना भी स्कूलों को बच्चों का दाखिला लेना होगा।
 
गौरतलब है कि सरकार ने इस कानून को 2009 में ही लागू कर दिया था, लेकिन प्राइवेट स्कूलों ने इसके खिलाफ याचिका दायर करके कहा था कि यह धारा 19 (1) के तहत कानून निजी शिक्षण संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनका तर्क था कि धारा 19 (1) निजी संस्थानों को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपना प्रबंधन करने की स्वायत्तता देता है। केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ दलील दी कि यह कानून सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की उन्नति में सहायक है इसलिए इस क़ानून का पूरी निष्ठा से सभी स्कूलों को पालन करना ही होगा