Sunday, May 4, 2014

पता - एक लघुकथा

रेलवे स्टेशन पर अल सुबह एक बुजुर्ग दंपति बैठा हुआ था। सामने एक स्टाल पर चाय बेचने वाले लड़के की नजर उन दोनों पर पड़ी तो कुछ महसूस हुआ। उसने देखा कि बुजुर्ग पति अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए चल रहा था।
थोड़ी दूर जाकर दोनों एक खाली बेंच देखकर बैठ गए।
पहनावे से वे गरीब ही लग रहे थे।
आप यह पोस्ट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। तभी ट्रेन के आने का सिग्नल हुआ और चाय वाला अपने काम में लग गया। अपना काम खत्म करके घर चल गया। शाम को जब चाय वाला वापिस स्टेशन पर आया तो देखा कि वो बुजुर्ग दंपति अभी भी उसी जगह बैठा हुआ है। फिर से उस चाय वाले को कुछ अजीब सा लगा तो उसने पूछ ही लिया - बाबा आप सुबह से यहाँ बैठे हैं, आपको कहाँ जाना है? क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ? बुजुर्ग आदमी ने जेब से कागज का एक टुकड़ा निकालकर चाय वाले को दिया और कहा - बेटा हम दोनों अनपढ़ हैं, इस कागज में मेरे बड़े बेटे का पता लिखा हुआ है, इसी शहर में रहता है, हमें लेने आने वाला था। छोटे बेटे ने कहा था कि अगर भैया आपको लेने ना आ पाये तो किसी को भी ये पता बता देना, आपको बिल्कुल सही जगह पहुँचा देगा। चाय वाले ने जब वो कागज खोला तो उसके होश उड़ गये और उसकी आँखों से एकाएक आंसूओं की धारा बहने लगी।  
उस कागज में लिखा था "कृपया इन दोनों को आपके शहर के किसी वृध्दाश्रम में भर्ती करा दीजिए, बहुत बहुत मेहरबानी होगी।" 
साभार: अज्ञात  
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