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हरियाणा शिक्षा विभाग ने राज्य के 1269 राजकीय वरिष्ठ
माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग तीन हजार के करीब कम्प्यूटर अध्यापकों को
30 मार्च से सेवामुक्त करने का फरमान जारी कर दिया है। पिछले 10 महीने का
वेतन नहीं मिलने से पहले से ही बुरी तरह से आहत कम्प्यूटर अध्यापकों में इसको लेकर भारी असंतोष व आक्रोश है। हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक एवं लैब सहायक संघ के नेताओं का कहना है कि
हाईकोर्ट के निर्णय की अनुपालना में हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव ने 2009
में पत्र जारी किया था, जिसकेमुताबिक कच्चे कर्मचारी को हटाकर कच्चा कर्मचारी नहीं लगाया जा सकता। लेकिन सरकार अपने ही आदेशों की धज्जियां उड़ाने पर उतारू है। कम्प्यूटर अध्यापकों के हितों की रक्षा करने के लिए संघ ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की शरण भी ली है। हरियाणा के वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में तीन हजार कम्प्यूटर अध्यापक प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से कार्यरत हैं। इन अध्यापकों को पिछले दस महीनों से कथित तौर पर वेतन नहीं मिला है। सरकार ने कम्प्यूटर शिक्षा के लिए नई कंपनियों के साथ समझौता किया है। नई कंपनियों का रास्ता तैयार करने के लिए शिक्षा निदेशक द्वारा 22 मार्च, 2013 को जारी पत्र क्रमांक-2/4-2013-सीईसी (3) के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी किए गए हैं कि कम्प्यूटर अध्यापकों को 31मार्च के बाद कार्य करने की अनुमति न दी जाए। इन आदेशों से कई महीनों से वेतन नहीं मिलने के बावजूद स्कूलों में अध्यापक के रूप में कार्य कर रहे युवाओं के सामने बेरोजगारी का संकट आ खड़ा हुआ है। संकट को सामने देखकर कम्प्यूटर अध्यापक परेशानी की हालत में हैं। इसको लेकर 2009 में हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव ने भी पत्र लिख रखा है। लेकिन सरकार ने शिक्षा विभाग में नई कंपनियां श्रीराम ट्रांसलाइन व भूपेन्दरा कंपनियों से समझौता करते समय पुराने कम्प्यूटर अध्यापकों की सेवाओं को जारी रखने का कोई प्रावधान नहीं किया। कम्प्यूटर अध्यापकों को निकाले जाने के मामले को लेकर संघ ने 26 मार्च, 2013 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। प्रदेशाध्यक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार सात हजार के करीब कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। पिछले 10 माह से इन्हें वेतन नहीं दिया गया है, न ही ईपीएफ, ईएसआई व मातृत्व अवकाश जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों को मात्र 120 व 117 रुपए प्रति कार्यदिवस के हिसाब से पारिश्रमिक देकर श्रम कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
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