Wednesday, January 16, 2013

नौसिखिया लेखकों ने शहीद-ए-आज़म से फांसी के आठ साल बाद लिखवा डाली चिट्ठी

भगत सिंह ने 1931 में फांसी होने के आठ साल बाद अपने छोटे भाई कुलबीर सिंह को पत्र लिखा था, इसके इलावा शहीद-ए-आजम का एक जन्म 28 सितंबर, 1907 को हुआ और एक जन्म 27 सितम्बर 1887 को भी हुआ था। आप इसे मानवीय गलती कहेंगे या एक सच्चे देशभक्त का अपमान? जी हाँ, इस प्रकार की अनेक गलतियों से भरी हिंदी की किताब देश में चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ाई जा रही है। चौथी कक्षा की यह किताब ‘हिंदी शिखर भाग-4’ एमए संतोष कुमार पाराशर द्वारा लिखित है और दिल्ली शकरपुर के ग्रीन चैनल ने प्रकाशित की है। केवल प्राइवेट प्रकाशक और लेखक ही गलती नहीं कर रहे, सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को सरदार भगत सिंह से जुड़ी गलत जानकारियां दी जा रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व प्रिंसिपल दीपचंद्र निर्मोही ने जवाहर लाल नेहरू
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चमनलाल व भगत सिंह की भतीजी वीरेंद्र सिंधु की लिखी किताबों का हवाला देते पब्लिक व सरकारी स्कूलों में दी जा रही गलत शिक्षा के लिए शिक्षा विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। 'हिंदी शिखर भाग-4' नामक पुस्तक के अनुसार भगत सिंह ने 3 व 22 मार्च, 1939 को चिट्ठी लिखी जबकि सर्वविदित है कि लाहौर की सेंट्रल जेल में भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को ही फांसी दे दी गई। इतना ही नहीं, हिंदी शिखर किताब के पृष्ठ 78 पर भगत सिंह का जन्म वर्ष 1887 में पंजाब के लायलपुर गांव में बताया गया है, जबकि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिला के बंगा गांव में हुआ था। किताब में कई और तथ्य गलत हैं। मसलन सुभाष चंद्र के बचपन से लेकर कॉलेज संबंधी कहानियां। मुंशी प्रेमचंद की प्रख्यात दो बैलों की कहानी को बिना लेखक के ही ‘हीरा-मोती’ शीर्षक से प्रकाशित करना।

सर्व शिक्षा का ये कैसा अभियान: शिक्षा विभाग हरियाणा भी इसमें पीछे नहीं है। चौथी कक्षा में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘हिंदी-4’ में भगत सिंह का जन्मदिन 28 सितंबर, 1907 की जगह 27 सितंबर, 1907 दर्शाया गया है। फांसी के समय भगत सिंह की अंतिम इच्छा पर भी शिक्षा विभाग गलत शिक्षा दे रहा है।
इतना ही नहीं, प्रसिद्ध गजल लेखक जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की वर्ष 1916 में लिखी :
‘शहीदों के मजारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’
जबकि किताब में लिखी गजल इस प्रकार है :
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।
पूर्व प्रिंसिपल डॉ. मधु दीक्षित व आरएन कॉलेज के पूर्व निदेशक आरके दीक्षित कहते हैं मजारों पर मेले लगते हैं न कि किसी की चिताओं पर। किताबों में तथ्यों के अलावा प्रूफ की भी ढेरों गलतियां हैं। ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए प्रयासरत रहने वाले शिक्षा विभाग और सर्व शिक्षा अभियान पर सवालिया निशान लगना बड़ा हास्यास्पद होने के साथ साथ एक गंभीर मामला है। 
साभार:  दैनिक जागरण समाचार 
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