Sunday, May 14, 2017

अवश्य पढ़ें: यदि आपका धर्म ठीक नहीं है तो कर्म खतरे में पड़ जाएगा

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
'वह पानी मत पियो यह तुम्हारे लिए नहीं है, चले जाओ यहां से' शुक्रवार रात को मेरा केयरटेकर मफिन पर चीखा। इस कुतिया को हमने चार साल पहले अपनाया था, जिसने कुछ उलझन के साथ उसकी ओर देखा। काश
कोई उसकी आंखें पढ़ सकता, जो शायद कह रही थीं, 'मैंने कौन-सा पाप कर दिया बॉस मैंने तो वहीं से पानी पिया, जहां आप रोज सुबह मुझे खाने को देते हैं।' चार साल पहले नासिक में सुबह की सैर के दौरान मुझे मफिन मिली। गोल्डन कलर की सुंदर कुतिया, पर बुरी तरह घायल। तत्काल मेडिकल देखभाल ने उसे चार पैरों पर खड़ा कर दिया। मेरे सुबह के सारे मित्रों ने, जिनसे मैं वहां जाने पर यदा-कदा मिलता रहता हूं, मफिन को उसके मालिक के पास वापस ले जाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मफिन अच्छी तरह प्रशिक्षित कुतिया है, जो या तो घर का रास्ता भूल गई या उसके मालिकों ने उसे सड़क पर छोड़ दिया था, जो नासिक में आम है। वह आखिर हमारे पास ही रह गई। तब से वह मेेरे नासिक वाले घर में है। मेरा केयरटेकर उसे खाने-पीने को देता है। हमारे रिहायशी इलाके में सब उसे प्यार करते हैं। पिछले हफ्ते मैं कुछ वक्त बिताने अपने मुंबई के घर के कुत्तों को लेकर आया था और केयरटेकर ने मेरे पालतू कुत्तों के लिए पानी रखा और मफिन को लगा कि यह उसके लिए है और उस गर्मी में बेचारी ने पानी पी लिया। मुझे केयरटेकर को वे कठोर शब्द कहने से रोका और मैंने मफिन को पानी पीने दिया। मैंने केयरटेकर को बताया कि इन चार वर्षों में तुमने जो भी उसकी देखभाल की, प्यार दिया उस सब पर ये क्रूर शब्द पानी फेर देंगे। इससे मुझे गीता का वह अंश याद आया, जिसमें कृष्ण कहते हैं कि यदि आपका धर्म स्थिर नहीं है तो आपका कर्म खतरे में है। 
महाभारत के युद्ध के बाद जब कृष्ण लौटे तो उनकी पत्नी रुक्मणि उनसे पूछती हैं, 'आप गुरु द्रोण और भीष्म की हत्या में कैसे भागीदार बन सकते हैं, जो इतने धर्मपरायण लोग थे, जिनके पीछे जीवनभर की पुण्याई थी?' शुरू में तो कृष्ण ने उनके प्रश्नों को टालना चाहा पर जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने जवाब दिया, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके पीछे जीवनभर का धर्म परायण व्यवहार था लेकिन, दोनों ने केवल एक पाप किया, जिसने उनकी जीवनभर की कमाई को नष्ट कर दिया।' रुक्मणि ने पूछा, 'और वह पाप कौन-सा था?' भगवान कृष्ण ने जवाब दिया, 'जब द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयास हो रहा था तो दोनों दरबार में मौजूद थे। बुजुर्ग होने के कारण उनके पास अधिकार सत्ता थी कि वे उसे रोक सके पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह अकेला अपराध इस दुनिया के सारे अच्छे कर्म नष्ट करने के लिए काफी है।' 
फिर रुक्मणि ने पूछा, लेकिन कर्ण के बारे में क्या? वह तो दानवीरता के लिए जाना जाता था। उसके दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा। फिर आपने उसे क्यों मरवा दिया।' भगवान कृष्ण ने कहा, 'बेशक, कर्ण दानवीर के रूप में मशहूर था। उससे कुछ मांगने वाले किसी को कभी उसने 'नहीं' नहीं कहा।' लेकिन महानतम योद्धाओं से लड़ने के बाद जब अभिमन्यू रणभूमि पर गिर गया तो उसने पास खड़े कर्ण से पानी मांगा। पास ही एक गड्‌डे में साफ पानी था लेकिन, वे अपने मित्र दुर्योधन को नाराज नहीं करना चाहते थे तो उसने मरते हुए योद्धा को पानी नहीं दिया। ऐसा करके उसने जीवन भर की परोपकारिता का फल गंवा दिया (बाद में कर्ण के रथ का पहिया उसी गड्‌ढे में फंसा और वह मारा गया)। यह कहानी समृद्धि के मार्ग पर ले जाने वाले कर्म के सिद्धांत का अच्छा उदाहरण है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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