हरियाणाके करनाल जिले का गांव डेरा हलवाना अनोखा है। आप-हम अमूमन यही सुनते हैं कि बेटों की चाह में बेटियां होती हैं। पर डेरा हलवाना में इसका उल्टा है। बेटियों की चाह में बेटे होते जाते हैं। यही वजह है कि करीब सात हजार की आबादी वाले इस गांव में एक हजार लड़के हैं, तो लड़कियां डेढ़ हजार। हर घर में दो-तीन बेटियां हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दरअसल इस गांव में बच्ची के जन्म को सौभाग्य माना जाता है। गांव के मिडिल स्कूल में कुक का काम करने वालीं मंजीत कौर कहती हैं कि 'एक बेटी की चाह में मेरे तीन बेटे हो गए। उसके बाद चौथी बेटी हुई। ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं है। यहां कई महिलाओं के साथ हुआ है। हम लोग कन्यादान को पूजा मानते हैं। इसलिए हर परिवार को बेटी की चाह होती है। यदि हमारे बेटी हो और हम दूसरे की बेटी अपने घर लाएं तो यह कर्ज जैसा लगता है।' उसी स्कूल के हेडमास्टर संजय कुमार बताते हैं कि 'यहां पढ़ने वाले 708 विद्यार्थियों में 386 लड़कियां और 322 लड़के हैं। दस साल से मैं यहां हूं। कभी भ्रूण हत्या जैसा कोई मामला सुना तक नहीं।' यहां बेटियाें के पढ़ने-बढ़ने की एक और वजह है। लड़की की शादी में पिता को दहेज नहीं देना पड़ता। ही भारी-भरकम खर्च की चिंता करनी पड़ती है। गांव के पूर्व सरपंच ध्यान सिंह और गुलाब सिंह बताते हैं कि 'बंटवारे के वक्त हमारे पूर्वज पाकिस्तान के लायलपुर जिले से यहां आए थे। तब बेहद गरीबी थी। एक परिवार में तीन-चार बेटियां थीं। ऐसे में पूर्वजों ने माता-पिता का गोत्र छोड़ गांव में ही शादी की परंपरा शुरू की। दहेज के साथ ही खर्चे वाली रीतियों पर रोक लगा दी। हम डीजे, लाइट, पार्टी आदि पर खर्च नहीं करते। दो परिवारों के राजी होने पर सिर्फ 21 रुपए के शगुन पर शादी हो जाती है। पार्टी के नाम पर लड़के वालों को ही खर्च करना होता है। और वो भी सिर्फ प्रसाद बांटता है। दुल्हन के लिए पांच सूट लाए जाते हैं। दिन में दो घंटे की रस्म के साथ शादी हो जाती है। गरीब हो या अमीर हर किसी के लिए एक जैसी ही व्यवस्था है।'
गांव के लोग कहते हैं कि यहां बेटियों को इसलिए महत्व दिया जाता है कि बेटे तो बाहर कमाने चले जाते हैं। घरों में माता-पिता की देखरेख बेटियां ही करती हैं। गांव की सरपंच कमलेश कौर कहती हैं कि 'यहां हर घर में कलर टीवी और मोबाइल है। पर हम शादी में गैरजरूरी खर्च नहीं करते। यहां की कुछ बच्चियां करनाल में एएनएम का कोर्स कर रहीं हैं। कुछ नर्सिंग कोर्स भी कर रही हैं।' उनका कहना है कि गांव के लोग कोर्ट-कचहरी से भी बचते हैं। छोटे-मोटे विवाद पंचायत में ही सुलझा लिए जाते हैं। करनाल में एएनएम का कोर्स कर रही संगीता और प्यारी कहती हैं उनका गांव तो पूरे देश के लिए आदर्श होना चाहिए। आज के समय में जहां बेटियों को कोख में मारा जा रहा है, डेरा हलवाना में बेटियों को सबसे ऊंचा दर्जा मिलता है। गांव का स्कूल को-एड है। पर ज्यादा तादाद लड़कियों की ही है।
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साभार: भास्कर समाचार
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