एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
पहला व्यक्ति: रविवारको उदयपुर के जगन्नाथ मंदिर के सामने मैंने रेमी मैथ्यू को देखा। वे फ्रांस के हैं और उदयपुर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और एक प्रायवेट कंपनी के सहयोग से आयोजित किए जा रहे हैरिटेज वॉक को प्रमोट कर रहे हैं। उनके लंबे शरीर, आकर्षक व्यक्तित्व और गोरे रंग ने मुझे आकर्षित नहीं किया, बल्कि
कोई भी काम करने की तैयारी ने उन्हें वहां आने वाले विदेशियों में उन्हें अलग स्थान दिया। अनजान शहर, अनजान देश में 96 घंटे की अस्थायी नौकरी के प्रति उनके उत्साह ने मुझे उनकी जीवन-शैली के बारे में जानने के लिए आकर्षित किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रेमी अपने देश में हर साल चार माह काम करते हैं और कुछ पैसा यात्रा के लिए बचाते हैं। वे नए देशों में नए लोगों से मिलने के लिए यात्रा करते हैं ताकि बेहतर इंसान बन सकें और अलग अनुभव मिले। नए देश में वे कुछ कुछ काम करके इतना पैसा कमा लेते हैं कि लंबे समय तक वहां रहना और खाना करीब-करीब मुफ्त हो जाता है। मुझे जिस चीज ने आश्चर्य में डाला वह था उनकी कम से कम भौतिक जरूरतें, नए लोगों और संस्कृति को समझने की ललक।
उन चार दिनों में उन्होंने एक होटल में दो दिन ठहरने के लिए 1500 रुपए प्रति रात चुकाए हैं। इन 48 घंटों में उन्होंने एक स्थानीय परिवार को उनके बच्चों को फ्रेंच भाषा की कोचिंग देने और बदले में तीन महीने के रहने का स्थान उपलब्ध कराने के लिए राजी कर लिया था। इतनी ही अवधि के लिए उन्हें वीजा मिला है। दूसरी तरफ उन्होंने हैरिटेज वॉक को प्रमोट करने की डील भी कर ली थी। इससे उनकी रोजाना की जरूरतें पूरी हो सकती थीं, लेकिन बात इतनी ही नहीं है। उनका लक्ष्य अलग है। वे गिटार बजाते हैं और भारतीय संगीत सीखना चाहते हैं। शाम को वे गिटार क्लास जाते हैं और अपने गुणों में एक और खूबी जोड़ रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति: एलेक्जेंडर लेम्बोर्जकी रोमानिया के हैं। वे ग्लोबल प्लेसमेंट कंपनी के माध्यम से राजस्थान के भीलवाड़ा के संगम स्कूल में छह महीने के लिए आए हैं। कंपनी पोस्ट ग्रेजुएशन के पहले ग्रेजुएट छात्रों को एक्सपोजर देती है। मैनेजमेंट और मार्केटिंग से ग्रेजुएट एलेक्स से कहा गया कि पढ़ाना शुरू करने से पहले वे कुछ समय भारतीय छात्रों की जीवन-शैली देखें। ताकि सीख सकें कि कैसे स्कूल के बच्चे अपने आसपास के वातावरण से तालमेल बिठाते हैं, कैसे कम संसाधनों में जीते हैं और कैसे कई गतिविधियां स्कूली बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाती हैं। अतिरिक्त समय में वे बच्चों के साथ फुटबॉल खेलते हैं और उन्हें टीम बनाने की एक्टिविटी सिखाते हैं। एलेक्स 24 साल के हैं और भारत आने के पहले नौ देश घूम चुके हैं। इस दौरान उन्होंने कई तरह के काम किए हैं, जैसे खेत मजदूर, कंस्ट्रक्शन साइट पर कारिगर। साथ ही फूड चेन और न्यूजपेपर जैसी इंडस्ट्री में भी काम किया। इस तरह कई तरह के कई मौकों से उन्हें ग्लोबल बिज़नेस के तरीकों और सभी कार्यस्थलों की खामियों और खूबियों को जानने में मदद मिली। हालांकि, उनका लक्ष्य बैंकिंग सेक्टर में जाने का था, लेकिन उन्होंने 9 से 5के स्थायी मार्केटिंग जॉब में जाने से पहले उन्होंने यह सुनिश्चित करना मुनासिब समझा कि उनके पास दुनिया भर की जानकारी होनी चाहिए, जो उनके पूरे जीवन को आकार देगी।
जो चीज उन्हें भीड़ से अलग करती है वह यहां भी उनका गोरा रंग नहीं बल्कि वह योजना है जो उन्होंने अपने जीवन के लिए बनाई है। उनके पास छह महीने का कैलेंडर था कि वे उस स्कूल में क्या करेंगे। उनके पास एक्सेल चार्ट पर बना पांच साल का प्लान है, जिसमें लिखा है कि किन-किन देशों की यात्रा करना चाहते हैं और आखिर में किस कंपनी में नौकरी करना चाहते हैं। और सौभाग्य से वे उस योजना पर पूरी तरह से आगे बढ़ रहे हैं। इसका मतलब है कि आगे के जीवन की पूरी योजना लक्ष्य उनके पास है।
फंडा यह है कि वैश्विकगतिविधियों का जितना अनुभव लेंंगे, युवा उतने ही परिपक्व होते जाएंगे। इसलिए हमारी युवा आबादी को सभी क्षेत्रों के 360 डिग्री एक्सपोजर का मौका दीजिए ताकि उन्हें जीवन में बेहतर विकल्प चुनने में मदद मिले।
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साभार: भास्कर समाचार
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