Wednesday, January 3, 2018

पलवल साइको किलर काण्ड: हिसार का रेलू राम और पंजाब का दरबारा कांड तफ्तीश का बनेंगे आधार

साभार: जागरण समाचार 
पलवल में दिल दहला देने वाली वारदात की तह में जाने के लिए हरियाणा पुलिस तमाम उन घटनाओं का पुराना रिकार्ड खंगालेगी, जिनमें हत्यारा साइको किलर रहा है। देश की ऐसी करीब एक दर्जन घटनाओं का पूरा ब्योरा
जुटाया जा रहा है। इनमें एक घटना हिसार और दूसरी पंजाब के जालंधर व पठानकोट की है। 
हिसार में पूर्व विधायक रेलू राम की बेटी सोनिया और दामाद संजीव ने एक ही परिवार के आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। दोनों फिलहाल अंबाला की सेंट्रल जेल में बंद हैं। उनको फांसी हुई थी। दया याचिका भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दी। दोनों ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जीवन दान दे दिया, लेकिन मृत्यु तक जेल में ही रहना होगा। संपत्ति के लिए उन्होंने पूरे परिवार को मौत के घाट उतारा था।
दूसरी घटना पंजाब के अमृतसर, जालंधर और पठानकोट की है, जिन्हें अपने सीनियर अफसर पर हैंड ग्रेनेड फेंकने वाले सेना के जवान ने अंजाम दिया था। पलवल का नरेश धनखड़ भी इस सेना के जवान की तरह हैवान बना। उसका नाम दरबारा सिंह था। उसे बेबी किलर के नाम से जाना जाता है। दरबारा सिंह, जिस इलाके में रहता था, वहां के लोग उसे देखकर कांपते थे। 
दरबारा सिंह हमेशा साइकिल से घूमता था और उसके पास एक बैग में बहुत सारी टाफियां होती थी। टाफी का लालच देकर ही वह मासूम बच्चों को अपने जाल में फंसाता था और फिर सुनसान में ले जाकर उनके साथ हैवानियत करता था और फिर उन्हें मार देता था। दरबारा सिंह की सनक ने ही उसे सेना से बाहर का रास्ता दिखाया था। ठीक यही सनक नरेश धनखड़ की थी। नरेश भी सेना में था और वहां अक्सर झगड़े करता था।
पठानकोट में तैनाती के दौरान दरबारा सिंह ने अपने सीनियर आफिसर पर भी हमला किया था। दरबारा सिंह पर 17 बच्चों की दर्दनाक हत्या का इल्जाम लगा था। वह प्रवासी मजदूरों के बच्चों को ही निशाना बनाता था। वर्ष 2003 में अच्छे आचरण के चलते 10 साल में ही उसे रिहा कर दिया गया, लेकिन उसके अंदर छिपा हैवान एक बार फिर जाग गया था और वह फिर से दरिंदगी करने लगा। वर्ष 2008 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी। बाद में इसे उम्रकैद में तबदील कर दिया गया था।
रमन राघव पर तत्कालीन डीजीपी ने लिखी दो किताबें: 1960 के दशक में एक के बाद एक 41 हत्याएं कर मुंबई में दशहत फैलाने वाले सीरियल किलर रमन राघव ने लगातार तीन साल इन वारदातों को अंजाम दिया। मुंबई के तत्कालीन पुलिस आफिसर रमाकांत कुलकर्णी ने 1968 में क्राइम ब्रांच मुंबई के मुखिया के रूप में जांच अपने हाथ में ली। उनकी टीम 27 अगस्त 1968 को रमन राघव को पकड़ने में कामयाब हो गई। रमाकांत कुलकर्णी 1990 में महाराष्ट्र के डीजीपी पद से रिटायर हुए तथा 2005 में उनकी मृत्यु हो चुकी। उन्होंने इस पूरे मामले पर विस्तार से दो किताबें लिखी, जिनका नाम फुटप्रिंट्स ऑन दि सैंड्स ऑफ क्राइम और क्राइम्स, क्रीमिनल्स एंड काप्स हैं। उन्होंने इन किताबों में लिखा कि मुंबई की सभी 41 हत्याएं बिना किसी मंशा के हुई थी। अपने बयान में राघव ने बताया था कि उसने सभी हत्याएं स्वेच्छा से ‘भगवान’ के निर्देश पर की। 1987 में हाईकोर्ट ने उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था और इसी साल किडनी की बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई थी।