Monday, December 11, 2017

Management: रोष यदि सुव्यस्थित ढंग से व्यक्त हो तो कार्रवाई होती है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
आप इन लोगों को छोटे बच्चे बताकर खारिज नहीं कर सकते। लेकिन, उन्हें पता होता था कि किसी मुद्‌दे पर रोष कैसे जताएं, किससे संपर्क करें और कैसे भावनाओं को व्यवस्थित ढंग से व्यक्त करें। उन्होंने अपनी
नाराजगी को उचित प्रक्रिया का रूप दिया और वांछित परिणाम हासिल किए। दो ऐसे मामले देखिए, जिनमें दोनों बच्चों ने एकदम सही कदम उठाया। 
स्टोरी 1: वह सिर्फ 11 साल की थी। स्कूल में वह एक टेलीविजन शो देख रही थी। विज्ञापन के दौरान डिशवॉशिंग लिक्विड की टैगलाइन थी, 'पूरे अमेरिका में महिलाएं तेल लगे बर्तनों और तवे से जूझ रही हैं।' यह टैगलाइन सुनकर उसकी कक्षा के दो बच्चे जोर से हंसे और कहने लगे 'हां, यही तो महिलाओं की जगह है- किचन।' समानता के सिद्धांत का विरोधी यह कमेंट सुनकर वह तो स्पब्ध रह गई और साथ ही उसे बहुत गुस्सा भी आया। उस कमेंट से वह इतनी आहत हुई कि खड़े होकर उसने कहा, 'यह अच्छी बात नहीं है।' लेकिन, इतना काफी नहीं था। भीतर से उसे लगा कि उसे और भी कुछ करना चाहिए। 
वह घर गई और पिता को कक्षा में हुई घटना बताई। उन्होंने उसे उन व्यक्तियों को पत्र लिखने के लिए प्रत्सोहित किया, जो शायद हल खोजने में उसकी मदद कर सकें। उसने सोचा कि उसकी छोटी-सी शिकायत पर कौन ध्यान देगा। दिमाग में पहला नाम आया हिलेरी क्लिंटन का, जो तब अमेरिका की प्रथम महिला थीं। फिर उसने एक लोकप्रिय टेलीविजन चैनल पर बच्चों की खबरों के कार्यक्रम की होस्ट लिंडा एलरबी को पत्र लिखा। इनके अलावा उसने अमेरिकी एटॉर्नी गोरिया ऑलरेड और लिक्विड सोप बनाने वाली कंपनी प्रॉक्टर एंड गैम्बल को भी पत्र लिखे। 
उसके तीन हफ्ते के बाद कंपनी को छोड़कर सबने जवाब दिए। इसमें उसके कदमों की सराहना की गई और इतनी कम उम्र में लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता से ये सारे लोग बहुत प्रभावित थे। टेलीविजन चैनल तो बहुराष्ट्रीय कंपनी से उसकी लड़ाई पर प्रोग्राम बनाने उसके घर की दहलीज पर गया। शीघ्र ही मुद्‌दा जनचर्चा का विचार बन गया। एक माह बाद प्रॉक्टर एंड गैंबल ने अपने आयवरी क्लियर डिशवॉशिंग सोप के विज्ञापन की टैग लाइन बदलकर, 'पूरे अमेरिका में लोग तेल लगे बर्तनों और तवे से जूझ रहे हैं' कर दी। उसने अपनी टैगलाइन से 'महिलाएं' शब्द हटाकर 'लोग' कर दिया था। यह बदलाव होने के बाद उसे अपनी कार्रवाई की अहमियत पता चली और अहसास हुआ कि मात्र 11 वर्ष की उम्र में समानता के लिए खड़े होकर किस तरह का असर डाला जा सकता है। वह लड़की और कोई नहीं मेघन मर्कल हैं, जो 2018 में प्रिंस हैरी से विवाह करने वाली हैं। 
स्टोरी 2: वह सिर्फ सात साल की है और कक्षा दूसरी में पढ़ती है। नव्या सिंह प्रार्थना कर रही थी कि वह जगह जहां वह खेलती है, वह पार्क ही बना रहे। उसे बहुउद्‌देशीय सामुदायिक भवन बना दिया जाए जैसी कि नई दिल्ली के सेक्टर आठ स्थित कॉलोनी रोहिणी के इस पार्क को लेकर दिल्ली विकास प्राधिकरण अथॉरिटी (डीडीए) की योजना ही नहीं थी बल्कि वहां योजना के मुताबिक निर्माण शुरू भी हो गया था। उसने देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अपना रोष व्यक्त किया। इतना ही नहीं उसने अपने वकील पिता धीरज सिंह से उसकी ओर से याचिका दायर करने को कहा कि डीडीए की कमजोर प्लानिंग का यह उदाहरण है, क्योंकि प्रस्तावित जगह से सिर्फ 50 मीटर दूर एक और कम्युनिसटी हाल पहले से मौजूद है। 
इस शुक्रवार को हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने डीडीए को नोटिस जारी किया कि वह पार्क को कम्युनिटी हॉल में तब्दील करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि रोहिणी के उस पार्क को मूल स्वरूप में लाया जाए, जहां डीडीए ने बैरीकेड लगा दिए हैं। इस न्यायिक हस्तक्षेप का असर तो होना ही था। 
इस मामले में कोर्ट के निर्देश के मुतोबिक 7 दिसंबर को दर्ज की गई स्टेटस रिपोर्ट में डीडीए ने कहा कि रिट याचिका दाखिल होने के बाद प्रधान आयुक्त ने उस जगह के बारे में एक इंस्पेक्शन रिपोर्ट बनाई है और प्रस्तावित बहुउद्‌देश्यीय सामुदायिक सभागृह के लिए वैकल्पिक जगह के िलए मंजूरी लेने का निर्णय लिया गया है। यानी रोहिणी का वह पार्क अब कम्युनिटी हॉल में तब्दील नीं होगा। 
फंडा यह है कि खड़े होकर अपनी नाराजी जाहिर कीजिए लेकिन, व्यवस्थित ढंग से ऐसा करें ताकि अधिकतम लोगों का ध्यान खींचा जा सके और कड़ी कार्रवाई भी मुमकिन हो।