Saturday, December 9, 2017

प्रेरणा स्पर्धा की चुनौती कहीं से भी मिल सकती है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
प्रेरणा की कथा: गतअप्रैल में झारखंड की राजधानी रांची से 27 किलोमीटर दूर ओरमांझी ब्लॉक के दो छोटे गुमनाम से गांव आरा और कराम के 35 लोग महाराष्ट्र स्थित अण्णा हजारे के गांव रालेगण सिद्धी गए। यह
यात्रा मनरेगा कमिश्नर सिद्धार्थ त्रिपाठी ने आयोजित की थी। वहां उन्होंने देखा कि गांव के लोग किस प्रकार साफ-सफाई सुनिश्चित करते हैं, कैसे समुदाय की बेहतरी के लिए फैसले लेते हैं और कैसे सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए एक-दूसरे की मदद करते हैं। दिसंबर आते-आते इन लोगों ने अपने दो गांवों को राज्य के अादर्श गांव बना दिया। जो पुरुष अधिकांश आमदनी शराब पर खर्च करते थे, अब उनके घरों की दीवार पर लिखा है, 'बुरा मानो शराब बंदी लागू है।' 
इसके अलावा दोनों गांवों में सब जगह नोटिस लगे हैं कि यदि कोई शराब बंदी, श्रमदान (समुदाय सेवा), लोटाबंदी (खुले में शौच बंदी), चराईबंदी (जानवरों की मनमानी चराई) और कुल्हाबंदी (पेड़ नहीं काटना) का पालन नहीं करता तो सरकारी योजनाओं से उसे मिलने वाले सारे फायदे रोक दिए जाएंगे। चूंकि क्षेत्र के एकमात्र माध्यमिक विद्यालय में केवल दो शिक्षक थे तो रहवासियों ने संसाधन जुटाकर दो शिक्षित युवकों को विद्यार्थियों की मदद के लिए नियुक्त कर दिया। रोज जो भी पहले जागता है वह अनाउंसमेंट रूम पर माइक से घोषणा करके सबको जगा देता है। ज्यादातर यह सुबह 4:30 और 5 बजे के बीच होता है। इसके बाद बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई झाड़ू लेकर एक घंटे तक अपने आसपास के इलाके की सफाई करता है। फिर दो शिक्षक सारे बच्चों को स्कूल जाने से पहले पढ़ाते हैं। शेष अपने रोज के काम में लग जाते हैं, जो ज्यादातर खेती का काम ही होता है। 
प्रतिस्पर्धा की कथा: यदि आप सोचते हैं कि ओला या उबर जैसी सेवाएं शुरू करना सवारी को किराये में लूटने वाले परम्परागत ऑटो और टैक्सी सेवाओं का माकूल जवाब है तो आप गलत हो सकते हैं। इन निजी सेवाओं में भी सर्ज प्राइसिंग (मांग अधिक तो किराया अधिक) जैसी खामियां हैं। यह समस्या बेंगलुरू में बहुत अधिक है, जहां ज्यादातर आईटी वर्कफोर्स युवा ही हैं और वे आरामदेह यात्रा पर पैसा खर्च करने को तैयार हैं। बेंगलुरू की यात्रा के दौरान इस समस्या को देखकर कोलकाता के दीपांजन पुरकायस्थ और आदित्य पोद्‌दार ने 'नम्मा टीजीवाईआर' नामक टेक्नोलॉजी कंपनी खोलकर बेंगलुरू में एप कैब सर्विस शुरू की। नई कंपनी सिर्फ प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ड्राइवर से कमीशन के रूप में आधा ही शुल्क लेती है ताकि सवारी को किराये में बचत हो और ड्राइवर भी उनकी ओर आकर्षित हों। 
ड्राइवरों को सब्सिडी देने की बजाय उन्होंने ड्राइवरों उनके परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा, ड्राइवर के लिए जीवन बीमा और दुर्घटना का कवरेज, उसकी कार के रोड टैक्स, कार वॉश, कार सेवाओं के भुगतान के अलावा उनके बच्चों की पढ़ाई की किताबों पर सब्सिडी जैसी वैल्यू एडेड सेवाएं देने का फैसला किया ताकि ड्राइवरों में कंपनी के प्रति वफादारी की मजूबत भावना पैदा की जा सके।आठ दिनों में ही इस मजबूत दावेदार ने अपने प्लेटफॉर्म से 12,000 ड्राइवरों को जोड़ लिया और उन्हेें रोज 25 हजार राइड रिक्वेस्ट मिल रही है। उनका लक्ष्य माह अंत तक वाहनों की संख्या और यूज़र को 20 हजार तक पहुंचाने का है, जिसे वे 2018 में नई योजना के जरिये पूरा करेंगे। बेंगलुरू एप कैब के लिए सबसे बड़े बाजारों में से हैं, जहां 1 लाख से ज्यादा ऐसे वाहन हैं और प्रत्येक वाहन हर दिन कम से कम 10 सवारी ले जाता है। 
फंडा यह है कि हमें सतर्क रहना होगा, क्योंकि हम नहीं जानते कि कहां से हमें प्रेरणा मिलेगी और कहां से हमें स्पर्धा में चुनौती मिलेगी।