Tuesday, June 20, 2017

मैनेजमेंट: आप अपने संगठन में अन्य लोगों से कितने अलग हैं?

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: मुंबई महानगर पालिका के असिस्टेंट कमिश्नर उदय कुमार शिरूरकर डोंगरी नाम की जगह से बहुत निकट से जुड़े हैं। क्या आप डोंगरी के बारे में यह सोचने लगे हैं कि इसका सबसे बड़ा योगदान तो अंडरवर्ल्ड को
डॉन देना है, जिसके कारण इसका संबंध बॉलीवुड की फिल्म 'डोंगरी का राजा से हो गया।' आप सही हैं लेकिन, यहां स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उदय कुमार ने इस साल 23 लोगों को ऐसा कुछ करने की प्रेरणा दी, जिसे करने की उन्होंने कभी हिम्मत नहीं की। वे सब डोंगरी के ही थे; स्कूल ड्रॉप आउट उम्र के चौथे दशक या पांचवें दशक के प्रारंभ वाले। वे तब से उसी पद पर काम कर रहे हैं, जिस पर उन्होंने ज्वॉइन किया था। वे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के रूप में काम करते हैं- सफाई करने वाले, मैन होल साफ करने वाले, रोड और पाइप लाइन सुधारने वाले। इस कठोर मेहनत के बदले उन्हें मिलते हैं प्रतिमाह छह हजार रुपए से भी कम। 
उदर कुमार ने उन्हें डोंगरी नाइट स्कूल में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया और हायर सेकंडरी परीक्षा पास करने में मदद की। अब इस माह इन 21 पुरुषों और दो महिलाओं का वेतन तीन हजार रुपए बढ़ जाएगा। साथ ही भविष्य में पदोन्नति पाने के अवसर काफी बढ़ जाएंगे, क्योंकि अब वे हायर सेकंडरी पास हैं। उनके मिशन को लोगों ने 'मिरेकल 23' का नाम दिया है, जो बिहार के 'सुपर 30' से कम नहीं है। 

स्टोरी 2: पिछले हफ्ते रांची स्थित सदर थाने के डीएसपी विकासचंद्र श्रीवास्तव संवेदनशील क्षेत्र बर्गई में एक राजनीतिक दल की 'सद्‌भावना यात्रा' पर निगरानी रखने गए और पता चला कि यात्रा एक घंटे की देरी हो गई है। उन्होंने पास के अल्पसंख्यक माध्यमिक स्कूल को चेक करने का निर्णय लिया, जहां एक कक्षा में टीचर की गैर-हाजिरी के कारण अराजकता मची हुई थी। वे क्लासरूम में गए और आठवीं कक्षा के 45 बच्चों को भूगोल और सामाजिक विज्ञान के कुछ अध्याय पढ़ाएं, क्योंकि यह पीरियड उन्हीं विषयों का था। उन्होंने सामाजिक मूल्यों पर कुछ बातों के साथ अपना सबक खत्म किया। बच्चों ने खुश होकर जोर से तालियां बजाई। एक घंटे बाद श्रीवास्तव फिर पुलिस अधिकारी की भू्मिका में गए और अधिक सतर्कता के साथ रैली में शामिल हो गए।
स्टोरी 3: विजय कुमार सिंगापुर में व्यस्त कॉस्ट अकाउंटेन्ट हैं। वर्ष 2006 में उन्होंने अपने द्विभाषी ब्लॉग 'पोएट्री इन स्टोन' में टेम्पल आर्ट को डाक्यूमेंट करना शुरू किया। उसमें उन्होंने शौक के बतौर शिल्पों के बारे में बहुत विस्तार से लिखा। 2013 में इससे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में को चुके मंदिरों को खोज निकालने के ऑनलाइन आंदोलन 'ब्रिग अवर गॉड्स होम' की शुरुआत हुई। यह उनके द्वारा शुरू की गई 'इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट' (आईपीपी) कंपनी के तहत काम करता है। यह पूरी तरह से स्वयंसेवकों से संचालित संगठन है, जिसने भारत से तस्करी कर ले जाई गई मंदिरों की बेशकीमती मूर्तियों का पता लगाने का काम किया है। 
विजय की ताज़ा जीत है ऑस्ट्रेलिया की गैलरी से 1000 साल पुरानी नरसिंह की मूर्ति को वापस लाना (वहां इसे लॉयन लैडी कहते थे)। यह मूर्ति तमिलनाडु के वृदाचलम स्थित मंदिर से चुराई गई थी। उनका अनुमान है कि भारत हर दशक में करीब 10,000 कलाकृतियां खो देता है। वजह है चोरी रोकने के खिलाफ कोई कड़ा कानून होना। आईपीपी इसे केवल सोशल मीडिया की ताकत के बलबूते ही कर रहा है। लोग कोई कलाकृति देखते हैं और यदि उन्हें संदेह हो कि भारत की हो सकती है तो वे फोटो लेकर उसे पोस्ट कर देते हैं। वहां से विजय कुमार का काम शुरू हो जाता है। वे इसे ठीक तरह से डाक्यूमेंट करते हैं और फिर उसे स्वदेश लौटाने की लड़ाई शुरू हो जाती है। 
फंडा यह है कि आप अपने संगठन में कितने भिन्न हैं? यदि संभव हो तो ऐसा कुछ अलग से करे, जो समाज में फर्क पैदा कर सके। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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