Thursday, June 22, 2017

मैनेजमेंट: सही फैसले का महत्वपूर्ण अंग है संवेदनशीलता

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: इस माह के आरंभ में नई दिल्ली में अतिरिक्त सत्र न्यायालय के जज विनोद यादव के कोर्ट रूम में एक छोटी लड़की को सुनवाई के दौरान व्यस्त रखने के लिए एक कागज और रंग दे दिए गए। अपने-अपने पक्ष के लिए बहस कर रहे दोनों वकीलों को सुनने में बिना कोई रुचि दिखाए वह बच्ची ड्रॉइंग करने में डूब गई। उसके शराबी पिता ने मां के निधन के बाद उसे छोड़ दिया था और उसकी चाची उसे कोलकाता से दिल्ली लेकर आई थी और किसी ओर के घर पर काम करने के लिए रख दिया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। केस उसके चाचा अख्तर अहमद के खिलाफ था, जिस पर उसे निर्वस्त्र करने और कई बार शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप था। फिर वह भाग निकली और एक बस में लावारिस मिली। तीन साल बाद कथित घटना को साबित करना अभियोग पक्ष के वकील के लिए मुश्किल था। बचाव पक्ष की जोरदार दलील थी कि बच्ची को आरोप लगाने के लिए सिखा-पढ़ाकर लाया गया है और उसे सक्षम साक्षी नहीं कहा जा सकता। जज बहस सुन रहे थे, जबकि उनकी निगाहें स्केच पर थीं। ड्रॉइंग में एक खाली घर था, एक बच्ची हाथ में धागों से बंधे गुब्बारे थामे खड़ी थी और उसके पीछे एक वस्त्र पड़ा था। ड्रॉइंग को वह विषाद भरे रंगों से भर रही थी। जज विनोद यादव ने स्केच की संवेदना को बच्ची के कटू अनुभव का प्रकटीकरण माना। उन्होंने कहा, अगर ड्रॉइंग की चीजों को तथ्यों की पृष्ठभूमि में देखा जाए और मामले की परिस्थितियों को देखा जाए तो उसके घर में किसी के द्वारा उसे निर्वस्त्र कर शारीरिक शोषण करने की बात पता चलती है। अगर कोई तथ्य नहीं जानता है तो भी उसके समक्ष बच्ची की पीड़ा साबित करने के लिए यह पर्याप्त है। इसलिए मैं पीड़ित को भरोसेमंद गवाह मानता हूं। 
बच्ची की देखरेख और पुनर्वास के लिए कोर्ट ने 3 लाख रुपए का हर्जाना उसके खाते में फिक्स डिपॉजिट के रूप में डालने का आदेश दिया। इसके अलावा आरोपी को कठोर कारावास की सजा सुनाई। बच्ची अब बालगृह में रह रही है और नियमित रूप से स्कूल जाती है। पढ़ाई में वह बहुत अच्छा कर रही है। बच्ची की वकील और बाल अधिकार कार्यकर्ता चंद्रा सुमन कुमार को उम्मीद है कि मुआवजा उसका भविष्य बेहतर बनाने में मददगार होगा। 

स्टोरी 2: इस शनिवार को ट्रैफिक सब-इंस्पेक्टर एमएल निजलिंगप्पा को बेंगलुरू के ट्रिनिटी सर्किल पर यातायात इंतजाम की बहुत महत्वपूर्ण जवाबदारी दी गई थी। यह काफी महत्वपूर्ण था,क्योंकि कुछ देर में यहां से देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी गुजरने वाले थे। वे सिटी मेट्रो के अाखिरी चरण का उद्‌घाटन करने आए थे। सब कुछ ठीक था। वायरलेस पर संदेश आया था कि राष्ट्रपति का काफिला सिर्फ 150 फीट की दूरी पर है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सभी क्षेत्रों से रहा ट्रैफिक रोक दिया गया था। अचानक निजलिंगप्पा ने देखा कि एक एम्बूलेंस पहुंची है। उनके मन ने कहा कि एम्बुलेंस की गति बता रही है कि इसमें मौजूद मरीज की स्थिति गंभीर है। अगर प्रोटोकॉल की बात की जाए तो इस तरह के वीवीआईपी के आने की स्थिति में उन्हें ऊपर से इजाजत लेनी पड़ती लेकिन, उन्हें लगा कि इसके लिए समय नहीं है। यह एक त्वरित फैसला था, उन्होंने एम्बुलेंस को अस्पताल पहुंचने के लिए निकल जाने का इशारा कर दिया। निश्चित रूप से उन्होंने जीवन के लिए संघर्ष कर रही एक जान बचा ली। इस काम के लिए उन्हें हर वरिष्ठ से सराहना मिली। ट्विटर पर उन्हें जीवन बचाने के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रशंसा और बधाइयां मिली। इस तरह के फैसले करना आसान नहीं होता, भले ही आपके पास बहुत दिन हों या सिर्फ कुछ सेकंड। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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