Thursday, June 22, 2017

दार्जिलिंग बंद: स्कूल ने छात्रों को बाहर जाने से रोका, छात्रों ने कहा- भले ज्यादा पढ़ाओ और बाहर मत जाने दो, पर हर दिन दो टेस्ट क्यों?

सात दिन से बंद दार्जिलिंग में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। जरूरत के सामान की कमी हो गई है। प्रवासी मजदूर शहर छोड़कर लौट गए हैं। पर यहां के सेंट जोसेफ स्कूल के छात्र अलग ही तरीके की परेशानी से जूझ रहे हैं। 128
साल पुराने इस स्कूल ने हॉस्टल में रहने वाले 528 छात्रों को बाहर जाने से रोक दिया है। जबकि, शहर से स्कूल आने वाले छात्रों की छुट्टी कर दी गई है। हाॅस्टल में रहने वाले छात्रों के लिए एक्स्ट्रा क्लासेज की व्यवस्था की गई है। एक्स्ट्रा टेस्ट भी लिए जा रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अतिरिक्त पढ़ाई वैसे तो छात्रों के नजरिये से अच्छी बात है। पर एक छात्र उत्सव थापा ने कहा, 'हम यहां सुरक्षित हैं। पहले हम एक दिन में एक टेस्ट दिया करते थे। पर जब से हड़ताल हुई है तब से हमें रोज दो टेस्ट देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।' एक अन्य छात्र ने कहा कि ज्यादा पढ़ाई से किसी को दिक्कत नहीं है। पर एक दिन में दो बार परीक्षा क्यों ली जा रही है? इससे जुड़े सवाल पर स्कूल के प्रिंसिपल शाजुमोन सीके ने कहा, 'हम बच्चों को पूरे समय कैंपस में रख रहे हैं। इसलिए उन्हें व्यस्त भी रखना होगा। वैसे हमारी योजना शुक्रवार तक स्कूल खाली कराने की है।' इस बीच बंद की अगुवाई कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने छात्रों की परेशानी को देखते हुए बंद में ढील देने की पहल की है। जीजेएम नेता बिनय तमांग ने कहा कि स्कूलों को खाली करने के लिए शुक्रवार को 12 घंटे की ढील दी जाएगी। 
15 जून से जारी बंद के दौरान पांच लोगों की मौत हो चुकी है। 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इनमें 30 से ज्यादा पुलिसकर्मी शामिल हैं। बंद की आग दार्जिलिंग से दिल्ली तक पहुंच गई है। गोरखालैंड के समर्थकों ने बुधवार को दिल्ली में बंगाल भवन के सामने प्रदर्शन किया। दार्जिलिंग में भी रैली निकाली गई। दुकानें बंद रहीं और बहुत कम वाहन सड़कों पर नजर आए। हालात बेकाबू होता देख बंगाल सरकार ने गुरुवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। पर बंद का आह्वान करने वाली पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने इसका बहिष्कार किया है। कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने भी बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। दोनों पार्टियों का तर्क है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अनुपस्थिति में बुलाई बैठक में जाने का कोई औचित्य नहीं है। 
दार्जिलिंग में मौजूदा विरोध प्रदर्शन टीएमसी सरकार के उस फैसले के बाद शुरू हुआ, जिसमें उसने पूरे बंगाल में बांग्ला भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। विरोध कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का कहना है कि दार्जिलिंग में अधिकतर लोगों की मातृभाषा नेपाली है। फिर सरकार सबको बांग्ला पढ़ने के लिए मजबूर क्यों कर रही है। भाषा का यही विरोध िफर से अलग राज्य की मांग तक पहुंच गया है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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