Thursday, May 18, 2017

क्या महिलाओं को मिल सकता है तीन तलाक नकारने का विकल्प - SC

तीन तलाक की वैधानिकता पर विचार कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा कि क्या निकाहनामे में महिलाओं को इसे नकारने का विकल्प दिया जा सकता है? तीन तलाक पर संविधान पीठ में
चल रही सुनवाई का गुरुवार को आखिरी दिन है। बुधवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल पर्सनल लॉ में दखल नहीं देने की अपील कर रहे थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सिब्बल ने दलील दी कि अगर कोर्ट इसमें दखल देता है, तो यह घर के मामलों में दखल जैसा होगा। यह तरीका दूसरे मामलों में भी जारी रह सकता है। इसी बीच, मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने उनसे पूछा कि क्या निकाहनामे में महिला को तीन तलाक को न कहने का विकल्प दिया जा सकता है? काजी को निकाहनामे में इस शर्त को शामिल करने को कहा जा सकता है? पर्सनल लॉ बोर्ड के दूसरे वकील यूसुफ मुछाला ने जवाब दिया कि कोर्ट का सुझाव बहुत अच्छा है। लेकिन, सिब्बल ने कहा कि वे इस पर बोर्ड के अन्य सदस्यों से विचार-विमर्श कर कोर्ट को बताएंगे। तभी जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सवाल किया कि क्या पर्सनल लॉ बोर्ड इस बारे में काजियों को निर्देश दे सकता है? मुछाला ने कहा कि जरूरी नहीं कि सभी काजी बात मानें। 
चीफ जस्टिस ने कहा कि मार्डन निकाहनामे में ऐसा कोई उपबंध होना चाहिए, जिसमें महिला के पास न कहने का विकल्प हो। जमीयत उलमा-ए-हंिदू के वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि अगर तीन तलाक खत्म कर दिया जाता है, तो पुरुषों को तलाकशुदा पत्नी के साथ रहना होगा। कोर्ट ऐसा पाप करने के लिए बाध्य नहीं करेगा।
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साभार: भास्कर समाचार 
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